रूपौली (पूर्णिया)(आससे)। मुस्लिम धर्मावलम्बियों का रमजान का महीना सबसे मुबारक महीना माना जाता है। इसका बुनियादी बजह यह है कि इस महीने में अल्लाह-तआला ने तमाम इंसानों की रहनुमाई के लिए अपने सबसे मुकद्दस किताब कुरआन-ए-मजीद को नाजिल किया। अल्लाह ने कुरआन को पैगम्बर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब पर २३ बर्षों में थोड़ा-थोड़ा करके नाजिल किया। इसी माह में रोजा रखना भी हर एक के लिए अपना फर्ज करार दिया। ये बातें रामपुर परिहट पंचायत के बालूटोला बसगढ़ा मस्जिद में मोहम्मद शम्स तबरेज साहब ने नमाज के बाद अपने तकरीर में कही।
उन्होंने कहा कि रमाजुल माह को तीन आसरे में बाँटा गया है। इस माह का पहला दस दिन रहमत और बरकत के लिए, दूसरे आसरे मगफिरत के लिए तथा वहीं आखिर के दस दिन जहन्नुम से छुटकारा पाने के लिए बनाया गया है। उन्होंने कहा कि शुरुआत से ही रमजान माह का जहन्नुम से छुटकारा पाने का शुरूआत हो चुका है, जिसके फलस्वरूप इस दिन से ही रोजेदारों को अपने किए गुनाहों की माफी मिलनी शुरू हो चुकी है। इस महिने में एक फर्ज का सबाब ७० गुणा कर दिया जाता है। रोजा एैसी इबादत है कि अल्लाह खुद इसका बदला देते हैं। सच्चे दिल से मांगी दुआएँ कबूल होती है। इबादत गुजार बन्दे को खुदा गुनाहों से पाक साफ कर देता है। उसकी नीतियों में बेशुमार इजाफा कर देता है।
मोहम्मद तम्स तबरेज साहब ने बताया कि आखिर में खूब कुरआन शरीफ की तिलावत करें, शब-ए-कद्र व नफील की नमाज पढ़े। हजुर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम शब-ए-कद्र की पाक रातों में खुद जागकर इबादत में मसगुल रहते और अपने सहाबा कराम को भी इबादत करने की ताकीद फरमाते रहें। हुजुर सल्लल्लाहो अलैह बसल्लम ने फरमाया है आखिर आसरे में जो पाँच पाक रातों में एक को भी शब-ए-कद्र है। तुम इसको पा लो तो रातभर जाग कर अल्लाह तबारको ताला की इबादत में मसगूल रहो।
पाक माहे रमजान के अन्तिम जुम्मे को आज मस्जिद प्रांगण में जो नमाजियों का नमाज अता करने का जो जन सैलाव अन्य वर्षों को दिखाई देता था। वह सभी के सभी वैश्विक महामारी कॉरोना संक्रमण की भेंट चढ़ती दिखी। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या जवान सभी के सभी सामाजिक दूरी और मॉस्क का उपयोग करते हुए काफी कम संख्या में उपस्थित हो एक ही लालसा और दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ आखिरी जुम्म्मे के नमाज अता किया।