नई दिल्ली, ईद इस्लामिक कैलेंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाई जाती है। यह महीना रमजान के बाद आता है। ईद से पहले रमजान के दौरान जमात-उल-विदा यानी आखिरी जुमे की नमाज का महत्व बड़ा माना गया है। इस्लाम धर्म में जुमा यानी शुक्रवार के दिन को भी खास माना गया है। ऐसे में जब जुमा का दिन रमजान के महीने में आता है, तो उसकी अहमियत और भी बढ़ जाती है। खासतौर पर आखिरी जुमा खास माना जाता है। हदीस के मुताबिक, रमजान में इबादत और नेकी के बदले 70 गुना ज्यादा सवाब (पुण्य) मिलता है। आज रमजान का आखिरी जुमा मनाया जा रहा है, जिसे अलविदा जुमा भी कहा जाता है। तो आइए जानें इसकी खासियत क्या है।
अलविदा जुमा क्या है?
रमजान का आखिरी जुमा, अलविदा जुमा कहलाता है, जो मुसलमान समुदाय के लिए बेहद खास होता है। रमजान में 30 दिनों तक रोजे रखे जाते हैं, यानी करीब 4 हफ्ते लोग उपवास रखते हैं, इन चार हफ्तों में जुमा तीन-चार बार आता है, लेकिन आखिरी जुमा ही खास माना जाता है। इस साल अलविदा जुमा देश में 21 अप्रैल को मनाया जा रहा है।
अलविदा जुमा के दिन लोग क्या करते हैं?
अलविदा जुमा के दिन भी सभी का रोज़ा होता है। साथ ही यह दिन खास भी होता है इसलिए लोग नए कपड़े पहनते हैं, अल्लाह की इबादत में नमाज पढ़ते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा सवाब मिल सके। अल्लाह का लाख-लाख शुक्रिया अदा करते हैं और गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए दुआ मांगते हैं।
हदीस में जुमे के दिन को बताया है खास
हदीस में बताया गया है कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने जुमे के दिन को हर मुसलमान के लिए ईद का दिन बताया है। इस्लाम में माना गया है कि जुमे की नमाज से पहले पैगंबर मोहम्मद नहाकर पाक यानी साफ-सुथरे कपड़े पहनते थे, इत्र लगाते और आंखों में सुरमा लगाकर नमाज के लिए जाते थे। इसलिए हर मुसलमान जुमे की नमाज के लिए खास तरह से तैयारी करता है।
इसके अलावा इस्लाम धर्म में मान्यता है कि अल्लाह ने ‘आदम’ को जुमे के दिन ही बनाया था और इसी दिन आदम ने पहली बार जन्नत में भी कदम रखा था।
एक हदीस में यह भी कहा गया है कि जब जुमे का दिन आता है, तो हर मस्जिद के दरवाजे पर फरिश्ते खड़े होते हैं और जुमे की नमाज के लिए आने वाले हर शख्स का नाम भी लिखते हैं।