अरविन्द मिश्र
केंद्रकी मोदी सरकार देशमें हाइड्रोजन इकोनॉमीके विकासके लिए एक समिति भी बनाने जा रही है। हाइड्रोजन ऊर्जाकी संभावनाओं एवं अवसरको तलाशने उद्योग जगत और विभिन्न साझेदारोंसे महत्वपूर्ण सुझाव लिये जा रहे हैं। कुल मिलाकर इन प्रयासोंका उद्देश्य देशमें हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था या ऊर्जा अनुपातमें हाइड्रोजन एनर्जीकी सहभागिताको बढ़ाना है। दरअसल लगातार बढ़ते प्रदूषणके फलस्वरूप कार्बन उत्सर्जनमें हो रही बेतहाशा वृद्धिकी वजहसे वैश्विक तापमानमें औद्योगिक क्रांतिके बादसे ही निरन्तर वृद्धि हो रही है। हिमालयसे लेकर अंटार्कटिकामें बर्फकी पिघलती चादरने मानव जीवनके समक्ष गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। इन सबके पीछे जीवाश्म ईंधनोंके अतिशय प्रयोगको महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। पेट्रोल और डीजलसे चलनेवाले वाहनोंसे निकलनेवाला जहरीला धुआं पर्यावरण ही नहीं मानवीय सभ्यतापर प्रश्नचिह्नï खड़े कर रहा है। खास बात यह है कि जीवाश्म ईंधनके स्रोत जहां सीमित हैं वहीं यह अक्षय ऊर्जा संसाधनोंके मुकाबले पर्यावरणको कई गुना अधिक प्रदूषित करते हैं। इन परिस्थितियोंमें हाइड्रोजन ऊर्जाको भविष्यके ईंधनके रूपमें देखा जा रहा है। वर्तमान परिस्थितियोंमें हाइड्रोजनकी उपयोगिताको देखते हुए विश्वके कई विकसित और विकासशील देशोंने इस दिशामें प्रभावी कदम उठाये हैं। यहांतक कि दुनियाकी दिग्गज ऑटोमोबाइल कंपनियां अब हाइड्रोजन फ्यूलसे चलनेवाली कारोंका अविष्कार कर रही हैं। सेमी हाइब्रिड और फुल हाइब्रिड कारोंके नये वैरियंटसे बाजार गुलजार हो रहे हैं। नेक्स्ट फ्यूल सेल तकनीकसे चलनेवाली कारें तो ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री और परिवहन क्षेत्रके लिए अभूतपूर्व अविष्कार मानी जा रही हैं। दुनियाभरकी ऑटोमोबाइल कंपनियां इस दिशामें व्यापक निवेश कर रही हैं।
दरअसल हाइड्रोजन फ्यूल सेल हवा और पानीमें किसी तरहके प्रदूषक तत्व नहीं छोड़ते हैं। इसमें प्रेरक शक्तिके लिए हाइड्रोजनका उपयोग होता है। एक बार टैंक फुल होनेपर हाइड्रोजन कार ४०० से ६०० किलोमीटरतक चल सकती हैं। यही नहीं इन वाहनोंको पांचसे सात मिनटमें रीफ्यूल भी किया जा सकता है। वहीं इलेक्ट्रिक कारोंको पूरी तरह चार्ज होनेमें १२ घंटेसे अधिक समय लग जाता है। सरल अर्थोंमें आप कह सकते हैं कि हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीक रासायनिक ऊर्जाको विद्युत ऊर्जामें परिवर्तित करती है। इसमें हाइड्रोजन गैस और ऑक्सीजनका उपयोग होता है। खास बात यह है कि हाइड्रोजनके दहनसे कोई प्रदूषण भी नहीं होता। भारतके संदर्भमें यदि बात करें तो हाइड्रोजन ऊर्जा हमारे लिए राजस्वकी बचतका भी माध्यम बन सकती है। ऊर्जाके इस अक्षय स्रोतका जितना अधिक उपयोग बढ़ेगा, उसी अनुपातमें सात लाख करोड़ रुपयेके तेल आयातको कम करनेमें मदद मिलेगी।
