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विकलांगता के कारण NEET PG में दाखिले से चूकी MBBS डॉक्टर, दिल्ली HC ने AIIMS को दोबारा शारीरिक जांच के दिए आदेश


नई दिल्ली, दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को दिव्यांग एमबीबीएस डॉक्टर की याचिका पर सुनवाई करते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के निदेशक को तीन विशेषज्ञों का एक बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया। विशेषज्ञों की टीम याचिकाकर्ता की विकलांगता की जांच करेगी, जिन्हें हाल ही में शारीरिक रुप से असक्षम करार देते हुए चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई के लिए अपात्र करार दिया गया था।

दरअसल, डॉ लक्ष्मी ने एमबीबीएस (MBBS) की पढ़ाई की है। वह आगे नीट के स्नातकोत्तर (NEET PG Admission) की में दाखिला लेना चाहती थी, लेकिन दिल्ली स्थित वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल ने 2 5 अगस्त को आयोजित नीट परीक्षा के लिए विकलांगता प्रमाण पत्र जारी करते हुए लक्ष्मी को 100% विकलांग घोषित कर दिया।

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि वीएमएमसी सफदरजंग कॉलेज ने उसे मूल्यांकन के दौरान कैलिपर पहनने की अनुमति नहीं दी और इस प्रकार सहायक उपकरण की सहायता के बिना कार्यात्मक विकलांगता की जांच करना गलत है।

इसको लेकर डॉ लक्ष्मी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपने आप को 100 फीसदी विकलांग घोषित किए जाने वाले प्रमाण पत्र को चुनौती दी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल ने अदालत में कहा कि गलत तरीके से याचिकाकर्ता की विकलांगता 80% से अधिक दिखाकर उन्हें संबंधित पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने की अनुमति नहीं दी गई है।

मामले को लेकर न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने गुरुवार 1 सितंबर, 2022 को कहा कि याचिकाकर्ता की विकलांगता के संबंध में दूसरी राय लेना उचित होगा। न्यायमूर्ति नरूला ने दिल्ली एम्स के निदेशक को याचिकाकर्ता की विकलांगता का आकलन करने के लिए संबंधित क्षेत्र के तीन विशेषज्ञों का एक बोर्ड गठित करने और विशेष रूप से यह पता लगाने का निर्देश दिया कि क्या वह स्नातकोत्तर विशेषज्ञ डॉक्टर से अपेक्षित कार्यों को करने में सक्षम होगी।

मामले की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने एम्स को निर्देश दिया है कि वह सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए डॉक्टर लक्ष्मी की विकलांगता का पुनर्मूल्यांकन करे। हाई कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 14 सितंबर 2022 को रखी है।