सम्पादकीय

आत्मज्ञानकी प्राप्ति


जग्गी वासुदेव

आत्मज्ञान प्राप्त होनेका अर्थ यह नहीं है कि यह कूदकर किसी लक्ष्यको प्राप्त कर लेने जैसा नहीं है अथवा किसी पर्वतके शिखरपर पहुंच जाने जैसा भी नहीं है। यह तो सिर्फ स्वको जान लेना ही है। जब उस सत्यको जान लेते हैं जो पहलेसे ही वहां है तो हम इसे आत्मज्ञान कहते हैं। यह बस ऐसा है कि आपकी आंखोंके सामने ही कुछ था परन्तु आप उसे देख ही नहीं रहे थे और अब आपने अचानक ही उसे देख लिया। आप सिर्फ किसी चीजमें गहरे उतर सकते हैं, जो वहां पहलेसे ही है और उसे जान सकते हैं, समझ सकते हैं। यही आत्मज्ञान या मुक्ति है। सिर्फ यह समझमें आनेके लिए कि आपको कुछ जानना भी है, आपको किसी ऐसे व्यक्तिके पास जाना होगा जो स्वयं पूर्ण रूपसे आत्मज्ञानी हो। नहीं तो आप अपने आप ही कोई कल्पना कर लेंगे और यह विश्वास करने लगेंगे कि आप सब कुछ जानते हैं। दूसरे शब्दोंमें, आपको पहले यह जानना चाहिए कि आपको नहीं पता कि आत्मज्ञान होनेका क्या अर्थ है। समस्या यह है कि लोग यह समझते ही नहीं कि वे कुछ जानते नहीं हैं। बचपनमें, मेरी समस्या यह थी कि मैं कुछ भी नहीं जानता था। यदि मैं कोई पत्ती अपने हाथोंमें लेता तो मैं बस उसे देखते हुए घंटों बैठा रहता। यदि कोई मुझे पीनेके लिए पानी देता तो मैं पानी पिये बिना घंटोंतक उसे एकटक देखता ही रहता। अपने बिस्तरपर बैठे हुए, मैं सारी रात बस अंधेरेको देखता रहता। मैं हर समय किसी न किसी चीजको एकटक देखता ही रहता था। मेरे आसपासके लोगोंको लगता था कि मुझे कोई मनोवैज्ञानिक समस्या है। कुछ लोगोंको ऐसा भी लगता था कि मुझपर किसी भूतका असर है। परन्तु वास्तवमें क्योंकि मैं कुछ भी नहीं जानता था अत: जिस किसी वस्तुपर मेरी नजर पड़ती, मैं बस उसे एकटक देखता रहता। उसके बारेमें पता करनेके लिए मुझे कोई और तरीका नहीं आता था। उस समय, मेरे आसपासके लोगोंको ऐसा लगता था जैसे वह सब कुछ जानते हैं और अपने ज्ञानके कारण वह खुश प्रतीत होते थे। वह सब कुछ जानते थे और जो आंखोंको नहीं दिखती थीं, उनके बारेमें भी। वह ईश्वरके बारेमें जानते थे, स्वर्ग क्या है यह भी जानते थे, वह सारा बह्मïांड जानते थे। मैं अकसर यह सुनता था कि बहुतसे लोग ऐसा दावा भी करते थे कि वह देवताओंसे बातें करते हैं। मुझे यह जाननेमें रुचि हुई कि भगवानके साथ बातें करनेके बाद क्या होता था। अत: मैं किसी मंदिरके बाहर बैठकर उन लोगोंको ध्यानपूर्वक देखता था जो मंदिरमें आते थे। परन्तु मुझे शीघ्र ही समझमें आया कि वह सिर्फ दिखावा था। अत: मैंने स्वयंके अंदर ही प्रभुको ढूंढऩा शुरू किया।