ऊर्जा क्षेत्रमें दस्तक दे रही इस नयी क्रांतिको समझनेके लिए इसके तकनीकी पहलुओंके साथ इसके विकास एवं अनुप्रयोगसे जुड़ी पृष्ठभूमिको भी समझना होगा। कोयलेकी जगह पानी ही भविष्यमें ऊर्जाका आधार बनेगा, १८७४ में इस सिद्धांतको प्रमाणित करनेवाले ज्यूल्स वर्ने अब इस दुनियामें नहीं हैं। लेकिन जिस हाइड्रोजन अर्थव्यवस्थाका स्वप्न उन्होंने देखा था, उस दिशामें दुनियाकी कई आर्थिक महाशक्तियां कदम बढ़ा रही हैं। ६० के दशकमें अमेरिकी वैज्ञानिकोंने नासाके चंद्रमापर भेजे गये अपोलो मिशनमें लिक्विड हाइड्रोजन फ्यूलका उपयोग अंतरिक्ष मिशनमें कर विश्व जगतको हतप्रभ कर दिया। इस अंतरिक्ष अभियानमें तरल हाइड्रोजनको रॉकेट फ्यूलके रूपमें इस्तेमाल किया गया। स्पेस शटलके इलेक्ट्रॉनिक सिस्टमको हाइड्रोजन फ्यूल सेल्सके जरिये उत्प्रेरक ऊर्जा उपलब्ध करायी जाती है। इससे पानीके रूपमें स्वच्छ सह-उत्पाद (बाइ प्रॉडक्ट) तैयार होता है। इसका उपयोग अंतरिक्ष यात्री जलके रूपमें भी करते हैं। हाइड्रोजन और ऑक्सीजनके मिश्रणसे फ्यूल सेल्स इलेक्ट्रिसिटी हीट पैदा की जाती है। इन फ्यूल सेलकी आप बैटरीसे तुलना कर सकते हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि बैटरी और हाइड्रोजन फ्यूल सेल दोनों समान स्वरूपमें कार्य करती हैं। आजसे पांच-छह दशक पूर्व इस बातपर बहस होती थी कि क्या हाइड्रोजन पेट्रोल और डीजलका स्थान ले लेगा। जर्मनी जैसे देशने स्टील उत्पादनमें कोयलेकी जगह र हाइड्रोजन एनर्जीका सफलतापूर्वक प्रयोग किया है, वहां रेलवे परियोजनाओंमें हाइड्रोजन ऊर्जाके अनुप्रयोग बढ़ रहे हैं। जबकि हाइड्रोजन बसें काफी समयसे सड़कोंपर सरपट दौड़ रही हैं। आर्थिक संघटनोंके मुताबिक २०५० तक हाइड्रोजन बाजार २.५ खरब डालर का होगा।
भारतके संदर्भमें बात करें तो हम विगत कुछ वर्षोंमें जिस तेजीसे ऊर्जाके वैश्विक केंद्र बनकर उभरे हैं, उसे देखते हुए हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादनकी दिशामें प्रभावी कदम बढ़ाना होगा। भारत इंटरनेशनल पार्टनर्शिप ऑन हाइड्रोजन इकोनॉमी (आईपीएचई) के १६ संस्थापक सदस्योंमें शामिल है। वर्तमानमें इसकी सदस्य संख्या १९ है। इसी तरह २००३ में स्थापित यूरोपीयन आयोगका भी सदस्य है। भारत ऊर्जा क्षेत्रको लेकर हमेशासे प्रयोगधर्मी रहा है। भारतका लक्ष्य है कि २०२६-२७ तक घरेलू ऊर्जा अनुपातमें ४३ प्रतिशत हिस्सेदारी अक्षय ऊर्जा साधनकी हो। सार्वजनिक क्षेत्रके साथ निजी क्षेत्रकी सहभागितासे हम ऊर्जाके वैश्विक नेतृत्वकर्ता बन रहे हैं। देशके प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा