सम्पादकीय

प्राणवायुकी कमीसे उखड़ती सांसें


राजेश माहेश्वरी     

न्यायमूर्ति संवेदनशीलताके साथ बेहद सख्त भी प्रतीत हुए। अधिकारी बड़ा हो या छोटा, हम किसीको नहीं छोड़ेंगे। उन्हें लटका देंगे, जो आक्सीजनकी आपूर्तिमें रोड़ा बन रहे हैं। न्यायिक पीठने यह भी टिप्पणी की कि कोरोना वायरसकी मौजूदा स्थिति सिर्फ ‘दूसरी लहरÓ नहीं, बल्कि ‘सुनामीÓ है। कोर्टकी इस टिप्पणीसे मामलेकी गम्भीरताको आसानीसे समझा जा सकता है। बीते दिनों महाराष्टï्रके जाकिर हुसैन अस्पतालमें आक्सीजनके टैंकरसे ही लीकेज शुरू हुआ और प्राण-वायुका रिसाव होने लगा। सफेद गुब्बार चारों तरफ फैल गया, अंतत: गैस ही थी, बेशक जीवनदायिनी साबित होती थी, लेकिन एक किस्मकी घुटनसे अफरा-तफरी मच गयी। दहशत और खौफके उस मंजरमें आक्सीजनकी आपूर्ति बंद करनी पड़ी, नतीजतन वेंटिलेटरपर रखे गये और प्राण-वायुके सहारे जिन्दगी जी रहे २४ मरीजोंकी ‘आखिरी सांसÓ भी उखड़ गयी। राजधानी दिल्लीके जयपुर गोल्डन अस्पतालमें बीते शुक्रवार आक्सीजन न मिलनेकी वजहसे बीस कोरोना मरीजोंकी मौत हो गयी। ऐसेमें सवाल यह है कि सरकारी हो या प्राईवेट अस्पताल इनकी जिम्मेदारी कौन तय करेगा? क्या आम आदमीको यूं ही मरनेके लिए छोड़ दिया जायगा।

इन सारे तथ्योंके आलोकमें यह अहम है कि आखिरकार एकाएक देशमें आक्सीजनकी इतनी कमी पैदा कैसे हो गयी? क्या इसके पीछे सरकारी व्यवस्थाकी बदइंतजामी है या फिर वजह कोई और है? राज्य सरकारोंको उदासीनताका आलम यह है कि पीएम केयर कोष द्वारा जनवरीमें देशके विभिन्न शहरोंके सरकारी अस्पतालोंमें आक्सीजन संयंत्र लगवाने हेतु दी गयी राशिका उपयोग न हो पाना वाकई दु:खका विषय है। जैसी जानकारी है उसके मुताबिक जनवरीमें विभिन्न राज्योंके सरकारी अस्पतालोंमें १६२ संयंत्र लगानेके लिए उक्त कोषसे दो सौ करोड़ रुपये जारी किये गये किन्तु अपवाद स्वरूप छोड़कर या तो संयंत्रका काम शुरू नहीं हुआ अथवा मंथर गतिसे चल रहा है। किसी कामको समयपर करनेके लिए आपातकालीन परिस्थितियोंका इंतजार क्यों किया जाये यह बड़ा सवाल है। जिन अधिकारियों अथवा सत्ताधारी नेताओंके कारण आक्सीजन संयंत्रोंके निर्माणमें अनावश्यक विलम्ब हुआ, काश वह इस बातका पश्चाताप करें कि उनकी लापरवाहीने कितने जीवन दीप बुझा दिये। गत दिवस प्रधान मन्त्री नरेंद्र मोदीने देशके ५५१ जिलोंके सरकारी अस्पतालोंमें आक्सीजन संयंत्र लगानेके लिए फिर राशि स्वीकृत कर दी है जिनके प्रारम्भ हो जानेके बादसे देशके तकरीबन सभी हिस्सोंमें आक्सीजनकी आपूर्ति और परिवहन आसान हो जायगा। महामारीकी दूसरी लहरने पूरे देशको हिलाकर रख दिया है। बढ़ते मौतके आंकड़े सचाईको बयां कर रहे हैं। यह सब हमारी लापरवाही और लचर व्यवस्थाको उजागर कर रहा है। श्मशान और अस्पतालके बीच चंद फंसी सांसें जीवनके साथ संघर्ष करती हुई नजर आ रही हैं। ऑक्सीजनके सिलेंडर, इंजेक्शन और बेडको लेकर मारामारी मची हुई है। ऐसे मुसीबतके दौरमें भ्रष्टïाचार, चोरी, लापरवाही और अपने ईमानको बेचनेवाले तथाकथित लोगोंने मानवताको शर्मसार कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट और अनुभवके आधारपर यह कहा जा सकता है कि सरकारी कुप्रबंधनके अलावा लोगोंके मनमें कोरोनाको लेकर डरका माहौल भी है। ऐसे बहुतसे मामलोंमें बिना जरूरतके आक्सीजन और आवश्यक दवाईयां स्टोरेज की गयी है। जिसके चलते जरूरतमंद इससे वंचित हो रहे हैं और बाजारमें आक्सजीन, दवाईयों एवं अन्य सामानोंकी कमी देखनेको मिल रही है।

