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‘मेरा वक्त बदलेगा, तेरी राय’…संसद में कांग्रेस की हालत पर शायराना हुए खड़गे


राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने संसद में जल्दबाजी में कानून पारित किए जाने और संसद की बैठकों की संख्या कम होने के कारण समाज के वंचित वर्गों की समस्याओं को उठाने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाने पर गहरी चिंता जताई। साथ ही उन्होंने नए सभापति जगदीप धनखड़ से उम्मीद जताई कि उनके नेतृत्व में सदन में पर्याप्त बैठकें होंगी। खड़गे ने कहा कि नेहरू ने कभी राज्यसभा के अधिकारों को कम नहीं होने दिया।उन्होंने इस बारे में देश के प्रथम प्रधानमंत्री के एक वक्तव्य को उद्धृत किया जिसमें उन्होंने कहा कि धन विधेयक को छोड़कर दोनों सदनों के अधिकारों में कोई अन्तर नहीं है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि विपक्ष के सदस्य भले ही संख्या में आज कम हों किंतु उनके अनुभवों एवं तर्कों में ताकत रहती है। उन्होंने कहा, लेकिन दिक्कत यह है कि संख्या बल की गिनती होती है और विचारों पर विचार नहीं किया जाता। खड़गे ने उच्च सदन में पूर्व में दिए गए अपने किसी बयान में पढ़े गए किसी शेर को लेकर उन पर कटाक्ष किए जाने का जिक्र किया और अपनी बात को इस शेर के साथ समाप्त किया..खड़गे ने बुधवार को उच्च सदन का पहली बार संचालन करने के लिए सभापति धनखड़ को बधाई देते हुए कहा कि राज्यसभा के संरक्षक के रूप में उनकी भूमिका अन्य भूमिकाओं की तुलना में बहुत बड़ी है। उन्होंने कहा कि वह जिस कुर्सी पर बैठे हैं वहां देश की कई महान हस्तियां बैठ चुकी हैं। उन्होंने कहा कि उच्च सदन के छह सभापति बाद में राष्ट्रपति भी बने। उन्होंने सभापति धनखड़ को ‘‘भूमिपुत्र” बताते हुए कहा कि उन्हें विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्री एवं राज्यपाल के रूप में विधायी कामकाज का लंबा अनुभव है।उन्होंने कहा कि एक समस्या यह है कि सदन की बैठकें कम होने के कारण जनता के मुद्दों पर चर्चा के लिए उचित समय नहीं मिल पाता। उन्होंने कहा, ‘‘गरीबों, एसटी, एसटी, दबे-कुचलों, किसानों, अत्याचार की शिकार महिलाओं के हालात पर ढंग से बात नहीं रख पाते।” उन्होंने कहा कि विधेयक भी जल्दबाजी में पारित किए जाते हैं। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि पहले जहां संसद 100 से अधिक दिन चलती थी वहीं अब यह 60-70 दिन से अधिक नहीं चलती। उन्होंने कहा कि यदि पिछले एक दशक के आंकड़े देखें तो सबसे अधिक 2012 में 74 बैठकें हुई थीं और इसके बाद 2016 में 72 बैठकें हुई थीं।