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विश्व हिंदू परिषद: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन हुई थी विहिप की स्थापना


रांची, । Vishwa Hindu Parishad Foundation Day अयोध्या में भव्य रूप में बन रहे राम मंदिर के लिए चलाए गए आंदोलन की सफलता से भारत के साथ साथ विदेश में रहने वाले करोड़ों हिंदुओं के हृदय में स्थान बना चुके विश्व हिंदू परिषद (विहिप ) की स्थापना श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन ही मुंबई में 1964 ईस्वी में हुई थी। इसके प्रेरणा श्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर उर्फ श्री गुरुजी थे। आज विहिप का काम भारत के सभी प्रांतों के साथ साथ विश्व के 50 से अधिक देशों में है।

राम मंदिर आंदोलन की सफलता के बाद विहिप ने देश में गो हत्या पर प्रतिबंध, मतांतरण और लव जिहाद पर रोक लगाने के लिए अभियान चलाने का निर्णय लिया है। देश के सभी प्रखंडों में सेवा केंद्र शुरू करने और सभी पंचायतों में समिति गठित करने में विहिप के कार्यकर्ता से लेकर अधिकारी तक लगे हैं। सामाजिक जागरूकता के माध्यम से विहिप ने अब तक 63 लाख हिंदुओं को मतांतरित होने से बचाया, वहीं नौ लाख से अधिक लोगों की घर वापसी कराने में सफल रहा।

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हिंदू समाज ने विधर्मियों के विरुद्ध क्षमता से अधिक प्रतिकार किया: वीरेंद्र साहू

विश्व हिंदू परिषद के प्रांत मंत्री डा. वीरेंद्र साहू ने कहा कि भारतीय संस्कृति अनादि काल से विश्व बंधुत्व की भावना को लेकर “सर्वे भवंतु सुखिनः” की उद्धार विचारधारा को जन-जन में प्रतिष्ठित करने का कार्य करते रही है, इसी कारण प्राचीन काल से ही भारत के प्रति विश्व समुदाय का आदर और श्रद्धा का भाव रहा है। हिंदू समाज समरस एवं समृद्ध था अपितु मुस्लिम आक्रांताओं के आगमन के बाद हिंदू समाज की एकता व अखंडता को तार-तार कर उसे जातिवादी, क्षेत्रवादी, भाषावादी व मत-पंथ-संप्रदाय वादी विभेदों में बांट कर पहले मुगलों (मुस्लिमों) ने और फिर अंग्रेजों ( ईसाइयों ) ने भारत पर शासन किया।

विपत्ति चाहे अनगिनत आईं, किंतु यहां के हिंदू समाज में न तो ज्ञान की, न वीरता व पौरुष की, न धैर्य की और न धर्म की कभी न्यूनता हुई। हिंदू समाज ने विधर्मियों के विरुद्ध क्षमता से भी अधिक प्रतिकार व वीरता का परिचय दिया, फिर भी आक्रांताओं के दमन से अपने आपको नहीं बचा पाए एवं सैकड़ों वर्ष तक पराधीनता का दंश झेलते रहे।

1925 में डा केशवराव बलिराम हेडगेवार ने समाज को एक सूत्र में बांधने के लक्ष्य को लेकर शाखा प्रारंभ की। इन शाखाओं में कर्मठ कार्यकर्ताओं का निर्माण होता रहा। भारत 1947 में स्वाधीन भी हुआ। हमें भौतिक स्वाधीनता तो मिली परंतु सांस्कृतिक स्वाधीनता नहीं मिल पाई। परिणामत: देश के अंदर हिंदू एवं हिंदुत्व पर कई प्रकार की विपत्तियां आते रही है। आक्रमण के कारण मानबिंदुओं पर लगे कलंक हिंदू समाज को उद्वेलित करता रहा, परंतु इसके लिए एक नेतृत्वकर्ता संगठन की आवश्यकता थी।

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स्वामी चिन्मयानंद के आश्रम में बैठक बुलाई गई

प्रांत संगठन मंत्री देवी सिंह ने कहा कि 29 अगस्त,1964 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर पवई, मुंबई स्थित स्वामी चिनमयानन्द जी के आश्रम में एक बैठक बुलाई गई। बैठक में पूज्य स्वामी चिनमयानन्द, राष्ट्रसंत तुकडो जी महाराज, सिख सम्प्रदाय से मास्टर तारा सिंह, जैन संप्रदाय से पूज्य सुशील मुनि, गीता प्रेस गोरखपुर से हनुमान प्रसाद पोद्दार, के एम मुंशी तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक के द्वितीय सरसंघचालक माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर “श्री गुरुजी” सहित 40-45 अन्य विशिष्टजन एवं साधु-संत गण उपस्थित थे। महापुरुषों के सानिध्य में विश्व हिंदू परिषद की स्थापना की गई ।

