नई दिल्ली । देश की आजादी के 75 साल पूरे हो गए हैं। हम अब तक की अपनी उपलब्धियों पर संतोष की सांस तो ले सकते हैं, लेकिन चैन से बैठने का समय अभी नहीं आया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सामने अब तक का सबसे बड़ा लक्ष्य रख दिया है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि 2047 यानी जब देश आजादी के सौ साल पूरे कर रहा होगा, तब भारत से विकासशील होने का ठप्पा मिट चुका होगा। यह विकसित राष्ट्र बन चुका होगा। यह संकल्प कठिन है लेकिन नामुमकिन नहीं। आइए करें भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के तमाम आयामों की पड़ताल जो हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
आजादी के बाद 75 साल में भारत ने आर्थिक एवं मानव विकास के लगभग सभी मानकों पर उल्लेखनीय प्रगति की है। आज पीपीपी (परचेजिंग पावर पैरिटी) के आधार पर भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हालांकि हम पिछले साढ़े सात दशक की उपलब्धियों पर संतुष्ट होकर नहीं बैठ सकते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पांच प्रण का आह्वान किया है।
चार श्रेणियों में बंटवारा
पांच प्रणों में पहला है भारत को विकसित राष्ट्र बनाना। इसके लिए हमें समझना होगा कि विकसित राष्ट्र कहते किसे हैं। अभी विश्व बैंक देशों को उनकी आय के हिसाब से चार श्रेणियों में बांटता है- निम्न आय, निम्न मध्यम आय, उच्च मध्यम आय और उच्च आय श्रेणी। 2,277.4 डालर प्रति व्यक्ति जीडीपी के साथ भारत अभी निम्न मध्यम आय वाले देशों की श्रेणी है।
तेज आर्थिक विकास की दरकार
भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आने के लिए इसे 12 हजार डालर पर लाना होगा। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भारत को लगातार तेज आर्थिक विकास की आवश्यकता होगी। उच्च आर्थिक विकास के लिए मैन्यूफैक्चरिंग में निवेश चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने लगभग सभी महत्वपूर्ण सेक्टर में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) स्कीम की घोषणा की है। इससे न केवल कुछ महत्वपूर्ण टेक्नोलाजी के मामले में हम आत्मनिर्भर हो सकेंगे, बल्कि मैन्यूफैक्चरिंग हब भी बन सकेंगे।
व्यापारिक समझौतों पर फोकस
सप्लाई चेन बाधित होने से चीन से बहुत सा निवेश निकल रहा है और ऐसे में पीएलआइ स्कीम ने भारत को निवेश के लिए अच्छे गंतव्य के रूप में सामने रखा है। यूएई, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ आपसी व्यापारिक समझौते करने की भारत की कोशिश से इसे और लाभ मिल रहा है।
ईज आफ डूइंग बिजनेस में सुधार
बिबेक देबराय (चेयरमैन, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति) और आदित्य सिन्हा (एडिशनल प्राइवेट सेक्रेटरी, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति) का मानना है कि कारोबारी सुगमता यानी ईज आफ डूइंग बिजनेस के मामले में हमने खुद को काफी बेहतर किया है। विश्व बैंक की ईज आफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में भारत 2014 की 142वीं रैंकिंग से 2020 में 63वीं रैंकिंग पर पहुंच गया।
न्यायिक सुधार की जरूरत
लेकिन, एनफोर्समेंट आफ कांट्रैक्ट्स यानी अनुबंधों के प्रवर्तन के मानक पर हम अब भी 163वें स्थान पर हैं। ऐसे मामलों में न्यायपालिका की अच्छी खासी भूमिका देखने को मिलती है। किसी निवेशक के लिए यह मानक बहुत अहम है। इससे उसे यह समझने में मदद मिलती है कि किसी कारोबारी विवाद की स्थिति में कितना समय और खर्च आ सकता है। इस मानक पर हमारी स्थिति तत्काल न्यायिक सुधार की जरूरत दर्शाती है।
श्रम एवं पूंजी बाजार में भी हो सुधार
