सम्पादकीय

आनन्द और खुशियां 


सुधांशु जी महाराज 

कहावत है कि उजाडऩेवाला कभी आबाद नहीं होता, नीचे गिरानेवाला कभी ऊपर नहीं उठा करता। यह सत्य हम सबके जीवनपर हर पल लागू होता रहता है। भले प्रमादवश इसकी अनुभूति न कर सकें। परन्तु ध्यान रहे हमें नीचे गिराने एवं उठानेका कार्य करते है हमारा मन और उसमें पैदा होनेवाले हमारे सकारात्मक एवं नकारात्मक विचार। सकारात्मक विचार मनमें शुद्ध कल्पना शक्ति भरते हैं, मनको दृढ़ बनाते हैं। दृढ़ मनसे ही जीवन महान होता है। मनोविश्लेषकोंका मत है कि विचारोंके प्रवाहको प्रवाहित करनेवाली शक्ति मन है, इसलिए ध्यान रहे कि मनमें उठनेवाले विचार दूषित न हों। इसके लिए सकारात्मक विचारवाले ग्रंथ पढ़े। महापुरुषोंका जीवन, धार्मिक ग्रन्थ और धार्मिक पुस्तकें पढ़ें, जो विचारोंको पवित्र और सुन्दर बनाते हैं और उन विचारोंकी महक चारों ओर फैलती है। मनके बदलनेसे ही व्यवहार-विचार, दृष्टिकोण और कल्पनाएं भी प्रभावित होती हैं। कहते हैं शान्त मन व्यक्तिके अस्तित्वके करीब होता है। यदि कभी निराशाकी स्थिति आये भी तो अपना दृष्टिकोण बदलकर सोचें कि हर रातके बाद सवेरा होगा, हर दु:खके बाद सुख आयेगा और इस भावको दोहराते रहें। घबरायें नहीं, अपना धीरज न छोड़े, निराशाकी कालिमा मनके कागजसे हटा कर, उसमें सुन्दर विचारोंका रंग भरना यही तो है। जिससे एक दिन व्यक्ति शक्तिवान बनता है, उसकी मन: स्थिति शक्तिशाली हो जाती है। महापुरुष मनको इसी आधारपर शक्तिमें रूपांतरित करनेकी बात कहते हैं। वास्तवमें यदि स्वैच्छाचारिताको सदविचारोंके द्वारा रूपान्तरित कर सके तो जीवनमें दैवीय वृत्ति, श्रेष्ठताका आसन सहज प्राप्त होगा और अन्दरका देवता प्रकट होगा। मनुष्यका मन दो तरहकी दृष्टिवाला होता है, एक दोष दृष्टि और दूसरा गुण ग्राहक। मनको दोष दृष्टिवाला बनायेंगे तो बुराईके अलावा कुछ देखनेको नहीं मिलेगा। तब सदैव बुरे नकारात्मक विचार ही मनपर जमते जायेंगे। बुरे विचार सदा व्यक्तिको तोडऩेका काम करते हैं, जोडऩेका नहीं। नकारात्मक विचार छल, कपट, उत्तेजना, झूठ, निराशा पैदा करते हैं। नकारात्मक विचार अंत:करणमें घबराहट और अनुशासनहीनता जैसे विकारोंको जन्म देते हैं। व्यक्तिमें नशा करनेतककी आदत बन जाती है, वह आलसी बन जाता है और जिन्दगी बोझ बन जाती है। वैसे भी अशान्त मन अपने अस्तित्वको भूला रहता है। ऐसेमें हीनताभरे विचार व्यक्तिके व्यक्तित्वको नीचे गिरा देते हैं और व्यक्ति टूटता जाता है। यह भी कटु सत्य है कि कभी-कभी जीवनमें बहुत कुछ अनचाहा आता है, जो चाहते हैं वह नहीं मिलता, ऐसे अनचाहे भावोंसे मन कहीं-न-कहीं टीससे भरता है। यदि इसी भावको हम अंदरतक बैठा लिए तो जीवन जीना दूभर हो जाता है। क्योंकि गलत नकारात्मक विचार अन्त:करणपर हावी हो जाते हैं और जीवनको नारकीय बनाते हैं। जबकि सकारात्मक सोच हमें सदैव अपनी दृष्टिको बदलकर उसे सकारात्मक करनेपर जोर देती हैं। किसी महापुरुषने कहा है कि गलत विचारोंका स्वागत न करें, अच्छे विचारोंके लिए जगह बनायें। सदैव व्यक्तिको सकारात्मक विचारोंसे भरपूर होना चाहिए। प्रत्येक निगेटिविटीको समाप्त करनेवाले विचारोंको मनमें जमाकर रखना चाहिए। जिससे जब भी कोई नकारात्मक विचार आये तत्काल उसके विपरीतवाला सकारात्मक विचार चिंतन प्रारम्भ करें। इससे मन मजबूत होगा। आत्मविश्वास बढ़ेगा। वैसे भी जीवनमें सबको सबकुछ नहीं मिलता, कुछ-न-कुछ कमी तो हर किसीमें रहती ही है। अत: जो हमें मिला है, उसकी खुशी मनायें। हमेशा कमीके गममें क्यों डूबे। ज्यों ही व्यक्ति ऐसे सात्विक भाव अन्दर लायगा, मनमें शान्ति आयेगी और अंदरतक परिवर्तन आने लगेगा। ऐसेमें व्यक्ति वह दूसरोंके हाथकी कठपुतली बनने से बचेगा। कहते भी हैं दृष्टि बदलो, सृष्टि बदलेगी और विचार बदलो-जिन्दगी बदलेगी। हमें भी श्रेष्ठ विचारोंके प्रवाहसे मनकी कंगालीको तोडऩा है। यदि ऐसा कर सके तो निराशा भी दूर होगी और जीवनका विस्तार होगा। तब हम भी किसी व्यक्तिका जीवन बदल सकते हैं। वास्तवमें हमारा आनन्द, हमारी खुशियां सब हमारे विचारोंमें ही तो हैं।