विहिप का क्या उद्देश्य

विहिप के क्षेत्र संगठन मंत्री अकारपू केशव राजू ने कहा कि विश्व हिंदू परिषद की स्थापना का मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित और जागृत करने, उसके स्वत्वों, मानबिंदुओं तथा जीवन मूल्यों की रक्षा व संवर्धन करने तथा विदेशस्थ हिंदुओं से संपर्क स्थापित कर उन्हें सांस्कृतिक रूप से सुदृढ़ बनाने व उनकी सहायता करना था। आज विहिप सेवा कार्य में भी जुटी है। लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रही है।

1966 के सम्मेलन में मतांतरण रोकने का लिया था संकल्प

केशव राजू ने कहा कि विश्व हिंदू परिषद का प्रथम सम्मेलन 22 से 24 जनवरी 1966 को कुंभ के अवसर पर प्रयागराज में आयोजित किया गया, जिसमें 12 देशों के 25 हज़ार प्रतिनिधियों के साथ, 300 प्रमुख संतों की सहभागिता रही। पहली बार प्रमुख शंकराचार्य भी एक साथ आए और मतांतरण पर रोक तथा परावर्तन (घर-वापसी) का संकल्प लिया गया। मैसूर के महाराज चामराज वाडियार को अध्यक्ष व दादासाहब आप्टे को पहले महामंत्री के रूप में घोषित कर विहिप की प्रबंध समिति की घोषणा भी हुई। इस सम्मेलन में जहां परावर्तन को मान्यता देने का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित हुआ वहीं विहिप के बोधवाक्य “धर्मो रक्षति रक्षितः” और बोध चिह्न “अक्षय वटवृक्ष” तय हुआ।

समरस समाज के निर्माण के लिए विहिप ने बनाई योजना

प्रांत सामाजिक समरसता प्रमुख मिथिलेश्वर मिश्र ने कहा कि हिंदू समाज में व्याप्त अस्पृश्यता समाज के सामने एक बड़ी चुनौती थी। इस चुनौती को स्वीकारते हुए एक समरस समाज के पुन: निर्माण हेतु विहिप ने अपनी व्यापक कार्ययोजना बनाई। इस दुर्गम लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु संगठन ने अपने 58 वर्षों की तपश्चर्या में अनेक कार्य किए, जो तत्कालीन परिस्थियों में बेहद दुरूह कहे जा सकते थे, किंतु उनकी सफलता ने आज हिंदू समाज की दशा व दिशा दोनों को बदलने में अभूतपूर्व योगदान किया है।

13-14 दिसंबर, 1969 के उडुपी (कर्नाटक )धर्म संसद में संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी के विशेष प्रयासों के परिणाम स्वरूप, भारत के प्रमुख संतों ने एकस्वर से “हिन्दव: सोदरा सर्वे, न हिन्दू: पतितो भवेत्” के उद्घोष के साथ सामाजिक समरसता का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया। सभी ने “मम दीक्षा हिंदू रक्षा, मम मंत्र समानता” का संकल्प लिया।

अशोक सिंघल ने विहिप के कार्यों को गांवों तक पहुंचाया

प्रांत मंत्री ने कहा कि 1982 में अशोक सिंघल विहिप के पदाधिकारी बने। व्यापक जनजागरण के कार्यक्रम होने लगे। हिंदू समाज को एकाकार करने वाली 1983 में हुई एकात्मता यात्रा में तो देश के हजारों गांवों में संपर्क हुए। इस यात्रा में 6 करोड़ लोग सहभागी हुए। उन्होंने विहिप के कार्य को गांवों तक पहुंचाने का काम किया।

अप्रैल 1984 में नई दिल्ली में प्रथम धर्म संसद का अधिवेशन संपन्न हुआ, जिसमें लगभग 125 संप्रदायों के सैकड़ों साधु-संत सहभागी हुए। इसी वर्ष श्री राम जन्मभूमि आंदोलन भी प्रारंभ हुआ। 8 अक्टूबर 1984 को विहिप की युवा शाखा के रूप में बजरंग दल की स्थापना की गई।

1994 में काशी में हुई धर्म संसद में काशी के डोम राजा को मंच प्रदान किया गया। उसी सम्मेलन में

वनवासी, अनुसूचित जाति व पिछड़ी जाति के हज़ारों लोगों को ग्राम पुजारी के रूप में प्रशिक्षण देकर मंदिरों में पुरोहित के रूप में दायित्व सौंपा गया।

90 हजार से अधिक सेवा प्रकल्प चल रहे हैं

वीरेंद्र साहू ने कहा कि विश्व हिंदू परिषद द्वारा समाज के सहयोग से देश भर में 90 हजार से अधिक सेवा प्रकल्प भी चलाए जा रहे हैं। इनमें से लगभग 70 हजार संस्कार केंद्र, दो हजार से अधिक शिक्षा केंद्र, 1800 स्वास्थ्य केंद्र, 1500 स्वावलंबन केंद्र तथा शेष लगभग 15 हजार केंद्रों में आवासी छात्रावास, अनाथालय, चिकित्सा केंद्र, कंप्यूटर, सिलाई, कढ़ाई प्रशिक्षण केंद्र, विवाह केंद्र, महाविद्यालय, कालेज इत्यादि प्रमुख हैं। विहिप का कार्य लगातार बढ़ता जा रहा है।