पटना (विधि सं.)। पटना हाई कोर्ट ने सोमवार को अपने एक अहम आदेश में कहा कि मुखिया या उपमुखिया को हटाने से पूर्व यदि लोक प्रहरी की अनुशंसा नहीं ली गयी है, तो वैसी कार्रवाही गैरकानूनी होगी। हाई कोर्ट ने इस बात पर भी हैरानी जाहिर किया कि पंचायती राज कानून में लोक पहरी की भूमिका होने के बावजूद आज तक इस संस्था का गठन नहीं किया गया है और आज भी पंचायती राज संस्थानों में लोक पहरी की अनुशंसा बगैर ही मुखियों पर कार्यवाही राज्य सरकार कर रही है।
न्यायमूर्ति डॉ. अनिल कुमार उपाध्याय की एकलपीठ ने कौशल राय की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त आदेश को पारित किया। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता राजीव कुमार सिंह ने कोर्ट को बताया कि पद के दुरुपयोग के आरोप पर पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव के आदेश से मुखिया को पदच्युत किया गया, लेकिन उक्त कार्रवाही करने में लोक पहरी से कोई संस्तुति नहीं ली गयी, जबकि पंचायती कानूनी की संशोधित धाराओं में इस तरह का प्रावधान है कि मुखिया/उपमुखिया, प्रमुख वगैरह को हटाने से पूर्व लोक प्रहरी की अनुशंसा जरूरी है।
एक दशक पहले ही पंचायती राज कानून में ऐसा संशोधन किया गया लेकिन आज तक लोक प्रहरी संस्था का गठन तक नहीं किया गया। परिणामस्वरूप, राज्य सरकार के अधिकारी लोक प्रहरी को शक्तियों का स्वयं इस्तेमाल कर रहे हैं जो कि कानूनन सही नहीं है। याचिकाकर्ता सीतामढ़ी के डुमरी प्रखंड के बिशुनपुर ग्राम पंचायत के मुखिया थे। उसी प्रखंड के बरियारपुर ग्राम पंचायत के मुखिया पर ज्यादा गंभीर आरोप होते हुए भी उन्हें केवल चेतावनी देकर छोड़ दिया गया, जबकि याचिकाकर्ता को उसके पद से हटा दिया गया।
हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका को मंजूर करते हुए प्रधान सचिव के आदेश को निरस्त कर दिया। दरअसल, याचिकाकर्ता सीतामढ़ी के डुमरा ब्लॉक स्थित बिशुनपुर ग्राम पंचायत का मुखिया थे। ग्राम सभा की बैठक से पारित निर्णय पर उसने हर घर नल योजना के लिए १८ लाख रुपये की निकासी की लेकिन कुछ महीने के बाद तक योजना अमल नहीं होने पर उसने सूद समेत सरकारी राशि वापस बैंक में जमा कर दिया।
विभाग ने याचिकाकर्ता पर पद के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए कार्रवाही कर उसे पदच्युत कर दिया था। हाई कोर्ट ने इस कार्यवाही को पंचायती राज कानून का स्पष्ट उल्लंघन मानते हुए याचिकाकर्ता को वापस पद पर बहाल करने का निर्देश दिया।