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मोदी सरकार ने कोरोना में कारगर इन एंटी-वायरल ड्रग के दाम घटाए


नई दिल्ली. देश में एंटी-वायरल ड्रग रेमडेसिविर (Remdesivir) की भारी किल्लत को देखते हुए मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. मोदी सरकार ने रेमडेसिविर दवा के दाम को तत्काल प्रभाव से घटाने का निर्णय लिया है. केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया (Mansukh Mandaviya) ने यह जानकारी साझा की है. केडिला (Cadila) हेल्थ केयर लिमिटेड की दवा रेमडेक जो पहले 2800 में मिलती थी वह अब 899 रुपये में मिलेगी. इसी तरह डॉ रेड्डी (Dr Reddy) की रेडिक्स जो 5400 रुपये में मिलती है वह अब 2700 रुपये में मिलेगी. इसके साथ ही केंद्र सरकार के निर्देश पर पांच और कंपनियों ने भी दाम घटाए हैं. बता दें कि रेमडेसिविर कोरोना (Coronavirus) से संक्रमित मरीजों के लिए इस समय कारगर साबित हो रही है. बीते कुछ दिनों से इस दवा की किल्लत हो रही थी, जिससे इसके दाम आसमान छूने लगे हैं.

रेमडेसिविर के दाम घटे
बीते दो-तीन महीनों से इस दवा के उत्पादन में भी काफी कमी आ गई थी. डॉक्टरों के मुताबिक, रेमडेसिविर कोरोना बीमारी की अवधि कम करता है, लेकिन मौत की दर को घटा नहीं सकता. यह एक जरूरी ड्रग है और संक्रमण अधिक फैलने से लंग्स खराब होने की स्थिति में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. इसी वजह से आजकल बाजार में इस दवाई की किल्लत बढ़ गई है. अगर दवाई मिल भी रही है तो काफी महंगे दामों में मिल रही है. इसलिए केंद्र सरकार ने पिछले दिनों इस दवाई की निर्यात पर पाबंदी लगा दी है और अब कई राज्य सरकारों ने रेमडेसिविर की कालाबाजारी रोकने के लिए सख्त कदम उठा रही है.

रेमडेसिविर की मांग में क्यों कमी आ गई थी

फार्मा इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का मानना है कि दिसंबर 2020 के बाद से कोविड-19 के मामलों में कमी के कारण रेमडेसिविर की मांग में कमी आ गई थी. इस कारण से इस दवाई को बनाने वाली कंपनियों ने इसका उत्पादन कम कर दिया था. जनवरी और फरवरी महीने में भी उत्पादन पहले की तुलना में काफी कम हुई. अब, जबकि इसकी मांग एक बार फिर से बढ़ गई है तो कंपनियों ने उत्पादन तेज कर दी है. सरकार और कंपनी दोनों दावा कर रही है कि अगले चार-पांच दिनों में स्थितियां काफी बेहतर हो जाएंगी.

रेमडेसिविर दवा की अवधि कितने दिनों तक रहती है
बता दें के रेमडेसिविर दवा की अवधि 6 से 8 महीने की होती है. डॉक्टर कहते हैं कि कोरोना की पहली लहर रेमडेसिविर की मांग दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चैन्नई, अहमदाबाद, सूरत, जयपुर और लखनऊ जैसे महानगरों और बड़े शहरों तक सीमित थी, लेकिन दूसरी लहर में इस दवा की मांग बड़े शहर से लेकर छोटे शहरों और गांव-देहात में भी होने लगी है. इस कारण बनाने वाली कंपनी मांग के हिसाब से सप्लाई नहीं कर पा रही है.