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ईडी को मिला बल, अब मामलों को तार्किक अंजाम तक पहुंचाने की चुनौती


सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन आफ मनी लांड्रिंग एक्ट यानी पीएमएलए (PMLA) के तहत प्रवर्तन निदेशालय अर्थात ईडी (ED) को मिले अधिकारों को न्यायसंगत ठहराकर उन लोगों को झटका ही दिया, जो यह वातावरण बना रहे थे कि इस केंद्रीय एजेंसी का मनमाना इस्तेमाल किया जा रहा है। ईडी को मिले अधिकारों के विरुद्ध दो सौ से अधिक याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें से कई याचिकाएं उन नेताओं की थीं, जिनके खिलाफ ईडी की जांच चल रही है। इनमें प्रमुख हैं कार्ति चिदंबरम, अनिल देशमुख और महबूबा मुफ्ती।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कांग्रेस को भी झटका लगा है, क्योंकि वह पहले राहुल गांधी और फिर सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ को एक राजनीतिक मसला बनाने पर तुली हुई है। कांग्रेस यह प्रतीति कराकर उपहास का ही पात्र बन रही है कि उसके नेता नियम-कानून से ऊपर हैं।

ईडी की कार्रवाई को लेकर इन दिनों जैसा हंगामा कांग्रेस कर रही है, वैसा ही अन्य दल भी समय-समय पर करते रहे हैं, लेकिन ऐसा करते समय में वे ऐसे प्रश्नों का उत्तर देने से बचते हैं कि क्या उनके नेताओं पर लगे आरोप मिथ्या हैं? वे ऐसे सवालों का जवाब इसीलिए नहीं दे पाते, क्योंकि ईडी की कार्रवाई का सामना कर रहे उनके नेताओं पास आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति मिली होती है। कई बार तो यह संपत्ति अकूत होती है। इसका ताजा उदाहरण हैं बंगाल के वरिष्ठ मंत्री पार्थ चटर्जी।

चूंकि पीएमएलए का उद्देश्य काले धन को सफेद करने के तौर-तरीकों को रोकना है, इसलिए इसे धन शोधन निवारण अधिनियम से भी जाना जाता है। न तो यह किसी से छिपा है कि काले धन का कारोबार किस तरह जारी है और न ही यह कि इसमें बड़ी संख्या में नेता और नौकरशाह भी लिप्त हैं। यहां यह जानना भी आवश्यक है कि पीएमएलए में समय-समय पर जो संशोधन हुए, उनमें एक संशोधन संप्रग शासनकाल में उस समय हुआ था, जब पी. चिदंबरम वित्त मंत्री थे।

निश्चित रूप से पीएमएलए एक कठोर कानून है, लेकिन यह भी तो सही है कि अवैध तरीके से अर्जित किए गए काले धन को सफेद बनाने की समस्या भी गंभीर रूप ले चुकी है। किसी भी गंभीर समस्या से सही तरह निपटना तभी संभव होता है, जब उसके खिलाफ कठोर कानून बनाए जाएं। नि:संदेह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ईडी को बल मिला है, लेकिन इस एजेंसी के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह उन मामलों को तार्किक अंजाम तक ले जाए, जिनकी जांच उसके हाथों में है। इससे ही उसकी विश्वसनीयता बढ़ेगी और काले धन के कारोबार में लिप्त तत्वों के दुस्साहस का दमन होगा। यह ठीक नहीं कि ईडी कुछ ही मामलों में आरोपितों को सजा दिला सकी है।