पटना

पटना: साढ़े 12 हजार पांडुलिपियों  का होगा डिजिटाइजेशन


मिथिला स्नातकोत्तर शोध संस्थान में है 11 सौ साल पुरानी पांडुलिपि भी

 (आज शिक्षा प्रतिनिधि)

पटना। 12,500 पांडुलिपियों को संरक्षित कर उसका डिजिटाइजेशन होगा। इन पांडुलिपियों में 1100 साल पुरानी पांडुलिपि भी है। ये पांडुलिपियां मिथिला स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान में हैं। यह संस्थान राज्य सरकार के शिक्षा विभाग का है, जो दरभंगा में है। संस्थान दुलर्भ एवं प्राचीन पांडुलिपियों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है।

पांडुलिपियों के संरक्षण एवं डिजिटाइजेशन की योजना शिक्षा विभाग के अपर मुख्यसचिव संजय कुमार की अध्यक्षता में हुई बैठक में बनी। इसके तहत सबसे पहले पांडुलिपियों का सूचीकरण होगा। सूचीकरण दो तरह का होगा। एक सूची में ऐसी पांडुलिपियां रखी जायेंगी, जो भंगुर या जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं। इसकी तुलना में बेहतर दिखने वाली पांडुलिपियां दूसरी सूची में होंगी। इसके लिए पांडुलिपियों की स्थिति देखी जायेगी कि किन पांडुलिपियों को पहले संरक्षित करना होगा, ताकि उसके बाद उसका डिजिटाइजेशन किया जा सके।

कला संस्कृति एवं युवा कार्य विभाग से भी इस बात की जानकारी ली जायेगी कि पांडुलिपियों के संरक्षण एवं डिजिटाइजेशन के लिए उसके पास बजट स्वीकृत है या नहीं। अन्यथा की स्थिति में आवश्यकतानुसार शिक्षा विभाग बजट स्वीकृत कराने की काररवाई करेगा। मिथिला स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान की  पांडुलिपियों से जुड़े कार्यों को लेकर इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इनटक) द्वारा 15 लाख रुपये स्वीकृत हैं।

बैठक गुरुवार को हुई थी। उसमें शिक्षा विभाग के सचिव असंगबा चुबा आओ ने कहा कि बिहार राष्ट्रभाषा परिषद में भी अन्य भाषाओं की पुरानी पांडुलिपियां हैं, जिसके संरक्षण एवं डिजिटाइजेशन की आवश्यकता होगी। इसे लेकर भी अपर मुख्यसचिव ने योजना बनाने को कहा है। बैठक में उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. रेखा कुमारी, उपनिदेशक डॉ. दीपक कुमार सिंह, इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इनटक) के प्रतिनिधि तथा मिथिला स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान के निदेशक डॉ. राजदेव प्रसाद सहित सभी संबंधित अधिकारी शामिल थे।

इस बीच मिथिला स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान की पांडुलिपियों की स्थिति को समझने के लिए लखनऊ से विशेषज्ञों की एक टीम शनिवार को पहुंची।