पटना (आससे)। वासंतिक नवरात्र चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 13 अप्रैल से शुरू होगा। नौ दिनों तक पूरे विधि-विधान के साथ मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाएगी। इसी तिथि से हिंदू नववर्ष विक्रम संवत् 2078 भी शुरू होगा। ब्रह्म पुराण के मुताबिक ब्रह्मा ने इसी संवत् में सृष्टि के निर्माण की शुरुआत की थी। विक्रम संवत में प्रकृति की खूबसूरती दिखती है। प्रकृति कई तरह का सृजन करती है।
इस बार चैत्र नवरात्रि पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं। इस नवरात्रि में चार रवियोग, एक सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग, एक सिद्धि योग तथा एक सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है। ऐसे शुभ संयोग में नवरात्रि पर देवी उपासना करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी। यह नवरात्रि धन और धर्म की वृद्धि के लिए खास होगी। भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य आचार्य राकेश झा ने बताया कि 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को वासंतिक नवरात्र अश्विनी नक्षत्र एवं सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग में आरंभ होकर 22 अप्रैल को मघा नक्षत्र व सिद्धि योग में विजया दशमी के साथ संपन्न होगा।
इस नवरात्र में माता अपने भक्तो को दर्शन देने के लिए घोड़े पर आ रही हैं। इससे श्रद्धालुओं को मनचाहा वरदान और सिद्धि की प्राप्ति होगी। इस आगमन से राजनीति के क्षेत्र में उथल-पुथल होंगे। माता की विदाई नरवाहन पर होगी। माता की इस विदाई से भक्तों को शुभ और सौख्यता का वरदान मिलेगा।
कलश पूजा से मिलेगा सुख-समृद्धि का वरदान
चैत्र नवरात्र में कलश स्थापन का महत्व अति शुभ फलदायक है, क्योंकि कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, नवग्रहों, सभी नदियों, सागरों-सरोवरों, सातों द्वीपों, षोडश मातृकाओं, चौंसठ योगिनियों सहित सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। इसीलिए विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है। नवरात्रि में कलश स्थापना सही और उचित मुहूर्त में करना फलदायी होगा । ऐसा करने से घर में सुख और समृद्धि आती है।
सभी ग्रहों की शांति की होगी पूजा
पंडित गजाधर झा के अनुसार वासंतिक नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा में हर ग्रह की शांति की पूजा की जाएगी। प्रतिपदा पर शैलपुत्री की आराधना से सूर्य ग्रह की शांति की जाएगी। दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी की पूजा से राहू ग्रह की शांति, तृतीय तिथि पर चंद्रघंटा की पूजा से चंद्रमा की शांति, चतुर्थ कूष्मांडा की पूजा से केतु ग्रह की शांति, पंचम स्कंदमाता की पूजा से मंगल की शांति, कात्यायनी की पूजा से वृष की शांति, सप्तम कालरात्रि की पूजा से शनि ग्रह की शांति, अष्टम महागौरी की पूजा से बृहस्पति की और नवम सिद्धिदात्री की पूजा से शुक्र ग्रह की शांति की जाएगी।
20 को पुष्य नक्षत्र में महाष्टमी, महानवमी 21 को
नवरात्रि की पूजा इस बार पुरे दस दिनों का होगी। महाष्टमी की पूजा 20 अप्रैल को पुष्य नक्षत्र में तथा महानवमी 21 अप्रैल को अश्लेषा नक्षत्र में होगी। चैत्र नवरात्रि में भगवान विष्णु के दो-दो अवतार मत्स्यावतार और रामावतार होता है। साथ ही सूर्योपासना का पर्व चैती छठ, हनुमानजी का पूजन भी होता है।