सम्पादकीय

अनलाकमें दिशानिर्देशोंका पालन


आशीष वशिष्ठ

देशमें कोरोनाकी दूसरी लहरका ज्यादा घातक होना हम सबकी लापरवाही और कोरोना प्रोटोकालकी अनदेखीका ही नतीजा था। अच्छी बात है कि देशके कई राज्योंमें अनलाककी प्रक्रिया शुरू हो गयी है। परन्तु इसके साथ हमारी जिम्मेदारी बढ़ गयी है। राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्टï्र समेत कई दूसरे राज्योंमें लाकडाउन कुछ शर्तोंके साथ और सीमित आधारपर खोलनेकी प्रक्रिया शुरू की गयी है। यह बेहद जरूरी है, क्योंकि कोरोना वायरस हमारी जिन्दगीका हिस्सा पिछले दो सालसे बना हुआ है और ये कबतक जिन्दा रहेगा इसका जवाब फिलवक्त किसीके पास नहीं है। यह वायरस दुनियाभरमें फैला हुआ है। जबतक उसका पूरी दुनियामें अंत नहीं होगा, तबतक कोरोना समाप्त होनेके मुगालते पालना फिजूल है। हालांकि कुछ विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अनलाक करना जल्दबाजी है। चीन, मलयेशिया, सिंगापुर, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली आदि देशोंमें वायरस नये सिरेसे फैला है, लिहाजा वहां दोबारा लाकडाउन लगाना पड़ रहा है। जब पिछले साल कोरोना वायरसने भारतमें ताला लगा दिया था।

प्रधान मंत्रीकी घोषणाके बाद देशभरमें काम बंद हो गया। लोग अपने घरोंमें कैद हो गये। हजारों मजदूरोंने पैदल ही अपने घरोंकी तरफ लौटना शुरू कर दिया। कुछ तो हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर पहुंचे। पहली लहर शांत होनेके बाद सरकार और प्रशासनका ध्यान सर्तकतासे हट गया। देशवासियोंने स्वदेशी वैक्सीनके बनने और टीकाकरणके बाद यह मान लिया कि अब कोरोना वायरस उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। लेकिन नतीजा सबके सामने है। बीते अप्रैलमें कोरोनाकी दूसरी लहरने जितना जान-मालका नुकसान किया है, उसका निश्चित आंकड़ा किसीके पास नहीं है। घरके घर बर्बाद हो गये हैं। स्वास्थ्य सेवाओंकी हालत भी फिलहाल किसीसे छिपी नहीं रही। ऐसेमें हमारा खुदका अनुशासन और संयम ही हमें बचा सकता है। विशेषज्ञोंका एक तबका ऐसा है, जो आर्थिक स्थितियोंको बेहद गंभीर मानता रहा है और लगातार लाकडाउनके पक्षमें नहीं है। वह लाकडाउनको कोरोनाका उपचार मानता ही नहीं। सिर्फ व्यापक टीकाकरण ही कोरोनाका इलाज है। उस तबकेका सवाल है कि कोरोनाकी मौजूदगीके मद्देनजर कबतक तालाबंदी जारी रखी जा सकती है? जीवनके साथ जीविका भी बेहद महत्वपूर्ण है। लाकडाउनके बजाय कंटेनमेंट इलाकोंपर फोकस होना चाहिए, ताकि वायरसका प्रसार सीमित रखा जा सके।

कुछ सीनियर डाक्टरोंने सीरो सर्वेको बेहद जरूरी माना है। उनका आग्रह है कि बीते चार माहसे एक भी सीरो सर्वे नहीं कराया गया है। दूसरी लहरमें कोरोना वायरसका फैलाव कितना हुआ है, संक्रमण किस स्तरतक पहुंच चुका है, कितनी आबादी संक्रमित हो चुकी है और तीसरी लहरकी संभावनाएं कितनी हैं, इन सवालोंके वैज्ञानिक जवाब सीरो सर्वेसे ही संभव हैं। दरअसल सीरो सर्वेसे पता लगाया जा सकता है कि कितने लोग संक्रमित हो चुके हैं और कितनोंके भीतर एंटीबॉडीकी स्थिति क्या है। जब संक्रमणका मूल्यांकन वैज्ञानिक तरीकेसे किया जायगा तो अनलाकके निर्णय भी तर्कसंगत होंगे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि संक्रमणका अंदाजा होगा, लिहाजा व्यापक स्तरपर तालाबंदीकी दोबारा नौबत नहीं आयगी। अभी तो फैसले राजनीतिक आधारपर सरकारें ले रही हैं। उनकी अपनी प्राथमिकताएं हैं। यदि संक्रमण एक बार फिर भड़कता है तो फिर तालाबंदी चस्पा कर दी जायगी। कोरोना वायरससे युद्धका यह तरीका कारगर साबित नहीं हो सकता। कोरोनाकी दूसरी लहरने जनमानसको लापरवाही न करने और स्वास्थ्य विभागको व्यवस्थाएं हमेशा दुरुस्त रखनेका सबक सिखाया है। लोगोंने मौजमस्ती शुरू कर दी थी। अब हमें संयम दिखानेकी आवश्यकता है।

