सम्पादकीय

राहतकारी कदम


कोरोनाकी भयावह स्थितिसे उत्पन्न चुनौतीके बीच कुछ राहतकारी कदम और उपलब्धियां भी सामने आयी हैं, जिनसे कोरोना वायरसके खिलाफ जंगमें अवश्य मदद मिलेगी। महामारीको हरानेके लिए रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संघटन (डीआरडीओ) ने एक नयी दवा २-डीजी तैयार की है। इस नयी दवाका उपयोग आपात स्थितिमें संक्रमित मरीजोंपर किया जायगा। ड्रग्स कंट्रोलर आफ इण्डियाने इस दवाको मंजूरी भी दे दी है। पाउडरके रूपमें इस दवाका परीक्षण किया जा चुका है और यह दावा किया गया है इसके इस्तेमालसे मरीजोंमें सुधारकी गति अच्छी है और अन्य दवाओंकी तुलनामें मरीज ढाई दिन पहले ही ठीक हो  जा रहे हैं। इस दवाके इस्तेमालसे आक्सीजनपर निर्भरता भी कम होगी। डाक्टर रेड्डïी लेबोरेटरी हैदराबादके सहयोगसे विकसित दवाका बड़े पैमानेपर उत्पादन आसानीसे किया जा सकता है। कोरोना संकटकालमें स्वदेशी टीकेके बाद यह नयी दवा बड़ी उपलब्धि है। यह दवा कोरोना महामारीको रोकनेमें दूसरा सबसे बड़ा हथियार है। सस्ते मूल्यपर नयी दवा उपलब्ध करानेका प्रयास होना चाहिए। कोरोना कालमें आक्सीजनकी उपलब्धताको लेकर गम्भीर संकट बना हुआ है। इसे लेकर राज्योंकी शिकायतें बढ़ गयी हैं। इस दिशामें सर्वोच्च न्यायालयने नेशनल टास्क फोर्सका गठन कर न्यायसंगत और राहतकारी कदम बढ़ाया है। १२ सदस्यीय इस दलको आक्सीजनके आकलन और आवंटनकी जिम्मेदारी रहेगी जिससे कि जरूरतके आधारपर राज्योंको आक्सीजनकी आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। इसकी आडिटके लिए एक उपसमूह बनेगा, जो केन्द्र सरकारको सुझाव भी देगा। टास्क फोर्समें इस प्रख्यात चिकित्सक और दो केन्द्र सरकारके सचिव स्तरके अधिकारी होंगे। यह अच्छा कदम अवश्य है लेकिन इसके लिए केन्द्र सरकारको आक्सीजनकी उपलब्धता भी बढ़ानी होगी तभी इसका आवंटन सही ढंगसे हो पायगा। एक बड़ी समस्या अस्पतालोंमें मरीजोंकी भर्तीको लेकर है जिसे केन्द्र सरकारने सुगम बनानेका निर्णय किया है। इसके लिए नीतियोंमें बदलाव किये गये हैं। अब अस्पतालोंमें भर्ती होनेके लिए कोरोनाका पाजिटिव रिपोर्ट होना अनिवार्य नहीं है। टेस्ट रिपोर्टकी अनिवार्यता पूरी तरह समाप्त कर दी गयी है, इससे मरीजों और उनके परिजनोंको बड़ी राहत मिलेगी। पहचान-पत्र नहीं होनेपर भी मरीजोंको अस्पतालमें भरती करना पड़ेगा। इस निर्णयसे अस्पतालोंकी मनमानीपर अंकुश लगेगा। साथ ही शोषणकी प्रवृत्तिपर लगाम भी लगेगी। विश्वके ४२ देश भारतको सहायता देनेके लिए खड़े हैं। २१ देशोंसे आवश्यक सामग्री भी भारत पहुंच गयी है। इससे कोरोना मरीजोंके उपचारमें सहायता मिलेगी। उम्मीद है भविष्यमें राहतके कदम और भी आगे बढ़ेंगे।

कुरैशीका नया पैंतरा

भारत-पाकिस्तानके रिश्तोंमें आयी तल्खीके बीच कश्मीरपर पाकिस्तानका सुर नरम हुआ है, लेकिन इसपर सहसा यकीन नहीं किया जा सकता है। दुनियाको भ्रमित करनेके लिए आतंकियोंके विरुद्ध काररवाईका दिखावा और भारतके हितमें बयानबाजी उसकी फितरतमें शामिल है। पाकिस्तानी हुक्मरानोंने कई बार सचको स्वीकार किया लेकिन अपनी हेकड़ीसे बाज नहीं आये। पूर्वमें वहांके सूचना और प्रसारणमंत्रीने पुलवामा आतंकी हमलेको स्वीकार तो किया लेकिन इसे अपनी उपलब्धि बताया। अभी कुछ दिन पहले प्रधान मंत्री इमरान खानने कहा था कि भारत यदि कश्मीरमें अनुच्छेद ३७० के फैसलेपर पुनर्विचारका आश्वासन दे तो पाकिस्तान भारतके साथ वार्ताके लिए तैयार है। यह एक हास्यास्पद प्रस्ताव है, क्योंकि वार्ताकी आवश्यकता पाकिस्तानको है, भारतको नहीं। इसलिए किसी प्रकारके शर्तका कोई प्रश्न ही नहीं उठता। अब पाकिस्तानके विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशीने यह कहकर कि कश्मीरमें अनुच्छेद ३७० को हटाना भारतका आन्तरिक मामला है, अपने ही प्रधान मंत्रीके प्रस्तावकी हवा निकाल दी। इतना ही नहीं, इसे साबित करनेके लिए उन्होंने कहा कि इस फैसलेको भारतके सर्वोच्च न्यायालयमें चुनौती दी गयी है। उन्होंने अनुच्छेद ३७० के अहमियतको नकारते हुए अनुच्छेद ३५-ए को महत्वपूर्ण बताया, क्योंकि इसके जरिये भारत कश्मीरकी जन-सांख्यिकीको बदल सकता है। कुरैशीकी यह सोच समझके परे है, क्योंकि ३५-ए के जरिये कश्मीरको भले ही विशेष अधिकार मिले हैं लेकिन अनुच्छेद ३७० के बिना यह बेमानी है। कुरैशीके बयानके निहितार्थको समझना होगा। उनके इस बयानसे दोनों देशोंके बीच तल्ख रिश्तोंको सुधारनेकी दिशामें पर्देके पीछे चल रही कोशिशोंके सन्दर्भमें देखा जा रहा है। कुरैशीने एक बार फिर बेबाकीसे भारतके साथ रिश्तोंको आपसी बातचीतसे सुधारनेकी वकालत की है, क्योंकि वह मानते हैं कि दोनोंके बीच युद्ध आत्मघाती होगा। कुरैशी अपनी बातपर कबतक टिके रहेंगे यह देखना दिलचस्प होगा क्योंकि अपनी बातसे मुकर जाना इमरान खानके मंत्रियोंकी पुरानी आदत है। हो सकता है कि कुरैशीका यह कोई नया पैंतरा हो।