सम्पादकीय

बेहतर समन्वय जरूरी


देशमें आक्सीजन संकटसे उबरना अत्यन्त आवश्यक हो गया है, क्योंकि यह ‘प्राणवायु’ है। इस दिशामें वायु सेना और रेलवे भी सक्रिय हो गया है जिससे कि प्रभावित राज्योंमें इसकी उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने संक्रमणसे सर्वाधिक प्रभावित राज्योंके मुख्य मंत्रियोंके साथ बैठकमें आश्वस्त किया है कि रेलवे और वायुसेना युद्ध स्तरपर जुट गयी है। आक्सीजन और जरूरी दवाओंकी आवश्यकताको पूरा करनेके लिए सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशोंको एकजुट होकर काम करनेकी आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि हर राज्य एक-दूसरेकी जरूरतको समझें और कोरोनासे लड़ाईमें राजनीतिक खींचतान भी नहीं होना चाहिए। बैठकमें कुछ राज्योंमें टीकेके ज्यादा मूल्यका भी मुद्दा उठा, इसपर भी विचार करनेकी आवश्यकता है जिससे कि लोगोंपर आर्थिक बोझ नहीं पड़े। प्रधान मंत्रीने यह भी कहा कि कुछ विशेष ट्रेनें चलायी जा रही हैं और एयर लिफ्टिंग भी की जा रही है। आक्सीजनकी आपूर्ति सुनिश्चित करनेके लिए लगातार कोशिश की जा रही है। प्रधान मंत्रीका भरोसा राहत देनेवाला है और इसके कुछ सार्थक परिणाम आने लगे हैं लेकिन इस दिशामें अभी काफी प्रयास करनेकी जरूरत है क्योंकि आक्सीजनकी मांग बहुत अधिक है और उसकी तुलनामें उपलब्धता कम है। इसलिए आक्सीजनका आयात बढ़ाना होगा। इसकी जमाखोरी और कालाबाजारीपर अंकुश लगानेकी आवश्यकता है। हर जरूरतमंदको आक्सीजन तत्काल उपलब्ध हो सके, इसकी व्यवस्था होनी चाहिए। एक प्रमुख समस्या केन्द्र और राज्योंके बीच समन्वयको लेकर भी है। कोरोनाके खिलाफ प्रभावी जंगके लिए बेहतर समन्वय और एकजुटता बहुत जरूरी है। इसे राजनीतिसे दूर रखनेकी आवश्यकता है। महामारीके दौरमें यह प्रवृत्ति दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे बचनेकी जरूरत है अन्यथा जंग कमजोर हो जायगी। साथ ही राज्योंकी वास्तविक आवश्यकताओंको पूरा करनेके लिए बेहतर प्रबन्धन भी जरूरी है। सभी संसाधनोंकी पर्याप्त उपलब्धता आवश्यक है। अस्पतालोंकी व्यवस्थापर विशेष ध्यान देनेकी जरूरत है क्योंकि इन अस्पतालोंमें पर्याप्त बेडका संकट बना हुआ है। इससे मरीजोंको काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। कोरोनाके बढ़ते संक्रमणको देखते हुए अभी लड़ाईको और तेज करनेकी आवश्यकता है। जनताको भी काफी सतर्क और सजग रहना होगा।

अस्पतालोंमें अग्निकाण्ड

अस्पताल जीवन रक्षाका स्थान है और यहीं यदि जीवन संकटमें पड़ जाय तो इसे दुर्भाग्य ही कहा जायगा। महाराष्टï्रमें नासिकके कोविड अस्पतालमें हुई २२ मरीजोंकी मौतके सदमेसे लोग अभी उबर भी नहीं पाये थे कि मुम्बईसे सटे पालघरमें विरारके निजी कोविड अस्पतालकी आईसीयूमें शुक्रवारको प्रात: लगी आगसे १५ मरीजोंकी मौतने जनमानसको झकझोर दिया है। घटनाके समय अस्पतालमें ९० मरीज थे जिनमें १८ आईसीयूमें भर्ती थे। मरीजोंके परिजनोंका आरोप है कि घटनाके समय आईसीयूमें न तो कोई नर्स थी, न ही डाक्टर। यहांतक कि अग्निशमन उपकरण भी नहीं थे जो अस्पताल प्रबन्धनपर कई सवाल खड़े करते हैं। कोरोना मरीजोंके लिए अस्पतालोंकी दुव्र्यवस्था ही उनके लिए काल बन गये हैं। कोरोना संक्रमितोंके लिए बनाये गये अस्पतालोंमें पिछले एक सालके अन्दर अग्निकाण्डकी घटनाओंमें तमाम मरीज असमय काल-कवलित हुए, लेकिन इन घटनाओंसे न तो जिला प्रशासनने कोई सबक लिया, न ही अस्पताल प्रबन्धनने। ऐसी हृदयविदारक घटनाओंके लिए अस्पतालकी लापरवाही और कुप्रबन्धन पूरी तरह जिम्मेदार है। जिला प्रशासनकी अस्पतालोंकी मनमानी और दुव्र्यवस्थाके प्रति उदासीनतासे मरीजोंकी मौतका अन्तहीन सिलसिला जारी है। राज्य सरकारें इस तरहकी व्यथित कर देनेवाली घटनाओंमें मृतकोंके परिजनोंको मुआवजा और घटनाओंकी उच्चस्तरीय जांचकी घोषणाको अपने कर्तव्यका इतिश्री मान लेती हैं। कुछ दिनतक घटनाको लेकर सियासी जंग भी छिड़ती जो बादमें धीरे-धीरे शान्त हो जाती है और अस्पतालोंका पहिया फिर पुरानी पटरीपर दौडऩे लगता है। बड़ा प्रश्न है कि ऐसी घटनाओंको कैसे रोका जाय। इसके लिए सरकारको ठोस कार्य योजना बनानी होगी जिसमें अस्पतालोंकी जवाबदेही तय हो। राज्य सरकारोंसे लेकर जिला प्रशासनकी जिम्मेदारी बनती है कि अस्पतालोंकी व्यवस्थापर निगाह रखे। देशके जितने भी अस्पताल हैं चाहे वे कोविड अथवा नान-कोविड हों सबकी नियमित जांच होनी चाहिए। अस्पताल प्रबन्धनको भी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारीसे निभानी होगी तभी ऐसी घटनाओंको रोका जा सकता है।