सम्पादकीय

प्रसन्नता 


ओशो

एक सादगीभरा व्यक्ति जान लेता है कि प्रसन्नता जीवनका स्वभाव है। प्रसन्न रहनेके लिए किन्हीं कारणोंकी जरूरत नहीं होती। बस तुम प्रसन्न रह सकते हो। केवल इसीलिए कि तुम जीवित हो। लेकिन ऐसा संभव होता है केवल एक सहज सादे व्यक्ति के लिए ही। वह आदमी जो चीजें इक_ी करता रहता है, हमेशा सोचता है कि इन्हीं चीजोंके कारण उसे प्रसन्नता मिलनेवाली है। आलीशान भवन, धन, सुख-साधन वह सोचता है कि इन्हीं चीजोंके कारण वह प्रसन्न है। समस्या धन-दौलतकी नहीं है, समस्या है आदमीकी दृष्टि की, जो धन खोजनेका प्रयास करती है। दृष्टि यह होती है जबतक मेरे पास यह तमाम चीजें नहीं हो जाती हैं, मैं प्रसन्न नहीं हो सकता हूं। यह आदमी सदा दुखी रहेगा। एक सच्चा सादगी पसंद आदमी जान लेता है कि जीवन इतना सीधा सरल है कि जो कुछ भी है उसके पास, उसीमें वह खुश हो सकता है। इसे किसी दूसरी चीजके लिए स्थगित कर देनेकी उसे कोई जरूरत नहीं है। भोजन, घर, प्रेम तुम्हारी सारी जीवन ऊर्जाको मात्र आवश्यकताओंके तलतक ले आओ और तुम आनंदित हो जाओगे और एक आनंदित व्यक्ति धार्मिक होनेके अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता। एक अप्रसन्न व्यक्ति अधार्मिक होनेके अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता। एक अप्रसन्न व्यक्ति कैसे प्रार्थना कर सकता है। उसकी प्रार्थनामें गहरी शिकायत होगी। दुर्भाव होगा एवं एक नाराजगी होगी। प्रार्थना तो एक अनुग्रहका भाव है शिकायत नहीं। जितने कम प्रसन्न होते हो तुम, उतने ही दूर तुम हो जाओगे परमात्मा, प्रार्थना, अनुग्रहके भावसे। सृष्टिके समस्त जीवधारियोंमें मनुष्य ही सृष्टिकी अनुपम रचना है और प्रसन्नता प्रभु प्रदत्त उपहारोंमें मनुष्यके लिए श्रेष्ठ वरदान होनेके कारण सभी सद्गुणोंकी जननी कही जाती है। प्रसन्नता व्यक्तिके अंतर्मनमें छिपे उदासी, तृष्णा और कुंठाजनित मनोविकारोंको सदाके लिए समाप्त कर देती है। वस्तुत: प्रसन्नता चुंबकीय शक्ति संपन्न एक विशिष्ट गुण है। अपने मनसे सारी नकारात्मक भावनाओंको निकाल बाहर करो। जीवनमें प्रसन्नता आनंदको अपनाओ। जितना सादगीभरा जीवन होगा, उतनी ही प्रसन्नता मनमें आयगी। मनकी इच्छाएं और लालसाएं ही सारे दु:खोंका कारण है। इसलिए देखनेका नजरिया और दृष्टिको बदले, ताकि एक साधारण जीवन जी सकें। मनकी प्रसन्नता ही सब सुख देती है।