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वैष्णो देवीके दर्शनके लिए खुली पुरानी गुफा


दर्शनार्थियोंमें खुशी

जम्मू (सुरेश एस डुग्गर) । वैष्णो देवी की यात्रा पर आने वालों के लिए खुशी की बात यह है कि कोरोना काल में बंद रखी गईं वैष्णो देवी की पुरानी गुफा और गर्भजून गुफा को दर्शनार्थ खोल दिया गया है। बस लखनपुर में कोरोना पाबंदियों को नहीं हटाए जाने से सड़क मार्ग से आने वाले श्रद्धालुओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जिस कारण प्रतिदिन 25 हजार भक्तों को दर्शन की अनुमति दिए जाने के बावजूद 7 से 8 हजार श्रद्धालु ही आ रहे हैं। वैष्णो देवी की गर्भ जून गुफा के भीतर प्रवेश करने के लिए इंतजार कर रहे श्रद्धालुओं की घडिय़ां समाप्त समाप्त हो चुकी हैं। वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने माता वैष्णो देवी की प्राचीन गुफा के साथ ही भवन मार्ग पर प्रसिद्ध अर्धक्वांरी मंदिर परिसर में पवित्र गर्भ जून गुफा के कपाट भी श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए हैं। इस दौरान श्रद्धालु प्राकृतिक गुफा से गुजरकर मां की पिंडियों के दर्शन कर सकेंगे। प्राकृतिक गुफा कुछ दिन ही खुली रहेगी। प्रतिवर्ष सर्दियों के मौसम में श्रद्धालुओं की संख्या कम होने पर इस गुफा को खोला जाता था परंतु कोरोना के कारण इस बार ऐसा नहीं हो सका। मान्यताओं के अनुसार, प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के मौके पर इस गुफा को खोला जाता था। इस वर्ष भी खोला गया परंतु कोरोना महामारी के कारण सिर्फ पूजा-अर्चना के लिए। भक्तों को वहां से जाने की अनुमति नहीं दी गई थी। इसके बाद बुधार को श्रद्धालुओं की संख्या लगभग छह हजार पहुंचने के बाद इसे खोलने का फैसला किया गया। हालांकि गुफा कब तक खुली रहेगी इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है। कोरोना महामारी को लेकर बीते वर्ष 18 मार्च को माता वैष्णो देवी की ऐतिहासिक यात्रा स्थगित किए जाने के साथ ही गर्भ जून गुफा भी श्रद्धालुओं की के लिए बंद कर दी गई थी।

हालांकि बीते वर्ष 16 अगस्त को एक बार फिर मां वैष्णो देवी यात्रा शुरू कर दी गई परंतु कोरोना महामारी को लेकर गर्भ जून गुफा के कपाट श्रद्धालुओं की आवाजाही के लिए बंद रखे गए थे। जो कि वर्तमान में कोरोना महामारी के संक्रमण में काफी हद तक गिरावट आ जाने के उपरांत श्राइन बोर्ड प्रशासन ने गर्भ जून गुफा के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए हैं। श्रद्धालु निरंतर गर्भ जून गुफा में प्रवेश कर मां वैष्णो देवी से अपने मन की मुरादे पा रहे हैं। श्राइन बोर्ड द्वारा कोविड-19 को लेकर जारी दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन किया जा रहा है।

कश्मीर में हड़ताल

जम्मू (आससे)। जेकेएलएफ के संस्थापक मुहम्मद मकबूल बट की बरसी पर गुरुवार को ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर समेत कश्मीर के कई भागों में आहूत हड़ताल के कारण जन जीवन अस्त व्यस्त रहा। उसे 1984 में आज ही के दिन दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गयी थी। ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर समेत कश्मीर के कई अन्य जिलों में दुकानें और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहे तथा सड़कों पर यातायात नदारद रहा। कानून-व्यवस्था की किसी भी समस्या को रोकने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किये गये थे। आसपास की सभी दुकानों और अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों के बंद रहने के कारण श्रीनगर के पुराने इलाके में स्थित ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में वीराना छाया रहा।

ऐतिहासिक मस्जिद के दो मुख्य द्वारों को बंद कर दिया गया था और उनके बाहर सुरक्षा बल के वाहनों को तैनात किया गया था। श्रीनगर शहर के नल्लामार, जैना कदल, नौहट्टा, फतेह कदल, राजौरी कदल और नवा कदल के दोनों ओर दुकानें और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहे हालांकि सड़कों पर निजी वाहन, तिपहिया वाहन और कुछ कैब नजर आयीं। ऐतिहासिक लाल चौक पर सभी दुकानें बंद रहीं और सड़कों पर यातायात बंद रहा। इसी तरह हरि सिंह हाई स्ट्रीट, बादशाह चौक, मैसुमा, रीगल चौक,रेजिडेंसी रोड,बटमालू, महराज बाजार और गोनी खान सहित शहर के मुख्य व्यापारिक केंद्रों में भी व्यवसाय और अन्य गतिविधियां प्रभावित रहीं। बैंक और अन्य वित्तीय प्रतिष्ठानों में हालांकि काम-काज जारी रहा। सार्वजनिक परिवहन के अधिकांश साधन सड़कों से दूर रहे लेकिन निजी वाहन और तीन पहिया वाहन बड़ी संख्या में नजर आये। बटमालू से बटवारा और डल झील के रास्तों पर कई मिनी बसें भी देखी गयीं हालांकि यात्रियों की संख्या बहुत कम थी। नये शहर में भी कमोबेश यही हालात रहें हालांकि सब्जियां और दूध-ब्रेड की कुछ दुकानें खुली रहीं। कई रेहड़ी-पटरी वाले भी सड़क किनारे अपना सामान बेचते दिखे। साल 1984 में मकबूल बट को तिहाड़ जेल में फांसी दिए जाने के विरोध में अलगाववादियों द्वारा आहूत बंद और प्रदर्शन को देखते हुए कश्मीर के कुछ इलाकों में वाहनों और लोगों की आवाजाही पर रोक लगाई गई थी। उत्तरी कश्मीर के सोपोर, बारामुल्ला और बांडीपोरा कस्बों से प्राप्त खबरों में भी कहा गया है कि सुरक्षा बलों के जवान यहां यातायात और पदयात्रियों की आवाजाही की अनुमति नहीं दे रहे थे।