जम्मू (सुरेश एस डुग्गर) । कश्मीर में आतंकवाद निपट रहे सुरक्षाबलोंं के होश फाख्ता होने लगे हैं। कारण मुठभेड़ों में मारे जाने वाले अधिकतर आतंकी अब विदेशी नहीं बल्कि स्थानीय युवक हैं। अभी तक मरने वाले विदेशी और स्थानीय आतंकियों का अनुपात 10: 1 का होता था जो अब 2.10 में बदल गया है। यही नहीं इससे भी अधिक चिंता का विषय यह है कि यह स्थानीय आतंकी कश्मीर के भीतर ही स्थापित किए जाने वाले ट्रेनिंग कैम्पों में प्रशिक्षण पाने लगे हैं जिन्हें अभी तक तलाश ही नहीं किया जा सका है।पिछले साल मारे गए 232 के करीब आतंकियों में 200 स्थानीय नागरिक थे। जबकि वर्ष 2019 में मरने वाले 175 में से मात्र 50 ही विदेशी नागरिक थे और दोनों की मौतों में अंतर यह था कि इस बार सारे कश्मीर के भीतर मारे गए हैं और पिछले साल मरने वालों को एलओसी पर ढेर किया गया था।अधिकारी इसे चिंताजनक स्थिति निरूपित करते थे। पिछले कई सालों से आतंकवाद विरोधी अभियानों में लिप्त एक सुरक्षधिकारी के बकौल: ‘स्थानीय आतंकियों का आतंकवाद की ओर आकर्षण कश्मीर को 1990 की स्थिति में ले जाएगा और अगर ऐसा हुआ तो कश्मीर को फिर संभाल पाना बहुत कठिन होगा। वर्ष 2016 में 8 जुलाई को हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकी कमांडर और पोस्टर ब्याय के रूप में प्रसिद्ध बुरहान वानी की मौत के बाद ही कश्मीरी युवाओं का रूख आतंकवाद की ओर तेजी से हुआ हैै। आधिकारिक आंकड़ा आप कहता है कि बुरहान वानी की मौत के बाद 390 से अधिक युवा आतंकवादियों के साथ हो लिए। यह इससे भी साबित होता है कि बुरहान की मौत के बाद मरने वाले स्थानीय आतंकियों का आतंकवाद के साथ जुड़ाव 8 घंटों से से लेकर 60 दिन तक का था। यह क्रम रूका नहीं है। रोकने की तमाम कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं। सुरक्षाधिकारी सिर्फ अभिभावकों को समझाने के सिवाय कुछ नहीं कर पा रहे है। पत्थरबाजों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है। इतना जरूर था कि कश्मीरी आरोप लगाते थे कि सुरक्षाबलों के कथित अत्याचारों के कारण ही कश्मीरी युवा बंदूक उठाने को मजबूर हो रहे हैं।स्थानीय युवाओं का आतंकवाद की ओर बढ़ता आकर्षण पहले ही से सुरक्षाबलों के लिए चिंता का विषय बना हुआ था और अब यह जानकारियां सामने आने के बाद उनकी परेशानी और बढ़ गई है कि स्थानीय युवा प्रशिक्षण की खातिर सीमा पार नहीं जा रहे हैं।उन्हें पुराने आतंकियों या फिर एलओसी पार से आने वाले आतंकियों द्वारा कश्मीर के भीतर ही टेऊनिंग दी जा रही है। उन्हें सबसे पहले पुलिसवालों के हथियार छीनने का काम सौंपा जा रहा है। अधिकारियों ने माना है कि पुलिसकर्मियों से हथियार छीनने की अधिकतर घटनाओं में स्थानीय युवाओं का ही हाथ पाया गया है। ऐसा वे इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि सीमाओं पर सख्ती के कारण हथियारों की खेपें आनी लगभग रूक सी गई हैं।