नई दिल्ली, । सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस बात की जांच करने को कहा कि कैसे दिव्यांग लोगों को सिविल सेवाओं में विभिन्न श्रेणियों में रखा जाता है। न्यायमूर्ति एस ए नज़ीर और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि विकलांगता के प्रति सहानुभूति एक पहलू है, लेकिन निर्णय लेते वक्त व्यावहारिकता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
सहानुभूति एक तरफ रखकर व्यावहारिकता से सोचना चाहिए
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने एक घटना का जिक्र किया जहां चेन्नई में 100 प्रतिशत अंधेपन के साथ एक व्यक्ति को सिविल जज जूनियर डिवीजन के रूप में नियुक्त किया गया और अदालत के दुभाषियों ने उनके द्वारा हस्ताक्षरित सभी आदेश प्राप्त किए। इस पूरी घटना पर एक लेख तमिल पत्रिका के संपादक ने छापा, जिसके बाद कई सवाल खड़े हुए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कृपया नियुक्ति की प्रक्रिया की जांच कीजिए। ये प्रक्रिया सभी श्रेणियों के लिए उपयुक्त नहीं है। हमें सहानुभूति एक तरफ रखकर व्यावहारिकता से सोचना चाहिए।’
केंद्र ने मांगा सुप्रीम कोर्ट से समय
इस मामले में केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि सरकार मामले को देख रही है और कुछ समय की मांग की। कोर्ट ने कहा कि वो इस मामले पर आठ हफ्ते बाद सुनवाई करेगी। शीर्ष अदालत ने 25 मार्च को दिव्यांग लोगों को भारतीय पुलिस सेवा (IPS), दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप पुलिस सेवा (DANIPS) और भारतीय रेलवे सुरक्षा बल सेवा (IRPFS) के लिए सिविल सेवाओं में उनकी प्राथमिकता के रूप में अस्थायी रूप से आवेदन करने की अनुमति दी थी।