सम्पादकीय

विपक्षके बिखरावका फायदा


अजय कुमार
उत्तर प्रदेशमें होनेवाले पंचायत चुनावमें शिवसेनाकी भी एंट्री हो सकती है। आम आदमी पार्टीके बाद शिवसेनाकी ओरसे भी उत्तर प्रदेशकी सियासतमें रुचि दिखानेके चलते इस बातसे इनकार नहीं किया जा सकता है कि उत्तर प्रदेशकी चुनावी सियासत बहुकोणीय होती जा रही है। शिवसेनाने पंचायत चुनाव लडऩेकी बात कही है। इन दो दलोंके अलावा औवेसी भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावको लेकर ताल ठोंक रहे हैं। ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) नेता असदुद्दीन ओवैसी कुछ दिनों पूर्व लखनऊ आकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लडऩेकी संभावनाएं तलाश गये थे। ओवैसी सपा-बसपा और कांग्रेससे अलग चुनाव मोर्चा बनानेके संकेत दे रहे हैं, जिसमें कई छोटे-छोटे दलोंको शामिल किया जा सकता है। खास बात यह है कि सभी दलोंके मुखिया सबसे अधिक निशाना भारतीय जनता पार्टी और योगी सरकारपर साध रहे हैं। यानी लड़ाई बीजेपी बनाम अन्यकी होगी। देखना अच्छा लगेगा कि कौन-सा दल कितनी चुनौती योगी सरकारको दे पायगा। वैसे आजकी तारीखमें २०१७ के विधानसभा चुनावमें मिले वोट प्रतिशतके हिसाब भाजपा नंबर एकपर और समाजवादी पार्टी नंबर दो एवं बहुजन समाज पार्टी तीसरे नंबरपर है। कांग्रेस चौथे नंबरकी पार्टी बनकर रह गयी है। बात यदि वोट शेयरकी करें तो २०१७ के विधानसभा चुनावमें बीजेपीको करीब ४० प्रतिशत वोट, समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधनको २८ प्रतिशत और बसपाको २२ प्रतिशत वोट मिले थे। सपा-कांग्रेस गठबंधनमें अलग-अलग वोटोंकी बात की जाय तो सपाको २२ प्रतिशत और कांग्रेसको करीब छह प्रतिशत वोट मिले थे।
इस हिसाबसे भाजपाके लिए सबसे बड़ी चुनौती सपा-बसपा हुईं, लेकिन भारतीय जनता पार्टीके नेता सपा-बसपासे अधिक आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेसपर आक्रामक हैं। आप और कांग्रेसके नेताओंके छोटेसे छोटे बयानपर भी भाजपा नेता पूरी गंभीरताके साथ तीखी प्रतिक्रिया देनेका कोई मौका नहीं छोड़ते हैं, जबकि सपा और बसपाको अनदेखा किया जाता है। भाजपा नेताओंके आपको लेकर दिये जानेवाले बयानोंसे तो यही लगता है कि उत्तर प्रदेशमें आम आदमी पार्टी और कांग्रेसकी लोकप्रियता तेजीसे बढ़ रही है, वहीं सपा-बसपा अपना जनाधार खोते जा रहे हैं, लेकिन यह सिक्केका एक पहलू है। भारतीय जनता पार्टी रणनीतिक तौरपर आप और कांग्रेसके खिलाफ ज्यादा आक्रमक रुख अपनाये हुए है, ताकि मतदाता भ्रममें फंसा रहे कि भाजपाको हरानेके लिए किसको वोट किया जाय। मतदाता भ्रमित रहेगा तो गैर-भाजपाई वोटोंमें बंटवारा होगा और इस प्रकार भारतीय जनता पार्टीके लिए उत्तर प्रदेशमें कमल खिलाना आसान हो जायगा। वैसे भी भारतीय जनता पार्टीको बहुकोणीय मुकाबला काफी रास आता है। आज जिस स्थितिमें भारतीय जनता पार्टी खड़ी है कभी वहां कांग्रेस खड़ी हुआ करती थी। कांग्रेसके खिलाफ तमाम सियासी दल अलग-अलग मोर्चाबंदी करते रह जाते थे और कांग्रेस जीतका सेहरा पहन लेती थी, लेकिन १९७७ में जब तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधीके खिलाफ विपक्ष जनता पार्टीके बैनर तले एकजुट हो गया तो कांग्रेसको बुरी तरहसे हारका सामना करना पड़ गया, यहांतक कि प्रधान मंत्रीके पदपर रहते हुए भी इंदिरा चुनाव नहीं जीत पायी थीं। उन्हें सोशलिस्ट नेता राजनारायणने धूल चटा दी थी।
कालांतरमें कांग्रेस कमजोर होती गयी और भारतीय जनता पार्टीने उसकी जगह ले ली, विपक्षमें बिखरावका जो फायदा पहले कांग्रेस उठाया करती थी, अब उसी तरहका फायदा भारतीय जनता पार्टी उठा रही है। इससे भी बड़ी बात यह है कि विपक्षके पास प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीके कदका कोई नेता भी मौजूद नहीं है, जबकि कांग्रेसको चुनौती देनेके लिए दिग्गज अटल बिहारी वाजपेयी, चौधरी चरण सिंह, युवा तुर्क चन्द्रशेखर, विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे तमाम नेता थे। उक्त सभी नेताओंने जिसमेंसे कई कांग्रेससे ही बगावत करके आये थे, ने न केवल कांग्रेस बल्कि उससे भी अधिक नेहरू-गांधी परिवारको चुनौती देते हुए प्रधान मंत्रीकी कुर्सीतक हासिल करनेमें सफलता पायी थी। लब्बोलुआब यह है कि उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी २०२२ के विधानसभा चुनावमें किसी भी दलसे सीधी लड़ाईसे बचना चाहती है। इसीलिए सपा-बसपाको अनदेखा करके अन्य दलोंको इस हिसाबसे हैंडिल कर रही है कि चुनावमें यह दल कुछ वोट हासिल करके सपा-बसपाके लिए मुंह नोचवा साबित हों। यदि छोटे-छोटे दल या उनका गठबंधन सपा, बसपा और कांग्रेसके वोट बैंकमें सेंधमारी करके पांच-छह प्रतिशत वोट भी हासिल कर लेता है तो भाजपाको इसका सीधा फायदा मिलेगा। इतने वोटोंके बंटवारेसे भाजपाकी सत्ताकी सीढिय़ां चढऩेका अरमान भी पूरा हो जायगा।