स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘भारत पुनः विश्व गुरु बनेगा, जो पूरे संसार का पथप्रदर्शन करने में समर्थ होगा।’ उन्होंने जो भविष्यवाणी की थी अब सिर्फ उसका सत्य सिद्ध होना शेष है। वर्तमान भारत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है, वह निश्चित रूप से स्वामी विवेकानंद के स्वप्न की पूर्ति कर रहा है। 15 अगस्त, 2022 को स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए भाषण में अमृत काल के पांच संकल्पों को हम स्वामी विवेकानंद के विचारों और प्रेरणा से भी जोड़कर देख सकते हैं।
पहला संकल्प है ‘विकसित भारत’। अमेरिका से लौटकर स्वामी विवेकानंद ने देशवासियों से आह्वान किया था कि ‘नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूंजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से, निकल पड़े झोपड़ियों से, जंगलों से, पहाड़ों से, पर्वतों से और खेत-खलिहानों से और पुनः भारत मां को विश्वगुरु के पद पर आसीन कर दे।’ पीएम मोदी का भी यही मानना है कि जनभागीदारी और ‘सबका साथ-सबका विकास’ के मंत्र से ही हम विकसित भारत के महान लक्ष्य को पूरा करेंगे।
दूसरा संकल्प है ‘गुलामी से मुक्ति’। 1897 में स्वामी विवेकानंद से किसी ने पूछा कि ‘स्वामी जी मेरा धर्म क्या है?’ स्वामी जी ने उत्तर दिया कि ‘गुलाम का कोई धर्म नहीं होता। अगले 50 वर्षों तक सिर्फ भारत को गुलामी से आजाद कराना ही तुम्हारा धर्म है।’ स्वामी जी कहा करते थे कि “हम वह हैं, जो हमें हमारे सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिए कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं, विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।” अर्थात अपने मन मस्तिष्क में गुलामी का कोई भी विचार न रहने दें। यही बात पीएम मोदी ने कही कि हमारे मन के भीतर किसी भी कोने में गुलामी का एक भी अंश न रहे।
तीसरा संकल्प है ‘विरासत पर गर्व’। 11 सितंबर, 1893 का स्वामी जी का शिकागो में दिया गया भाषण इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। जब भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, तब स्वामी विवेकानंद ने भारत की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति, विरासत, अध्यात्म और वैभवशाली इतिहास के बारे में विदेशी धरती पर गर्व के साथ बताया। उसके बाद पुनः भारत को मान-सम्मान मिला। गुलामी के कारण जो हीनता का भाव भारतीयों में आया था वह खत्म हुआ। मानो किसी नए सवेरे ने जन्म लिया। विश्व विजय की इस यात्रा से सभी भारतवासियों में ऊर्जा की एक नई लहर दौड़ी और भारत फिर से परम वैभव को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हुआ। यही बात प्रधानमंत्री मोदी भी कहते हैं कि हमें अपनी सामर्थ्य पर भरोसा होना चाहिए। हमें अपने देश की विरासत पर गर्व होना चाहिए, क्योंकि इसी विरासत ने भारत को कभी स्वर्ण काल दिया था।
चौथा संकल्प है ‘एकता और एकजुटता’। एकता और एकजुटता पर स्वामी जी का विश्व को संदेश था कि ‘जल्द ही हर धर्म की पताका पर लिखा हो-विवाद नहीं, सहायता। विनाश नहीं, संवाद। मतविरोध नहीं, समन्वय और शांति।’ आज विश्व को आतंकवाद के खिलाफ नरेन्द्र मोदी का भी यही संदेश है। स्वामी विवेकानंद ने देशवासियों से कहा था कि ‘इस बात पर गर्व करो कि तुम एक भारतीय हो और अभिमान के साथ यह घोषणा करो कि हम भारतीय हैं और प्रत्येक भारतीय हमारा भाई है।’ प्रधानमंत्री मोदी ने भी ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के भाव को मन में समेटे हुए कहा है कि हमें अपनी देश की विविधता को बड़े उल्लास से मनाना चाहिए, क्योंकि किसी देश की सबसे बड़ी ताकत उस देश की एकता और एकजुटता में ही होती है।
पांचवां संकल्प है ‘नागरिकों का कर्तव्य’। स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित ‘कर्मयोग’ नामक पुस्तक का चौथा अध्याय है- ‘कर्तव्य क्या है?’ इसमें उन्होंने जीवन के हर कर्तव्य के बारे में विस्तार से बताया है। स्वामी जी ने लिखा है कि ‘हमारा पहला कर्तव्य है कि हम अपने प्रति घृणा न करें।’ उसी प्रेरणा से प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि नागरिकों का कर्तव्य देश और समाज की प्रगति का रास्ता तैयार करता है। यह मूलभूत प्रणशक्ति है। स्पष्ट है भारत की स्वतंत्रता के अमृत काल के संकल्पों में स्वामी विवेकानंद के विचार अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अपनी आध्यात्मिक शक्ति, गौरवपूर्ण संस्कृति-संस्कारों से ओतप्रोत अद्भुत सामर्थ्य, वैश्विक शांति एवं सौहार्द के लिए वसुधैव कुटुंबकम् के भारतीय दर्शन और मानव कल्याण की प्रेरणा देने वाले सनातन धर्म के कारण ही भारत विश्वगुरु की प्रतिष्ठा को प्राप्त करेगा।
(लेखक केंद्रीय संस्कृति, पर्यटन एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री हैं)