हाजीपुर। बिहार से सुखी मछलियां पश्चिम बंगाल भेजी जा रही हैं। यह सुखी मछलियां वहां पर लोगों को खूब लुभा रही हैं और लोग जमकर इसका स्वाद ले रहे हैं। प्रदेश के सारण जिले के कुछ क्षेत्रों में युवाओं ने इसे रोजगार के रूप में अपना रखा है। नयागांव, गढख़ा, मटिहान समेत अन्य स्थान पर लोग छोटी मछलियों को पकड़ते हैं। इसके बाद उन्हें सुखाया जाता है। सुखाने के बाद छोटे और बड़े रूप में उनकी छटाई की जाती है।
इस काम को करने वाले युवाओं का कहना है कि एक ओर केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक प्रोसेस्ड फूड के उत्पादन का डंका पीट रही है, लेकिन इस स्थान के जो युवक अपने हुनर और दिमाग से एक नया भविष्य बना रहे हैं उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है। कुछ युवक बताते हैं इन मछलियों को बरसात के समय सुखाने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। एक तो धूप नहीं मिलती है, जबकि उस समय मछलियां खूब मिलती हैं। जिससे काफी संख्या में मछलियां बर्बाद हो जाती हैं, अगर उन मछलियों को बचा लिया जाए तो शायद एक अच्छी खासी रकम बचाई जा सकती है।
इन युवाओं के पास इस काम का ना कोई प्रशिक्षण है कि इन मछलियों को कैसे पैक किया जाए। उनके पास कोई ब्रांड नहीं है कि उसे अपना बताकर बेचा जाए। जब एक ट्रक मछलियां जमा हो जाती हैं तो समूह बनाकर उसे बंगाल के चांडिल, नागालैंड, आसाम के कुछ स्थानों पर लेकर जाते हैं। जहां उन स्थानों के व्यवसायी अपनी मनमर्जी के हिसाब से दाम लगाकर मछलियों को खरीद लेते हैं और उन्हें अपने ब्रांड और नाम के साथ बाजार में उतार कर बेचते हैं।
छपरा-हाजीपुर के बीच बन रहे राष्ट्रीय राजमार्ग पर मछलियों को युवक सुखा रहे हैं। दिन भर उनकी रखवाली कर रहे हैं। मछुआरे प्रहलाद महतो, ने कहा कि बिहार सरकार की ओर से इसकी बिक्री या कोई सुविधा नहीं है। इस प्रकार की मछली के बिक्री का स्थान नहीं है। जिस के कारण अच्छी कीमत बिचौलियों को मिलती है। वह लोग भी उनके हाथो बेचने को मजबूर है, यह सुखाने के बाद आसाम , बंगाल, सिलीगुड़ी, सिक्किम, नागालैंड, सहित कई राज्यो में इन सुखी मछली की मांग है। श्री महतो बताते हैं कि एक आदमी के जरिये गांव से सूखी मछली ले जाते है और पैसा खाते के माध्यम या चेक से हमें पेमेंट भेजते हैं।
योगेंद्र महतो कहते हैं कि इस क्षेत्र में इन सुखी मछलियों को कैसे बनाया जाता है, इसकी जानकारी नहीं है। उन लोगों के पास भी ऐसा कोई प्रचार प्रसार का माध्यम नहीं है जिससे लोगों को बताया जा सके कि यह मछलियां सालों भर खाई जा सकती हैं। इनका स्वाद और इनकी पौष्टिकता कहीं से कम नहीं है। श्री महतो कहते हैं कि अगर सरकार कुछ व्यवस्था कर दे तो शायद उनकी आमदनी में भी काफी इजाफा हो सकता है।