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DL: क्या ड्राइविंग लाइसेंस देने के लिए कानून में बदलाव जरूरी है? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा सवाल


नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (13 सितंबर) को केंद्र सरकार से पूछा कि क्या ड्राइविंग लाइसेंस देने की व्यवस्था जारी करने के लिए कानून में बदलाव जरूरी है? कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या हल्के मोटर वाहन के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति कानूनी तौर पर एक विशेष वजन के परिवहन वाहन चलाने का हकदार है या नहीं? इस कानूनी सवाल पर कानून में बदलाव जरूरी है।

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने यह देखते हुए कि ये लाखों लोगों की आजीविका को प्रभावित करने वाले नीतिगत मुद्दे हैं पर टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि सरकार को इस मामले पर नये सिरे से विचार करने की जरूरत है। सीजेआई ने साथ ही इस बात पर जोर दिया कि इस पर नीति स्तर पर विचार करने की जरूरत है।

दो महीने के भीतर प्रक्रिया को पूरा करे सरकार- SC

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह दो महीने के भीतर इस प्रक्रिया को पूरा करे और लिए गए निर्णय से उसे अवगत कराए। कोर्ट ने इसमें कहा है कि कानून की किसी भी व्याख्या में सड़क सुरक्षा और सार्वजनिक परिवहन के अन्य उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा की वैध चिंताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

 

कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की मदद मांगी थी

शीर्ष कोर्ट ने पहले इस कानूनी सवाल से निपटने के लिए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की मदद मांगी थी कि क्या हल्के मोटर वाहन के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति कानूनी रूप से एक विशेष वजन के परिवहन वाहन को चलाने का हकदार है।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की स्थिति जानना जरूरी

संविधान पीठ ने कहा था कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की स्थिति जानना जरूरी होगा क्योंकि यह तर्क दिया गया था कि मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2017 के फैसले को केंद्र ने स्वीकार कर लिया था और नियमों में संशोधन किया गया था।

 

क्या है मुकुंद देवांगन मामला?

मुकुंद देवांगन मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने माना था कि परिवहन वाहन, जिनका कुल वजन 7,500 किलोग्राम से ज्यादा नहीं है, को एलएमवी की कैटेगरी से बाहर नहीं रखा गया है। पीठ में जस्टिस हृषिकेश रॉय, पीएस नरसिम्हा, पंकज मिथल और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने कहा, “देश भर में लाखों ड्राइवर हो सकते हैं जो देवांगन फैसले के आधार पर काम कर रहे हैं। यह कोई संवैधानिक मुद्दा नहीं है। यह पूरी तरह से एक वैधानिक मुद्दा है।”

कोर्ट ने आगे कहा, “यह सिर्फ कानून का सवाल नहीं है, बल्कि कानून के सामाजिक प्रभाव का भी सवाल है। सड़क सुरक्षा को कानून के सामाजिक उद्देश्य के साथ संतुलित किया जाना चाहिए और आपको यह देखना होगा कि क्या इससे गंभीर परेशानियां पैदा होती हैं। हम सामाजिक मुद्दों का फैसला संविधान पीठ में नहीं कर सकते।”