निगम में चुनावी पहरा, बारिश से बाढ़ का खतरा
मुजफ्फरपुर। लीची की मिठास और सांस्कृतिक धरोहर की अघोषित राजधानी मुजफ्फरपुर इन दिनों पानी से बेजार है। शहर के कोने-कोने में पानी है। गली-गली में पानी है। सड़क सड़क पर पानी है। जित देखिए बस पानी ही पानी है। मानो पानी ही इस शहर की वास्तविक कहानी है। हाल ऐसा है कि इंसान, जानवर, कीड़े मकोड़े सभी एक समान पानी से जूझ रहे हैं। किसी के घर में पानी है तो किसी के दर पर पानी है। तब जबकि आज के ही दिन इस शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा मिला था।
तब इस दर्जा को हासिल करने कराने में भी लोगों ने अपने-अपने स्तर से खूब दावे किए थे। लोगों को लुभाया गया। लंबे चौड़े वायदे भी किये गये। चाहे तत्कालीन विधायक सह नगर विकास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा रहे हो अथवा पूर्व नगर विधायक विजेंद्र चौधरी। यहां तक कि नगर निगम के पार्षदों और और मेयर ने भी स्मार्ट सिटी पर अपनी मेहनत का ठिंठोरा खूब पीटा था। लेकिन तकरीबन चार साल से अधिक समय बातों ही बातों में गुजर गए। यहाँ तक कि केन्द्र से हासिल फंड से भी सवा करोड़ निकल गये।
लेकिन नहीं बनी तो शहर की स्मार्ट नालियां? जो कि शहर वासियों को बारिश रूपी बाढ़ से बचाने में सहायक बन पाती। सड़क की बात तो छोड़ ही दीजिए । एक फरदो नाला के सहारे समूचे शहर की किस्मत बंधी है। वह भी जगह-जगह गंदगी और गाद भर जाने से पानी को ढोने में नाकाम है। शेष काम अतिक्रमण कर रहा है। एक ड्रेनेज बनाने का काम शुरू हुआ था जो अंततः चुनावी निकला। रही बात नालियों की। नाले पर सजी दुकानें। जगह जगह बने मकानें। पानी को रोक रही है। स्लूइस गेट पर अतिक्रमण। शहर में जल जमाव को एक अलग रंग दे रहा है। दूसरे बारिश भी खूब हो रही है। प्राकृतिक आपदा का यह आलम है कि पिछले कुछ वर्षों से शहर में बारिश बाढ़ का नजारा दिखा रही है।
अगर किसी को सही मायने में मोतीझील का मतलब समझ नहीं आयी हो तो आज जाकर देखें। झील का मतलब समझ आ जायेगा। सच यह है कि चलने वाला न संभले तो डूब जायेगा। बेला में पानी दो को लील चुका है। औरों की चाह में जगह-जगह मुंह वाये खड़ी है। चाहे मिठनपुरा हो, बालू घाट ब्रह्मपुरा हो, राहुल नगर ब्रह्मपुरा हो, अतरदह गनीपुर, विवि परिसर अथवा चंद्रलोक। सभी मोहल्ले पानी में तैर रहे हैं। या यूं कहें कि लोग स्मार्ट सिटी में जलविहार का मजा ले रहे हैं। अरे जब जिला समाहरणालय और नगर निगम ही पानी में डूब रहा हो तो अन्य जगहों की कौन पूछे। दावे करने को बातें हजार हैं। ले
किन सतही स्तर पर जलजमाव से निजात का रास्ता न तो सीएम दिला सके हैं न तो डिप्टी सीएम। जिला प्रशासन तो सालों से समस्या निवारण का चप्पू चला रहा है। नगर निगम जोड़-तोड़, लूट खसोट, मेयर-मेयर का खेल खेल रहा है। बची अवाम। तो लोग जैसे-तैसे अपने बूते। भगवान के आसरे। बारिश से बने बाढ़ के माहौल में जीने को अभिशप्त हैं। यह सोंच कर कि हम स्मार्ट हो गए हैं।