सम्पादकीय

समृद्धजनोंके पलायनसे उपजी चिन्ता


डा. भरत झुनझुनवाला   

एफ्रो एशियन बैंक द्वारा २०१८ में प्रकाशित ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यूमें बताया कि उस वर्ष चीनसे १५००० अमीरोंने पलायन किया, रूससे ७००० ने, तुर्कीसे ४००० ने और भारतसे ५००० अमीरोंने पलायन किया। इन चारमें पहले तीन देश चीन, रूस एवं तुर्कीमें तानाशाही सरकार है जबकि भारत लोकतांत्रिक है। मान सकते हैं कि चीन आदि देशोंसे पलायनका कारण वहांकी तानाशाही और घुटन हो सकती है लेकिन भारतका इस सूचीमें सम्मिलित होना खतरेकी घंटी है क्योंकि हमारे यहां लोकतंत्र विद्यमान है। एफ्रो एशियन बैंकने यह भी बताया है कि इन देशोंसे पलायन किये अमीरोंमें १२,००० ऑस्ट्रेलियाको गये, दस हजार अमेरिकाको, ४००० कैनेडाको और सौसे अधिक मॉरिशसको गये। इनमें आस्ट्रेलिया आदि पहले तीन देशोंकी बात समझमें आती है क्योंकि यह विकसित देश हैं। लेकिन मॉरिशसको सौसे अधिक अमीरोंका पलायन चिंताका विषय है क्योंकि यदि मॉरिशस अमीरोंको आकर्षित कर सकता है तो निश्चित रूपसे भारतके लिए भी इन्हें आकर्षित करना संभव होना चाहिए था। लेकिन हमारी चाल उल्टी है और तेज होती जा रही है। कोरोना संकटसे पलायनकी यह गति और तीव्र हो गयी है। हेनेली एंड पार्टनर्स कम्पनी द्वारा अमीरोंको एकसे दूसरे देशमें पलायन करनेमें मदद की जाती है। इनके अनुसार वर्ष २०२० में भारतसे पलायन करनेवालोंमें ६३ प्रतिशतकी वृद्धि हुई है। हमारे यहांसे पलायन किये अमीर वह किसी दूसरे देशमें जाकर बसे हैं जहां भी कोरोनाका संकट था इसलिए कोरोनाको पलायनमें वृद्धिका कारण नहीं बताया जा सकता है।

भारतीय विद्वानों द्वारा पलायनके तीन कारण बताये जा रहे हैं। पहला कि भारतमें आयकरकी दर अधिक है। यह नहीं टिकता है क्योंकि ऑस्ट्रेलियामें भी आयकरकी दरें ऊंची हैं। दूसरा, भारतमें शिक्षाके अवसर उपलब्ध नहीं है। यह नहीं टिकता है क्योंकि भारतकी तुलनामें मॉरिशसमें शिक्षाके अवसर बहुत ही कम है। तीसरा, तकनीक और बैंकिंग क्षेत्रोंमें अवसर कम है। यह भी नहीं टिकता है क्योंकि इंफोसिस एवं टाटा कंसलटेंट जैसी तमाम कंपनियां भारतमें काम कर रही हैं। निजी बैंकोंमें भी पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं।

भारतसे पलायनका पहला कारण सुरक्षाका है। देशकी पुलिस अकर्मण्य और अक्सर भ्रष्ट है। अमीरोंको अपने परिवारकी सुरक्षाकी विशेष चिंता होती है। वे नहीं चाहते कि किसी चौराहेपर उनके परिवारको अगवा कर लिया जाय। दूसरा कारण धार्मिक उन्माद है। अमीर लोग धन कमान चाहते हैं। उन्हें शांत और स्थिर सामाजिक वातावरण चाहिए होता है। अपने देशमें धार्मिक विवाद पूर्वसे ही थे। वर्तमान समयमें यह बढ़ ही रहे हैं। तीसरा, मीडिया और मनोरंजनकी स्वतंत्रताका आभाव है। वर्तमान समयमें सरकार द्वारा पूरा प्रयास किया जा रहा है कि आलोचनाको दबाया जाय। आलोचकोंको देशद्रोहके मामलोंमें उलझाया जा रहा है। सरकार द्वारा आलोचक मीडियापर भी विभिन्न प्रकारसे दबाव बनाया जा रहा है। इस दृष्टिसे इन तीन कारणोंसे भारतसे अमीरोंका भारी संख्यामें पलायन हो रहा है और इस पलायनका फल है कि देशकी आर्थिक विकास दर २०१४ से २०१९ के पिछले पांच वर्षोंसे लगातार गिर ही रही थी। वर्तमान समयमें कोरोना संकटमें इसमें और तीव्र गिरावट आयी है। भारतकी अर्थव्यवस्था एक वैक्यूम क्लीनर द्वारा संचालित की जा रही है जो देशकी संपत्तिको खींच कर विदेशोंको भेज रहा है। कोई आश्चर्य नहीं है कि कोरोना संकटके कारण हम चीनसे आगे निकलनेके स्थानपर और पीछे होते जा रहे हैं।

