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Sri Lanka Crisis: नासमझी की नीतियों के कारण श्रीलंका में बढ़ा संकट,


नई दिल्‍ली,। हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका में बीते कुछ माह से आर्थिक संकट गहरा गया है। यदि आर्थिक विकास की दृष्टि से देखा जाए तो वर्ष 2020 में श्रीलंका की प्रतिव्यक्ति आय बाजार विनिमय दर के हिसाब से 4053 डालर वार्षिक और क्रयशक्ति समता के आधार पर 13,537 डालर वार्षिक थी, जो भारत से कहीं अधिक थी। मानव विकास की यदि बात करें तो संयुक्त राष्ट्र की मानव विकास रिपोर्ट (2020) के अनुसार श्रीलंका का स्थान 72वां था, जबकि भारत का स्थान 131वां ही था। यानी आर्थिक विकास की दृष्टि से श्रीलंका की स्थिति बेहतर थी।

 

श्रीलंका के संकट की वजह

दरअसल, पूर्व के शासनाध्यक्षों और वर्तमान राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उन्हीं के भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने काफी नीतिगत गलतियां कीं, जिस कारण यह संकट खड़ा हुआ। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने श्रीलंका की साख रैंकिंग काफी नीचे कर दी है, जिससे श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजार से बाहर हो गया। इसके चलते श्रीलंका अपने विदेशी उधार का नवीकरण नहीं करा सका। विदेशी मुद्रा की कमी के कारण श्रीलंका की मुद्रा का अवमूल्यन शुरू हो गया और इस कमी को देखते हुए जब श्रीलंका ने आयातों को नियंत्रित करना शुरू किया तो उस कारण वस्तुओं, खासतौर पर ईंधन और खाद्य पदार्थों का अभाव हो गया। श्रीलंका सरकार का मानना था कि इस कारण विदेशी मुद्रा बचेगी और घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन मिलेगा जिससे निर्यात भी बढ़ेगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका और विदेशी मुद्रा भंडार और कम होते चले गए। अंतरराष्ट्रीय कर्ज के भुगतान में कोताही रोकने के लिए श्रीलंका सरकार को अपने स्वर्ण भंडार बेचने पड़े। वहीं श्रीलंका परंपरागत रूप से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है और विदेशी मुद्रा अर्जित करने में पर्यटन का खासा योगदान रहा है। महामारी के चलते पिछले साल पर्यटन से होने वाली आमदनी लगभग पांच अरब डालर घट गई।