कोरोना वायरसकी उत्पत्ति स्थलको लेकर सत्य और असत्यके बीच संघर्ष शुरू हो गया है। सत्यका साथ देनेवालोंकी संख्या अधिक है, जबकि असत्यका साथ देनेवाला चीन अलग-थलग पड़ गया है। वैसे भी यह सर्वविदित है कि असत्यका जीवन अल्प ही होता है और सत्य शाश्वत है। अमेरिकाके बाद अब ब्रिटेनके वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि कोरोना वायरसकी उत्पत्ति प्राकृतिक नहीं है और इसे चीनकी वुहान प्रयोगशालामें विकसित किया गया है। पूरे विश्वमें यह आम धारणा बन गयी है कि चीनने ही कोरोना वायरसको एक सुनियोजित साजिशके तहत ही विकसित किया और इसे पूरे विश्वमें फैलाया जिससे अबतक १७ करोड़से अधिक लोग संक्रमित हुए और ३५ लाख ५२ हजारसे अधिक लोगोंकी मृत्यु हुई। विश्वके ज्यादातर देश इस महामारीकी चपेटमें आये और इसका गम्भीर दंश झेल रहे हैं। अर्थव्यवस्थाको भारी क्षति पहुंची अलगसे। ब्रिटेनके प्रोफेसर एंगस डल्गलिश और नार्वेके वैज्ञानिक डाक्टर बिर्गर सोरेनसेनने अपने ताजे शोधमें दावा किया है कि वुहानकी प्रायोगशालामें चीनी वैज्ञानिकोंने वायरस तैयार किया और इसके बाद इसे रिवर्स-इंजीनियरिंग वर्जनसे छिपानेकी कोशिश की गयी जिससे यह लगे कि कोरोना वायरस चमगादड़से प्राकृतिक रूपसे विकसित हुआ है। ताजे शोधसे चीनके खिलाफ सन्देह और गहरा गया है। ‘डेली मेलÓ ने कहा है कि इसका कोई प्रमाण नहीं है कि कोरोना वायरस सार्स-कोव-२ वायरस प्राकृतिक रूपसे पैदा हुआ है। इसे वुहान प्रयोगशालामें ‘गेन आफ फंक्शनÓ परियोजना प्राकृतिक वायरसमें फेरबदल कर उन्हें अधिक खतरनाक और संक्रामक बनानेसे सम्बन्धित है, जिसे अमेरिकाके पूर्व राष्टï्रपति बराक ओबामाने गैरकानूनी घोषित किया था। चीनके वैज्ञानिकोंकी यह काली और पाशविक करतूत है। इससे चीनका पाशविक चेहरा बेनकाब हुआ है। चीनने उन वैज्ञानिकोंको मार डाला या गायब कर दिया, जिन्होंने इस वायरसके विरुद्ध आवाज उठायी थी। नये शोधसे कोरोना वायरसकी उत्पत्तिके बारेमें इतने अधिक पहलू उजागर हुए हैं कि चीनके पास अपने करतूतको बचानेका कोई रास्ता नहीं है। पूरी दुनियाके देशोंने चीनके खिलाफ आवाज उठायी है और मांग की है कि कोरोनाकी उत्पत्तिके बारेमें जांच होनी ही चाहिए। शोधसे जो निष्कर्ष सामने आये हैं उससे चीनपर वैश्विक दबाव बढऩा स्वाभाविक है। चीन अब कटघरेमें घिर गया है। उसका झूठ मृत्युके मुहानेपर है और सत्य पक्ष मजबूतीसे स्थापित होनेकी ओर अग्रसर है। अब विश्व समुदायको निर्णय करना पड़ेगा कि चीनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए और उसे क्या सजा दी जानी चाहिए। चीनने मानव और मानवताके साथ अक्षम्य एवं जघन्य अपराध किया है।
सेनाकी पूरी तैयारी
भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणेने पूर्वी लद्दाखमें चीनके साथ लम्बे समयसे जारी गतिरोधके चलते सैन्य आधुनिकीकरणके लिए धनकी कमीकी आशंकाको सिरेसे खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि भारतीय सेनाका आधुनिकीकरण बिना किसी परेशानीके सही तरीकेसे चल रहा है। सेना प्रमुखके बयानकी पुष्टिï भारतीय सैन्य बलोंका आधुनिकीकरणके लिए किये गये प्रयासोंसे होती है जिसके तहत पिछले वित्त वर्षसे अबतक लगभग २१ हजार करोड़ रुपयेके ५९ सौदे हो चुके हैं और बहुतसे खरीद प्रस्ताव लाइनमें हैं। साथ ही सरकारने २०२१-२२ के रक्षा बजटमें ४.७८ लाख करोड़ रुपया आवंटित किये हैं। ऐसेमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अधिक संसाधन खर्च करनेकी आवश्यकता और सेनाके लिए नये हथियार खरीदनेके लिए फंडकी कमीकी आशंका निराधार और भ्रामक है। एलएसीपर गतिरोधके बीच सेनाप्रमुखका बयान सुरक्षाकी दृष्टिïसे बेहद महत्वपूर्ण है जिसमें उन्होंने कहा कि सीमापर किसी भी आपात स्थितिसे निबटनेमें पर्याप्त संख्यामें जवान मौजूद हैं। एलएसीके संवेदनशील इलाकोंमें ५० से ६० हजार जवानोंकी तैनाती चीनकी बड़ी समस्या है। पूर्वी लद्दाखके ऊंचाईवाले सभी क्षेत्र भारतीय सेनाके कब्जेमें हैं। इन क्षेत्रोंमें भारतकी मजबूत पकड़से चीन तिलमिलाया हुआ है। सैन्य अधिकारियोंके बीच हुए समझौतेके बावजूद दोनों देशोंकी सेनाएं आमने-सामने डटी हुई हैं। चीन चाहता है कि पहले भारतीय सेना हटे जो उसकी एक कुटिल चाल है लेकिन भारत भी सतर्क है और उसकी बदनीयतीको अच्छी तरह समझ रहा है, इसलिए पहले चीनी सैनिकोंको पीछे हटनेकी शर्त रख दी है जिससे चीनका बौखलाना स्वाभाविक है। भारतको घेरनेके लिए चीनने अब भारतसे लगते अपने सीमावर्ती क्षेत्रोंमें सैन्य ताकतको बढ़ाते हुए पक्के निर्माण भी शुरू कर दिया है जिनपर भारतकी पैनीनजर है। कुछ देश बिना सबूतके क्वाड समूह (चार देशोंके गठबंधन) को सैन्य गठबंधनके तौरपर प्रस्तुत कर भयको बढ़ावा देनेका काम कर रहे हैं। इसे चीनका दुष्चक्र माना जा रहा है, क्योंकि भ्रम फैलानेका कोई कारण नहीं है। चीनके लिए सीमा विस्तारकी महत्वाकांक्षासे ऊपर उठकर भारतके साथ सम्बन्ध सुधारनेकी दिशामें कदम बढ़ाना ही श्रेयस्कर होगा।