सम्पादकीय

अब बर्ड फ्लूका कहर


कोरोना वैश्विक महामारीके बीच अब भारतके अनेक हिस्सोंमें बर्ड फ्लूका कहर लोगोंके लिए गम्भीर चिन्ताका विषय बन गया है। कोरोनाके संक्रमणमें अवश्य कमी आयी है लेकिन उनके नये स्ट्रेनका खतरा भी बढ़ गया है। ब्रिटेनसे आये नये स्ट्रेनसे संक्रमित पुणेमें बीस नये मरीज मिले हैं जिससे संक्रमितोंकी संख्या ५८ हो गयी है। इसके प्रसारको देखते हुए भारत सरकारने ब्रिटेनसे आनेवाले विमानोंपर सात जनवरीतकके लिए रोक लगा दी है। लेकिन अब एक नया खतरा बर्ड फ्लूका उत्पन्न हो गया है, जो देशके अनेक राज्योंमें तेजीसे फैल रहा है और लोग बीमार भी हो रहे हैं। केरलसे लेकर राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, उत्तराखण्ड, कर्नाटक सहित कई राज्य इसकी चपेटमें आ गये हैं। आठ राज्योंने अपने यहां अलर्ट घोषित कर दिया है। कई राज्योंमें मांस, अण्डा, मुर्गोंकी बिक्रीपर रोक भी लगा दी गयी है। जन-स्वास्थ्यके समक्ष यह नयी चुनौती है, जिसका सामना केन्द्र और राज्य सरकारोंको करना पड़ रहा है। बड़ी संख्यामें पक्षियों और मुर्गियोंकी मौत हो रही है। बर्ड फ्लूके बढ़ते प्रसारको रोकनेके लिए सरकारी प्रयासोंके अतिरिक्त आम जनताको भी काफी सतर्क रहनेकी आवश्यकता है। कोरोनासे बचावके लिए किये गये उपायोंके अतिरिक्त अब लोगोंको अपने खान-पानपर विशेष ध्यान देना होगा। विशेष रूपसे मांसाहारसे परहेज करनेकी जरूरत है। बर्ड फ्लूके वायरस बेहद खतरनाक होते हैं और यह इनसानोंको काफी क्षति पहुंचा सकते हैं। केरलमें बर्ड फ्लूके बढ़ते प्रकोपको देखते हुए राज्य सरकारने आपदा घोषित कर उचित कदम उठाया है। बर्ड फ्लूका वायरस प्रवासी पक्षियोंसे फैलता है। भारतमें इस समय बड़़ी संख्यामें प्रवासी पक्षी हैं। इनसानोंका इस वायरसकी चपेटमें आना प्राणघातक होता है। विश्व स्वास्थ्य संघटन (डब्लूएचओ) के अनुसार बर्ड फ्लू वायरसका संक्रमण काफी खतरनाक होता है और इससे कई गम्भीर बीमारियां हो जाती हैं और मौतका आंकड़ा भी ज्यादा हो सकता है। यदि एच५एनआई वायरस म्यूटेट हो जाय तो इससे इनसानोंसे इनसानोंमें आसानीसे संक्रमण हो सकता है। २०१३ में पहलीे बार इनसानोंसे इनसानोंमें बर्ड फ्लू फैला था और इसका पहला मामला भी चीनसे सामने आया था। इसलिए बर्ड फ्लूके कहरसे डरनेकी आवश्यकता नहीं है, बल्कि इससे बचनेके लिए सतर्कता और सावधानी बरतनेकी जरूरत है। सर्दी, जुकाम, सांस लेनेमें परेशानी, उल्टी, डायरिया, सीनेमें दर्द और मासंपेशियोंमें ऐंठन होनेपर तत्काल चिकित्सीय परामर्श लेने और उपचार करनेकी आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्टका उचित निर्देश
पशु क्रूरता कानूनपर सर्वोच्च न्यायालयकी पशुपालकोंके हितमें महत्वपूर्ण टिप्पणी सामने आयी है। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमणियनकी पीठने सोमवारको प्रिवेंशन आफ क्रूएल्टी-टू एनिमल्स ऐक्ट २०१७ के नियमोंको चुनौती देनेवाली याचिकापर सुनवाईके दौरान इस नियमको अतार्किक बताया है। पीठने कहा कि परिवहनमें इस्तेमाल पशु आजीविकाके स्रोत हैं इसलिए उन्हें जब्त करना गलत है। शीर्ष न्यायालयने नियमको विरोधाभासी बताते हुए कहा कि कुत्ते, बिल्लियोंको छोड़कर बहुतसे जानवर बहुतसे लोगोंके आजीविकाके साधन हैं। लोग मवेशियोंके सहारे जीते हैं, इन्हें दोषी ठहराये जानेसे पहले ही इनके मवेशियोंको जब्त करके नहीं रखा जा सकता है। साथ ही केन्द्र सरकारको निर्देश दिया है कि मुकदमोंके दौरान मवेशियोंको जब्त करने सम्बन्धी २०१७ के नियमोंको वापस ले या इसमें संशोधन करे अन्यथा इसपर रोक लगा दी जायगी, क्योंकि यह पशुओंकी क्रूरतासे रोकथाम कानूनके खिलाफ है। शीर्ष न्यायालयकी टिप्पणी उचित है। ट्रांसपोर्टर्स परिवहनमें शामिल पशुओंके खान-पानसे लेकरर सभी तरहकी सुविधाओंका ख्याल रखते हैं, इसलिए इसे क्रूरता नहीं माना जा सकता है। पशुओंपर शीर्ष न्यायालयने तर्कसंगत व्यवस्था दी है। खास बात यह है कि पशु क्रूरताकी परिभाषा तय होनी चाहिए। पहले कृषि कार्य भी हल-बैलसे होते थे। ट्रांसपोर्टके लिए बैलगाड़ीका उपयोग होता था। आज भी छोटे किसान और कारोबारी इनका उपयोग करते हैं और अपने पशुओंकी देखभाल, उनकी सुख-सुविधाका ध्यान अपने परिवारकी तरह रखते हैं। ऐसेमें इन्हें पशु क्रूरताके अन्तर्गत रखना न्यायसंगत नहीं होगा। मौजूदा पशुक्रूरता नियममें संशोधन किया जाना चाहिए जिससे आजीविकाके साधन बने पशुओंके मालिकोंको उत्पीडऩसे राहत मिले। यह सरकारका दायित्व है कि इसपर विचार करे और सार्थक कदम उठाये।