इस बार पहले जैसी गलतियां नहीं दोहरानी हैं। हर मोर्चेपर सतर्क रहना है। देशने कोरोना महामारीका दंश झेला है। करीब डेढ़ महीने बाद अनलाककी प्रक्रिया शुरू हो रही है। ऐसेमें जिम्मेदार नागरिक होनेके नाते हम ख्याल रखना होगा कि यह महामारी दोबारा देशपर हावी न हो सके। इसके लिए जगह-जगह थूकना बंद करें और मास्कका प्रयोग हर हालमें करें। अनलाकमें कोरोना प्रोटोकॉलका पालन करानेमें दुकानदारोंकी प्रमुख भूमिका रहेगी। दुकानदारोंको दुकानपर भीड़ लगनेसे रोकना होगा। कोरोनाकी रोकथामके लिए बाकी प्रबंध भी करने होंगे। यह सभीकी जिम्मेदारी है। वहीं यह भी मान लीजिए कि अनलाककी प्रक्रिया शुरू होनेका यह मतलब नहीं है कि हमें पूरी छूट मिल गयी है। हमें सावधानी हर हालमें बरतनी होगी। अभी स्कूल बंद है लिहाजा बेहद जरूरी काम होनेपर ही घरसे बाहर निकलें। बाहर निकलते समय भी मास्कका प्रयोग जरूर करें। हो सके तो कुछ दिन कालोनियोंके पार्कमें भी न जायं। सीनियर डाक्टर्स कहते हैं कि अभीतक कोरोना वायरसके खिलाफ समाधान बायोसाइंसमें देखे जा रहे हैं, बायोमेडिकल एप्रोचसे सोचा जा रहा है। लेकिन लगता है कि हमें सामाजिक नजरियेसे भी सोचना होगा। मास्कके प्रति नजरिया बदलनेसे भी वायरसके खिलाफ लड़ाई मजबूत हुई है। लोगोंका व्यवहार बदलनेपर भी जोर देना होगा। यह देखा गया है कि लोगोंका व्यवहार बदलनेसे भी कोरोनाके खिलाफ लड़ाई मजबूत हुई है। भारतमें जनभागीदारी कोरोनाके खिलाफ लड़ाईमें अहम साबित हुई है। अमेरिका जैसे देशोंसे तुलना की जाय तो भारतके लोगोंकी भागीदारी लड़ाईमें बेहतर रही है।

हमें यह भी कहना होगा कि जिम्मेदार लोगोंने इस लड़ाईमें अहम भूमिका निभायी है। लेकिन इन सबके बावजूद अमेरिकाके मिशिगन यूनिवर्सिटीमें महामारी रोग विशेषज्ञ भ्रमर मुखर्जीके उस बयानको हमें याद रखना है जिसमें उन्होंने कहा था कि, ‘इस वायरसके साथ खतरेकी बात यही है कि शुरुआतमें इसकी ज्यादा ग्रोथ होती नहीं दिखती। हर दिन थोड़ा फैलाव होता है। यह बहुत खामोशीसे कदम आगे बढ़ाता है। उसके बाद फट पड़ता है। आपको खामोशीसे आगे बढ़ती पदचापको सुनना और पहचानना होगा।Ó विशेषज्ञोंके मुताबिक, यूरोपीय देशों और अमेरिकासे हमें ये अनुभव मिला है कि यह वायरस खास पैटर्नपर चलता है और यदि इसके खिलाफ लड़ाईमें जरा भी ढील दी जाय तो ये फिरसे लौट आता है। अभी हम महामारीके बीचमें हैं और जबतक आखिरी मामला समाप्त नहीं होगा तबतक हम यह नहीं कह सकते हैं कि हम जीत गये हैं। दूसरी लहरके कहरके बाद इस बार हमें छूट मिलनी शुरू हुई, ऐसेमें हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि इस आजादीका प्रयोग अनुशासित तरीकेसे करेंगे। विशेषज्ञ तीसरी लहरकी चेतावनी तो दे ही रहे हैं।