पटना

पटना: कोरोना से बचाव एवं इलाज हेतु प्राणस्रोत की रक्षा जरूरी : वैद्य प्रो. दिनेश्वर प्रसाद


शुरू में ही इस पर ध्यान दिया जाय और आयुर्वेद का आश्रय लिया जाय तो महामारी के संकट से बचा जा सकता

पटना (आससे)। आयुर्वेद में प्राण वायु का प्रमुख स्थान दिमाग, छाती, कंठ, मुंह, एवं नाक है। यही सब स्थान या अंग कोरोना वायरस से विशेष रूप से प्रभावित होता है। प्राणवायु सामान्य रूप से ऑक्सीजन को कहते हैं। ऑक्सीजन सर्वत्र सभी समय प्राकृतिक रूप में उपलब्ध होता है परंतु प्राण वह स्रोतजब भी कृत्या रोग ग्रस्त हो जाता है तो नाक या मुंह से स्वास ऑक्सीजन लेने में कठिनाई उत्पन्न होने लगती है।

इस आशय की जानकारी साझा करते हुए राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज के प्राचार्य वैद्य प्रो॰ दिनेश्वर प्रसाद ने बताया- श्वसन का मुख्य अंग फेफड़ा होता है। मुख्य रूप से फेफड़े एवं हृदय का संचालन में प्राण वायु की अहम भूमिका होती है जिसका नियंत्रण मस्तिष्क द्वारा होता है। हृदय एक यंत्र के तरह रक्त का प्रवाह प्राणवायु के माध्यम से करता है जो शरीर के समस्त धातुओं तक जीवन एवं पोषण पहुंचाने का कार्य करता है। इन सब का वर्णन आयुर्वेदिक ग्रंथों यथा भेल संहिता, चरक संहिता के  चिकित्सा स्थान, सारंगधर संहिता, सुश्रुत संहिता के शरीर स्थान एवं चरक संहिता के विमान स्थान में बताया गया है।

कोरोनावायरस विशेष रूप से बहुत कम समय में प्राण स्रोत के उपरोक्त वर्णित सभी अंगों एवं स्थानों को तत्काल रूप से विकृत कर मरणासन्न की स्थिति पैदा कर देता है। अगर लक्षण के प्रारंभ होते ही बचाव के उपाय किए जाए तो इस भयंकर रोग से बचा जा सकता है। शुरू के दिनों में इस रोग में सर्दी खांसी बुखार सांस के वेग की कमी बढ़ जाना या कमी घट जाना, कंठ एवं छाती में तकलीफ इत्यादि की शिकायत होती है। स्थिति गंभीर होने पर बिना वजह चिल्लाना, घबरा जाना मूर्च्छा, बेहोशी की हालत एवं मौत की स्थिति भी बन जाया करती है। उस स्थिति में ऑक्सीजन का तत्काल प्रयोग प्राण को सुरक्षा प्रदान करता है।

करोना में भी ऑक्सीजन को लेकर मारामारी है लेकिन शुरू में ही इस पर ध्यान दिया जाय और आयुर्वेद का आश्रय लिया जाय तो महामारी के संकट से बचा जा सकता है। आयुर्वेद के अनुकूल आहार, बिहार, दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या, सद्वृत्त, आर्चा रासायन, वाजीकरण, पंचकर्म, क्रिया कल्प, योग के अंतर्गत आसन, प्राणायाम, षट्कर्म का प्रयोग कर इस रोग से बचाव के साथ-साथ इलाज संभव है। बहुत सारे लोग इन सब का प्रयोग कर इस काल में भी स्वस्थ एवं सुरक्षित हैं। कुछ लोग जिनका बॉडी यूनिटी अच्छा है उनमें उक्त लक्षणों का दिखना कोई आवश्यक नहीं है लेकिन जांच में पॉजिटिव आने पर उनको भी उपर्युक्त सुरक्षात्मक उपाय अपनाना बेहतर हो सकता है।

प्राण के उन स्रोतों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए वाकस, भारंगी एवं रागिनी का नियमित काढ़ा सेवन एवं भाप से तत्काल लाभ मिल सकता है। गोलकी, काली मिर्च, सोंठ, अदरक एवं पीपली का समान मात्रा में चूर्ण बनाकर 1 से 2 ग्राम की मात्रा को शहद से चाटने से लाभ प्राप्त होता है। यह आयुर्वेद के दुकानों पर त्रिकटु चूर्ण के नाम से मिलता या बिकता है। अदरक, हल्दी, छुआरा एवं मुनक्का का हलवा अथवा आंवला का हलवा, मुरब्बा भी फेफड़ा को बल प्रदान करता है।

इसी प्रकार सर्दी, खांसी, दमा जैसा लक्ष्मण के साथ-साथ भूख की कमी स्वाद की कमी गंद की कमी होने पर अदरक के छोटे-छोटे टुकड़े में नींबू एवं नमक डालकर उसे दिन में दो-तीन बार थोड़ा-थोड़ा लिया जा सकता है। चव्य, चित्रक, सोंठ, पीपल, पीपला मूल का सामान मात्रा में पाउडर जिसे आयुर्वेद के दुकानों में पंचकोल के नाम से प्राप्त किया जा सकता है, उसका काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा गुर एवं धृत डालकर किया जा सकता है।

इसे दिन में एक से दो बार केवल एक कप लिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त आयुर्वेद के दुकानों में अणु तेल, षडबिंदु तेल, अथवा सरसों तेल या बादाम रोग का तेल 4-4 बूंद दोनों नाक में डाला जा सकता है। दिन भर पानी के अंतर्गत लोंगिया अजवाइन को उबालकर पीने से भी लाभ मिल सकता है। 1 लीटर पानी में 15 से 20 लौंग अथवा 1 लीटर पानी ने एक मुट्ठी आसमान डालकर 15 से 20 मिनट तक उबालकर सेवन किया जा सकता है।

उपरोक्त बातों में संशय या विशेष जानकारी के लिए रात्रि में 8 बजे से 9 बजे के मध्य या रविवार को प्रात: 10 बजे से दोपहर 1 बजे के मध्य मोबाइल संख्या- 9773960287 पर जानकारी प्राप्त की जा सकती है।