- नई दिल्ली, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पिछले एक हफ्ते से नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। वह दो-दो बार कुछ विपक्षी नेताओं और सांसदों के साथ बैठक कर चुके हैं। आज विपक्ष के कुछ सांसदों के साथ नाश्ता करने के साथ ही वह संसद भवन तक साइकिल मार्च भी निकाल चुके हैं। न्यूज चैनलों में कवरेज और अखबारों में तस्वीरें छपवाने के लिए तो यह कवायद तो अच्छी लग रही है, लेकिन क्या राहुल की यह विपक्षी एकता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चुनौती है ?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी अप्रत्याशित रूप से पिछले एक हफ्ते में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी एकता के लिए जितने ऐक्टिव हुए हैं, उतने अबतक शायद कभी नहीं रहे। कुछ विपक्षी दलों के साथ दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में नाश्ते के बहाने उनकी आज दूसरी बैठक थी। लेकिन, राहुल के साथ सुबह-सुबह नाश्ते का जायका चखने के लिए जिन पार्टियों के नेता पहुंचे, अगर उन्हें देखें तो ज्यादातर वही नेता हैं, जिनके साथ किसी न किसी रूप में अलग-अलग राज्यों में कांग्रेस का गठबंधन या तालमेल रहा है। पहले इन दलों का नाम जान लेते हैं- कांग्रेस के अलावा एनसीपी, शिवसेना, आरजेडी,डीएमके, सीपीएम, सीपीआई, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग,आरएसपी, केरल कांग्रेस (एम), जेएमएम,समाजवादी पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस, टीएमसी और लोकतांत्रिक जनता दल (एलजेडी)। लेफ्ट फ्रंट के साथ हाल ही में कांग्रेस बंगाल चुनाल लड़ चुकी है। टीएमसी के सामने बंगाल में पार्टी का कोई वजूद नहीं रह गया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले ही यूपी में गठबंधन का संकेत भी दे चुके हैं। कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ गुपकार गठबंधन में भी कांग्रेस हाथ मिला चुकी है। बाकी दल भी किसी न किसी रूप में पार्टी के सहयोगी ही रहे हैं।
यह विपक्षी एकता आधी-अधूरी क्यों है ?
राहुल गांधी के साथ नाश्ते में आम आदमी पार्टी का नहीं पहुंचना सबसे बड़े सवाल खड़े करता है। पंजाब में कांग्रेस सत्ता में है और अगले साल विधानसभा चुनाव में वहां अरविंद केजरीवाल की पार्टी उसे टक्कर देना चाहती है। जाहिर है कि ऐसे में कांग्रेस का पिच्छलग्गू बनना उसकी राजनीति को सूट नहीं करता। इस तरह यूपी में सपा, भाजपा के खिलाफ विपक्षी मोर्चे की आस लगाने लगी है, लेकिन बसपा ने राहुल के नाश्ते को ठुकराकर अपनी लाइन स्पष्ट कर दी है। इनके अलावा भी कम से कम तीन और गैर-एनडीए पार्टियां बड़ी महत्वपूर्ण हैं, जो कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्ष से कन्नी काट रहे हैं। ये हैं- आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, तेलंगाना की सत्ताधारी- टीआरएस और ओडिशा में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का बीजू जनता दल। लोकसभा में एनडीए के पास अजेय बहुमत है और राज्यसभा में इन्हीं तीनों पार्टियों का अक्सर मिलने वाला समर्थन ही नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी ताकत है।