किसानों की फसल खत्म, आगे की जिंदगानी संकट में
(आज समाचार सेवा)
पटना। कोरोना के दूसरे लहर का संकट लोगों की रोजी रोजगार को ठप कर दिया है। अघोषित लॉक डाउन ने बिहार की इकोनॉमी को प्रभावित कर दिया है। क्या थोक, क्या खुदरा कारोबार सब ठप हो गया है। किसानों की फसल खत्म हो गयी है। लोग चिंतित हैं कि आगे क्या करेंगे। एक आंकड़े के अनुसार सिर्फ पटना में प्रति दिन पांच हजार करोड़ से अधिक का कारोबार होता था। थोक कारोबार की बात छोड़ दीजिए। सब ठप हो गया है।
जब से कोरोना के दूसरे लहर का प्रकोप आया है तब से राजधानी की बाजार सूना हो गया है। प्रतिदिन कमाने खाने वाले लोग दहशत में शहर छोड़ गांव की ओर पलायन कर गये हैं। कोचिंग का कारोबार बंद है। पटना में इसका करोड़ों का कारोबार होता था। स्टूडेंट्स शुरूआती दिन में ही किराये का घर खाली कर गांव चले गये हैं। रिक्शा-ठेले वाले भी सवारी नहीं मिलने के चलते गांव चले गये हैं। मौर्या लोक समेत अन्य शापिंग कम्पलेक्स व मॉल में काम करने वाले भी बाजार की हालत देख गांव चले गये हैं। चुकि सप्ताह में तीन दिन ही दुकानें खुलनी है।
फुटपाथ पर सब्जी, चाय व होटल चलाने वाले भी अब नजर नहीं आ रहे हैं। स्टेशन रोड, न्यू मार्केट, करबिगहिया, इनकम टैक्स चौराहा, बोरिंग रोड चौराहा, अशोक राजपथ, मुसल्लहपुर हाट, मीठापुर सब्जी मंडी, अंटा घाट, राजा बाजार, कंकड़बाग टेम्पो स्टैंड, दीघा, राजेंद्र नगर आदि इलाकों में सन्नाटा पसरा है। मुख्य सडक़ों पर इक्के दुक्के वाहन चल रहे हैं। मुहल्लों की गलियों की बात करें तो वहां अघोषित कर्फ़्यू का नजारा है।
कहा जाता है कि बिहार की आत्मा गांवों में बसती है। वहां रहने वाले लोगों की आजीविका का साधन कृषि है। दिसंबर-जनवरी में शीतलहर और जलवायु परिवर्तन के कारण रबी की फसल बर्बाद हो गयी है। गेहू की पौधों का न तो विकास हुआ और ना ही बलियों में दाने आये। तिलहन यानि सरसो राई आदि की फसलों में दाने नहीं आये। दलहन की फसल मटर, खेसारी, रहर आदि भी बरबाद हो गयी। अब तो गांवों में भी अनाज का संकट होने वाला है। लिहाजा जो लोग शहर छोड़ गांव में गये हैं उनके सामने संकट है कि आखिर खायेंगे तो क्या खायेंगे।
राज्य की अधिकांश आबादी बंगाल, पंजाब, असम, दिल्ली, मुंबई, गुजरात में रहती है। उन राज्यों में कोरोना के दूसरे लहर के कहर से कारोबार, औद्योगिक गतिविधियां ठप है। वहां तो ऐसे ही लोग कराह रहे हैं। रोजगार के अभाव में लोग वहां से पलायन कर अपने गांव पहुंच गये हैं। सरकार ने दूसरे राज्यों से आये लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए स्क्लि मैंपिंग, मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना, जल-जीवन-हरियाली, छोटे-छोटे क्लस्टरों का गठन कर रोजगार उपलब्ध कराने की घोषणा तो की है परंतु अभी वह सरजमीं पर नजर नहीं आ रही है। कारण जहां से योजनाएं चलेगी वहां कर्फ़्यू जैसा नजारा है।
सचिवालय से लेकर मुफ्फसिल तक के कार्यालयों में ताला लटका है। कोई ऐसा दफ्तर नहीं बचा है जहां के कर्मचारी कोरोना से संक्रमित नहीं हैं। आधिकारिक तौर पर 86 हजार से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं। 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। राजनीतिक से लेकर प्रशासनिक गलियारों में दहशत ही दहशत हैं। इन सबों के बावजूद धैर्य के साथ संकट का सामना करने की जरूरत है। आज नहीं तो कल निश्चित रूप से नया सबेरा आयेगा।