पटना

राखी बनाना भूल गये बिहार के कारीगर


महंगाई और तंगहाली से ढह गया बिहार के राखी कारीगरों का गढ़, हौसले पस्त

पटना। बिहार के कारीगर राखी बनाना भूल गये। कभी बिहार राखी बनाने वाले कारीगरों का गढ़ हुआ करता था, परंतु एक दशक में यह गढ़ ढह गया। बिहार का राखी मार्केट और राखी के कारिगरों ने अपना दूसरा काम धंधा देख लिया। राखी के इस सीजन में वे मौसमी रूप से राखी की दुकानें लगा रहे हैं, परंतु पूंजी के अभाव में वे यह धंधा भी मजे से नहीं कर पा रहे है। शुक्र है कि इस लॉकडाउन में सरकार ने राखी पर वैन नहीं लगाया है, यदि बैन लगा दिया होता, तो राखी खरीदने बेचने वालों को मंदी का गंभीर सामना करना पड़ता।

बिहार में राखी कारीगर इस सीजन में दूसरा कोई काम नहीं करते थे, लेकिन मंदी और पूंजी के अभाव में उन्होंने इस धंधे को लगभग ना कह दी है। कारीगरों ने तो राखी बनाना बंद कर ही दिया है। पटना, मुजफ्फरपुर, सीवान, छपरा, गया और मधुबनी मोतिहारी जैसे जिले बाहर बनी राखियों के प्रमुख बाजार बन गये है। प्राय: सभी जिलों में दिल्ली, कोलकाता, नेपाल और देवघर मेड राखियों का मार्केट पसरा है।

राखी के सिजन में बिहार में पांच करोड़ से भी ज्यादा का व्यापार हो जाता है। हालांकि इस बार लॉकडाउन की वजह से बाजार में दो वर्ष पहले वाली न रौनक दिख रही है, न उत्साह। राखी में छायी इस वीरानी ने राखी का व्यापार करने वालों के हौसले पस्त कर दिये हैं। यह हाल तब है, जब सरकार ने राखी को टैक्स फ्री कर रखा है। भागलपुर, सहरसा, पूर्णिया, बाढ़ और बख्तियारपुर जैसे जिलों के राखी बाजारों में सन्नाटा छाया है।

दुकानदारों को उम्मीद है कि रक्षा बंधन के एक-दो दिन पहले बाजार में धक्का-मुक्का हो सकती है। माता-बहने उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं। बढ़ती महंगाई और राखी मैटिरियलों की बढ़ी कीमतों ने राखी कारीगरों की हिम्मत छीन ली। मजबूरी में राखी कारीगरों ने दूसरा काम ढूंढ़ लिया। कई कारीगर तो चेन्नई, पंजाब, जम्मू और मुंबई में काम करने चले गये। ऐसे कारीगरों को वहां हर दिन ३०० से ३५० रुपये पारिश्रमिक मिल जा रहा है।

पटना सिटी में तो राखी उद्योग एक दशक पहले तक महिलायें भी राखी बनाती थी। पटना सिटी के रानीपुर, बेगमपुर, लाल ईमली, चिकटोली, काठका पुल और मुरली घरारी जैसे मुहल्लें मुस्लिम महिला कारीगरों से पटा रहता था। आज वहां वीरानी छायी है। महिलायें दूसरों के घरों में बरतन-बासन धोने का काम कर गुजारा कर रही हैं।

पटना में एक दशक पहले तक कृष्णा जी, बुद्घन जी, चंदी जी, महेश जी, प्रदीश चौधरी और प्रमोद जी राखी के माने हुए कारीगर थे। वे कोलकाता और दिल्ली से मैटेलियल ला कर राखियां बनाते थे। उनकी बनायी राखियों का डंका पूरे बिहार में बजता था। राखी के कारीगर ही नहीं, कुम्भकार भी यहां राखियां बनाते थे। उमाशंकर पंडित और रामानंद पंडित जैसे कुम्भकारों की राखी निर्माण में अलग पहचान थी। किंतु आज वह बात नहीं रही। सबसे अपनी दुकानें समेट ली हैं।

कोलकात्ता, दिल्ली, अहमदाबाद और राजकोट मेड राखियों से बिहार के बाजार पटे हैं। यहां की बनी श्री राखी, शुभ राखी, रानी राखी, ओम राखी और शिवम राखी कोलकात्ता, दिल्ली, अहमदाबाद और राजकोट मेड राखियों के ब्रांड बन गये हैं। ये राखियां बाजार में न्यूनतम ३० और अधिकतम ३०० रुपये डब्बा मिल रही है। फिलहाल श्री और शुभ राखी की सबसे ज्यादा डिमांड है। ये दोनों राखियां कोलकाता दिल्ली मेड हैं।

बिहार-मेड राखियों की कभी धूम हुआ करती थी, परंतु यहां की कारिगरी और यहां के उद्ïयोग को जो सम्मान और तवज्जो मिलना चाहिए था, आज तक नहीं मिला। शाहनवाज हुसैन को बिहार का उद्योग मंत्री बनने पर इस धंधें से बावस्ता लोगों को उम्मिदें जगी है। पटना नगर निगम के पूर्व पार्षद जगदीश प्रसाद यादव और लल्लू शर्मा तथा बीजेपी नेता राज कुमार चंद्रवंशी ने उनसे इस कुटिर उद्ïयोग को पुर्नजीवित करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा है कि बिहार के राखी उद्योग के पुर्नजीवित होने से यहां के कारीगरों और उद्योग को नई जान मिलेगी।