इस परिस्थितिमें सरकारको निम्न कदमपर विचार करना चाहिए। पहले सुरक्षाका वातावरण सुधारनेके लिए शीर्ष पुलिस अधिकारियोंका बाहरी मूल्यांकन कराना चाहिए। पांचवें वेतन आयोगने सुझाव दिया था कि सभी क्लास-ए अधिकारियोंका हर पांच वर्षमें बाहरी मूल्यांकन कराया जाय। इससे सरकारको सूचना मिलेगी कि कौन अधिकारी देशके नागरिकोंकी सुरक्षा वास्तवमें हासिल कर सकते हैं। इसके अलावा सरकार द्वारा एक अलग पुलिस भ्रष्टाचार जासूस तंत्र स्थापित किया जान चाहिए जो पुलिस महकमेमें व्याप्त भ्रष्टाचारको स्वसंज्ञान लेकर ट्रैप करे। दूसरा विषय धार्मिक उन्मादका है। धार्मिक उन्मादका अपने देशमें ही केरल राज्यमें पिछले ७० वर्षोंमें व्याप्त नहीं था। केरलके लोगोंसे पूछे कि वह हिन्दू हैं या इसाई तो वह भौचक होकर देखते थे। उन्हें समझ नहीं आता था कि यह सवाल क्यों पूछा जा रहा है। केरलमें शिक्षाका स्तर अधिक होना इस धार्मिक सामंजस्यका एक कारण हो सकता है। वहांके नागरिक एक-दूसरेके धर्म-मर्मको समझते हैं और एक-दूसरेसे घृणा नहीं करते हैं। मलयेशियामें धार्मिक शांति स्थापित है यद्यपि विभिन्न धर्मोंके अनुयाई वहां रहते हैं। इस दिशामें सरकारको हर राज्यमें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजीकी तरह इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिलीजन स्थापित करना चाहिए। यहां विभिन्न धर्मोंके विभाग हों और एक ही छतके नीचे धर्मोंके बीच सौहार्दपूर्ण वार्तालाप हो। तब समाजमें भी यह सौहार्द फैलेगा।

तीसरा विषय मीडियाका है। सरकारको आलोचकोंको अपना विरोधी माननेके स्थानपर अपना सहयोगी मानना चाहिए। कोई नेता ब्रह्मïज्ञानी नहीं होता है। गलतियां हर एकसे होती हैं। यदि गलतियोंकी तरफ शीघ्र ध्यानाकर्षण कर दिया जाय तो नेता अपनेको शीघ्र सुधार लेता है और अधिक समयतक शीर्षपर बना रहता है। इसलिए सरकारको चाहिए कि आलोचक मीडियाको अपना विरोधी माननेके स्थानपर अपने सहयोगीके रूपमें देखे और उन मीडियाको विशेषकर पुरस्कृत करें जिनकी आलोचनासे सरकारको अपने कदम सुधारनेमें लाभ मिला है।

अंतमें एक और कदम सरकारको उठाना चाहिए। जो शिक्षित एवं अमीर देश छोड़कर पलायन करना चाहते हैं उनसे भारतकी नागरिकता छोडऩेके लिए विशेष टैक्स लगाकर भारी रकम वसूल करनी चाहिए। मेरे संज्ञानमें ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने किसी समय अमेरिकाकी नागरिकता ले ली थी और बादमें वे उस नागरिकताको छोडऩा चाहते थे। अमेरिकी सरकारने नागरिकता छोडऩेके लिए उनसे भारी मात्रामें एग्जिट टैक्स वसूल किया। अमेरिकाकी सरकारका कहना था कि नागरिकके रूपमें उन्होंने जिन अमेरिकी सुविधाओंका उपयोग किया है उसका उन्हें भुगतान करना होगा। इसी प्रकार भारतसे पलायन करनेवाले शिक्षित और अमीरोंपर एग्जिट टैक्स लगाना चाहिए।