हाइड्रोजन इकोनॉमीके सबसे बड़े पैरोकारोंमेंसे एक हैं। ग्रीन इनिशिएटिव फ्यूचर ट्रांसपोर्ट और ग्रीन इनिशिएटिव फॉर पावर ट्रांसमिशन जैसी पहलपर उन्होंने विशेष जोर दिया। २००६ में नेशनल हाइड्रोजन एनर्जी बोर्डका गठन हुआ। बोर्डने एक रोडमैप तैयार किया था, जिसके मुताबिक २०२० तक हाईड्रोजन ईंधनसे चलनेवाले दस लाख वाहनोंको सड़कपर दौड़ानेका लक्ष्य था। इस दिशामें काफी प्रगति हुई है। वित्तीय वर्ष २०२०-२१ में केंद्र सरकारने २.८ मिलियन डालरसे अधिकका बजट भी हाइड्रोजन ऊर्जाके लिए तय किया है। भारत ऊर्जासे अंत्योदयके जिस मार्गपर आगे बढऩा चाहता है, वहां हाइड्रोजन ऊर्जाका आधार इसलिए भी बन सकती है क्योंकि हमारे यहां पशु अपशिष्ट और रिसाइकिल किये जाने योग्य कचरेकी पर्याप्त उपलब्धता होती है, बशर्ते कचरेसे मेथेन और गोबरसे हाइड्रोजन तैयार करनेकी तकनीकको सस्ती बनाया जाय। हालांकि हाइड्रोजन एनर्जीके लिए किस प्रकारके बायोफ्यूलका इस्तेमाल करना है, इसपर पर्यावरण एवं पारिस्थितिक तंत्रकी अनुकूलताके आधारपर विचार करना होगा। उदाहरणके लिए चावलसे एथनॉल बनानेकी प्रक्रियाके कुछ दुष्परिणाम भी सामने आये हैं। धानकी अत्यधिक खेती भू-क्षरण, भू-जल स्तरके नीचे खिसकने और खाद्य सुरक्षाको प्रभावित करती है।
यदि हम कृषि कार्योंसे निकले अपशिष्ट और अन्य बायोमासका प्रयोग हाइड्रोजन ऊर्जा पैदा करनेके लिए कर लेते हैं तो यह ऊर्जाके एक नये युगका सूत्रपात होगा। हमारे यहां इस्पात उत्पादनके लिए आयातित कोयलेपर निर्भरता अधिक है। केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस तथा इस्पातमंत्री धर्मेंद्र प्रधान इस दिशामें प्रयासरत हैं कि स्टील उत्पादनके लिए गैस आधारित उत्पादनको बढ़ावा मिले। इसीके समानांतर हाइड्रोजन भी स्टील उत्पादनके वैकल्पिक ईंधनके रूपमें उपयोगी हो सकता है। विश्वके कई देशोंमें हाइड्रोजन एनर्जी सिविल एविएशनसे लेकर जहाजरानी और कम दूरीके परिवहनका सशक्त माध्यम सिद्ध हो रही है। भारत यदि उड़ान जैसी योजनाओंके जरिये घरेलू नागरिक उड्यन क्षेत्रको विस्तार देना चाहता है तो उसके लिए महंगे एयर ट्रैफिक फ्यूलकी जगह हाइड्रोजन एनर्जी टिकाऊ ईंधन स्रोत बन सकती है। लेकिन इसके लिए इस दिशामें व्यापक निवेशकी आवश्यकतासे नकारा नहीं जा सकता। सर्वप्रथम, हाइड्रोजन इकोनॉमीको लोकप्रिय बनानेके लिए हाइड्रोजन स्टेशनकी श्रृंखला खड़ी करनी होगी। सुरक्षा मानकोंको पूरा करते हुए यदि हम इस दिशामें ठोस कदम उठा पाये तो पर्यावरणकी समृद्धिके साथ भारतके लिए आर्थिक तरक्कीका नया प्रवेश द्वारा हाइड्रोजन इकोनॉमीके माध्यमसे साकार होगा। इससे ग्रीन हाउस गैसोंमें कटौतीका वह लक्ष्य भी पूरा होगा, जिससे न सिर्फ हमारी वर्तमान, बल्कि आनेवाली पीढिय़ोंके जीवन स्तरको भी गुणवत्ता मिलेगी।