विधानसभा भवन के शताब्दी वर्ष प्रबोधन कार्यक्रम को लोकसभाध्यक्ष ने किया संबोधित
पटना (आससे)। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन की घटती गरिमा और मर्यादा तथा पक्ष-विपक्ष के बीच चर्चा संवाद में आई कमी एवं सदन के सत्र के लगातार कम होते जाने पर चिंता प्रकट की। उन्होंने कहा कि यह हम सबों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। हम सबों को मिलकर सामूहिकता में इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है। वे बिहार विधानसभा भवन के शताब्दी वर्ष एवं स्थापना दिवस पर बिहार विधान मंडल के सदस्यों के लिए सेंट्रल हॉल में आयोजित प्रबोधन कार्यक्रम में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि सदन की गरिमा एवं मार्यादा का बनाए रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी हैं। लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों के आचरण से ही सदन की गरिमा एवं मार्यादा बनती है। हम सदन की गरिमा एवं मर्यादा को जितना बनाए रखेंगे, इसे जितना अधिक चर्चा और संवाद का केन्द्र बनाएंगे, इसके उतने ही सुपरिणाम प्राप्त होंगे। हम कार्यपालिका को उतना ही अधिक जवाबदेह बना पाएंगे और सरकार के कार्यों में पारदर्शिता ला पाएंगे।
उन्होंने कहा कि आजादी के ७५ वर्ष पूरे होने पर देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। ७५ वर्षों की गौरवशाली यात्रा में हमने संवैधानिक संस्थाओं का सशक्त किया है। संसदीय लोकतंत्र को मजबूत किया है। फिर भी हमें चिंतन और मंथन करने की जरूरत है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को किस प्रकार जनता के प्रति और अधिक जवाबदेह बनाया जाए। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र वाद-विवाद और संवाद पर आधारित पद्घति है। सदन वाद-विवाद और संवाद के लिए ही होता है। पक्ष-विपक्ष में मतभेद होना, सहमति-असहमति होना स्वाभाविक है। परन्तु विरोध के बावजूद गतिरोध नहीं होना चाहिए और नियोजित गतिरोध तो बिल्कुल ही नहीं होना चाहिए। यह लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत है। हमें व्यवधान का नहीं, समाधान का रास्ता ढूंढऩा चाहिए।
उन्होंने बताया कि लाकतांत्रिक संस्थाओं को और अधिक प्रभावी एवं सशक्त बनाने के लिए पिछले वर्ष शिमला में पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन आयोजित किया गया था। सम्मेलन में देश के सभी विधानमंडलों के कार्य संचालन नियम एवं प्रक्रियाओं में वांछित संशोधन करने का संकल्प पारित किया गया था, ताकि सदनों में अनुशासन और शालीनता आए। वहां यह भी निर्णय लिया गया था कि सूचना एवं प्रौद्योगिकी का अधिकतम उपयोग करते हुए राष्ट्रीय डिजिटल पोर्टल बने, जिस पर केन्द्र और राज्य के विधानमंडलों की कार्यवाहियां, संसदीय समितियों की रिपोर्ट, वहां की लाइब्रेरियों की सामगियों को साझा किया जा सके। जिससे देश की जनता एक ही प्लेटफार्म पर सभी विधानमंडलों की जानकारी पा सके।
उन्होंने प्रबोधन कार्यक्रम की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा वर्तमान बिहार विधानसभा में लगभग ४२ प्रतिशत सदस्य पहली बार चुनकर आए हैं। यह प्रबोधन कार्यक्रम उनके लिए अत्यंत उपयोगी सिद्घ होगा। विधायक के रूप में जहां एक तरफ वे जनता और विधायिका के बीच तथा दूसरी तरफ विधायिका और सरकार के बीच कड़ी का काम करते हैं। जनप्रतिनिधि के रूप में उनको सार्वजनिक और निजी जीवन में आचरण के उच्चतम मानकों को बनाए रखना चाहिए। विधायिका के प्रति कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सरकार से प्रश्न पूछना विधायकों का लोकतांत्रिक अधिकार है।
उन्होंने बिहार को लोकतंत्र की जन्मस्थली बताया एवं कहा कि यहां से शुरू हुआ लोकतंत्र आज हमारी सोच, जीवन और कार्यशैली का हिस्सा बन चुका है। लोकतंत्र हमारे संस्कार में है। यही हमारा जीवन मूल्य है। विभिन्न कालखण्डों में अलग-अलग शासन व्यवस्था के बावजूद हमारी आत्मा लोकतांत्रिक रही है। बिहार लोकतंत्र ही नहीं, भारत की सभ्यता, ज्ञान, अध्यात्म एवं चेतना की भी पुण्यभूमि है। भगवान बुद्घ और भगवान महावीर के संदेश आज भी प्रासंगिक है।
बिहार के लोग वर्तमान समय में भी अपनी प्रतिभा और परिश्रम के बल पर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व की भूमिका में हैं। खुद उनके संसदीय क्षेत्र कोटा में एक लाख से भी ज्यादा बिहारी छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। मैं यहां के लोगों की प्रतिभा और योग्यता से भलीभांति अवगत हूं। उन्होंने बिहार विधानसभा डिजीटल टीवी एवं विधान सभा पत्रिका के प्रकाशन का शुभारम्भ करने के लिए बधाई दी।