इसी तरह श्रम एवं पूंजी बाजार में भी सुधार महत्वपूर्ण हैं। भारत में हर सुधार को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। बात चाहे कृषि सुधारों की हो या श्रम सुधारों व न्यायिक सुधारों की, स्थिति सब जगह समान है। सुधार हमेशा यथास्थिति को चुनौती देते हैं और इसीलिए इन पर कदम बढ़ाना मुश्किल होता है। कई सरकारों में वह राजनीतिक इच्छाशक्ति भी नहीं होती है। जो सरकार हिम्मत करती है, उसे विरोध का सामना करना पड़ता है। इस मानसिकता से उबरते हुए सभी लोगों को सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा, जिससे देश को विकसित बनाया जा सके।
स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में निवेश की दरकार
एक और बात, विकास का अर्थ मात्र प्रति व्यक्ति आय बढ़ाना ही नहीं है, बल्कि सामाजिक एवं मानव विकास भी इसके घटक हैं। पिछले आठ साल में स्वच्छ भारत अभियान, आयुष्मान भारत और पोषण अभियान से अच्छे नतीजे मिले हैं। अगले 25 साल में हमें स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय निवेश की आवश्यकता होगी। भारत को श्रम क्षेत्र में कौशल की कमी को दूर करने पर भी फोकस करना होगा।
उच्च उत्पादकता वाले माडल को अपनाने की जरूरत
डा. विकास सिंह (मैनेजमेंट गुरु और वित्तीय एवं समग्र विकास के विशेषज्ञ) की मानें तो भारत विकास की ऐसी ही यात्र पर है। अगले 25 साल में किए गए हमारे प्रयास एक समृद्ध इतिहास की नींव बनेंगे। सुधारों की दिशा में मौजूदा सरकार के प्रयास उल्लेखनीय रहे हैं। उद्योगों में विकास का इंजन बनने की क्षमता है। हमारे यहां सस्ता टेलीकाम और इंटरनेट है। टेक्नोलाजी के मामले में हम ऊंची छलांग लगा रहे हैं। हमारी जनसांख्यिकीय विविधता भी हमारी ताकत है। अब हमें उच्च उत्पादकता वाले माडल को अपनाने की आवश्यकता है।
आर्थिक सुधारों पर देना होगा जोर
10 प्रतिशत की विकास दर देखने में बड़ा लक्ष्य है, लेकिन हम इसे हासिल कर चुके हैं और आगे भी कर सकते हैं। सरकार को सामाजिक समरसता की नीति के साथ आर्थिक सुधारों पर फोकस करना होगा। श्रम सुधारों का लक्ष्य केवल प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाना ही नहीं, बल्कि विकास के अवसर पैदा करना भी होना चाहिए। उच्च शिक्षा ऐसी हो, जिससे कौशल विकास हो। इसी तरह वित्तीय समावेशन में लैंगिक समानता दिखनी चाहिए।
रोजगार पर करना होगा फोकस
विकास पर फोकस करते हुए हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विकास एक प्रक्रिया है। विकास के साथ सामाजिक कल्याण को फोकस में रखना जरूरी है। सबको सम्मानजनक जीवन देना, हर सक्षम को रोजगार देना और हर नवजात को अच्छा भविष्य देना हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
छोड़नी होगी गुलामी की मानसिकता
विरासत पर गर्व करना भी एक अहम प्रण है। पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने इस पर जोर दिया है। भारतीयों को अपनी भारतीय पहचान पर गर्व होना चाहिए। गुलामी की मानसिकता से बाहर आने का प्रण भी विकास के लिए आवश्यक है। हमें पश्चिम का अंधानुकरण नहीं करना चाहिए। भारत को अपनी राह बनानी होगी और हमने इसकी शुरुआत कर दी है। हमें भारतीयों की समृद्धि के लिए लिए गए फैसलों पर पश्चिम की मुहर का इंतजार नहीं करना चाहिए।
एकसाथ मिलकर करना होगा काम
एकता एवं एकजुटता भी विकास की राह में एक ऐसा ही प्रण है। सभी तरह के भेदभाव भुलाकर सबके साथ आने से ही देश आगे बढ़ सकता है। अगले 25 साल बहुत अहम हैं। चुनौतियां बहुत हैं, लेकिन भारत उनसे पार पाने में भी सक्षम है। अगले 25 वर्ष में भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का प्रण हर भारतीय को लेना चाहिए। इस दिशा में सभी राजनीतिक दलों और विचारधाराओं को सरकार के साथ मिलकर लक्ष्य की दिशा में बढ़ने का प्रयास करना होगा।