स्वास्थ्य क्षेत्रसे जुड़े लोगोंके अनुसार गंभीर मरीजोंको ही केवल आक्सीजनकी जरूरत होती है, लेकिन डर और आशंकाके चलते कोई सुननेको तैयार नहीं है। प्रधान मंत्रीने कई फैसले किये हैं, कई आदेश दिये हैं। आक्सीजनकी आपूर्तिके कई तरीके सामने दिखाई दे रहे हैं-रेलवे, विमान, सड़क। इसमें सेनाके तीनों अंग भी जुट चुके हैं। जर्मनीसे मदद आनी है। सिंगापुरसे चार क्रायोजेनिक टैंकर भारतमें आ चुके हैं। ५०,००० मीट्रिक टन आक्सीजन आयातके लिए ग्लोबल टेंडरकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। आक्सीजन संकटको देखते हुए रेलवेने भी आक्सीजन एक्सप्रेस चलानेका निर्णय लिया है। जिसके जरिये तरल आक्सीजन एवं आक्सीजन सिलेंडरोंका परिवहन किया जा सकेगा। इसकी गतिमें कोई अवरोध पैदा न हो, इसलिए ग्रीन कॉरिडोर तैयार किया जा रहा है। विभिन्न राज्योंमेें आक्सीजन एक्सप्रेस पहुंचने भी लगी हैं। संभव है कि कुछ दिनोंमें स्थिति सुधर जाय, लेकिन तबतक उन सांसों और आंसुओंकी जवाबदेही किसकी तय की जाय, यह अहम सवाल है।

देशमें कोरोना मरीजोंका आंकड़ा नित नये रिकार्ड बना रहा है। डाक्टर चेतावनी देने लगे हैं कि अभी तो संक्रमण बहुत बढ़ेगा, लिहाजा वेंटिलेटरकी जरूरत बढ़ेगी। लिहाजा अभीसे केंद्रीय कमान बनायी जाय और सभी अनिवार्य सेवाओंको उसके तहत रखा जाय। अभी तो इंजेक्शन, आक्सीजन सिलेंडर और कोरोना टीके ही चोरी किये जा रहे हैं, पीकवाली स्थितिमें अराजकता किसी भी हदतक पहुंच सकती है। यह चेतावनी डाक्टरोंकी ओरसे आयी है, लिहाजा महामारीके ऐसे दौरमें राज्योंकी सीमाएं भी बेमानी हो जानी चाहिए। कोरोनाके बावजूद बौने स्वार्थ और क्षुद्र राजनीति जारी है। टाटाकी तरह दूसरे औद्योगिक घरानोंको सामने आकर जरूरतमंदोंकी मदद करनी चाहिए। सरकारी कुप्रबंधन और राज्योंकी उदासीनतासे ऐसे हालात पैदा हुए हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है। वर्तमान संकट तब है, जब भारतमें ऑक्सीजन उत्पादनकी कमी नहीं है। हम औसतन ७५०० एमटी ऑक्सीजन रोजाना पैदा करते हैं, जबकि अभीतक मांग करीब ५००० एमटीकी ही रही है। कोरोनाके इस दौरमें मांग आठ-दस फीसदी बढ़ गयी होगी। उतना तो भंडारण भी होगा। विडंबना है कि जिन राज्योंमें कोरोना संक्रमणका असर और फैलाव कम है, वह भी स्थानीय भावनाओं, राजनीति और चिंताओंके मद्देनजर अपने स्टॉकको दबाये रखना चाहते हैं। सभी राज्योंको नहीं भूलना चाहिए कि यह राष्टï्रीय आपदाका दौर है और संक्रमणके दंश किसीको भी भुगतने पड़ सकते हैं। दरअसल संकट व्यवस्थाका है। प्रधान मंत्रीने कई बदलाव किये हैं, लिहाजा अब चिकित्सा व्यवस्थाका ढांचा बदलनेकी बारी है। वहीं वर्तमान व्यवस्थाके साथ ही साथ भविष्यको भी ध्यानमें रखकर तैयारियों की जानी चाहिए। आनेवाले समयमें भी हमें ऐसे नये संक्रमणोंका सामना करनेके लिए तैयार रहना पड़ सकता है।