मुंबई। प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन मनुष्य जब प्रकृति से खिलवाड़ करता है, तब उसे गुस्सा आता है और प्रकृति यह गुस्सा सूखा, बाढ़, सैलाब, तूफान के रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है। फिल्म भेड़िया की काल्पनिक कहानी भी अरुणाचल प्रदेश के जंगल के अस्तित्व को लेकर है। जब भी मनुष्य इस जंगल को काटने या उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तो विषाणु (भेड़िया) आ जाता है।
यह उन लोगों को अपना ग्रास बनाता है जो जंगल के दुश्मन होते हैं। प्रकृति है तो प्रगति है। फिल्म का यह संवाद पर्यावरण बचाने को लेकर है। निरेन भट्ट द्वारा लिखित कहानी के पीछे नेक मंशा है, लेकिन पर्दे पर वह समुचित तरीके से साकार नहीं हो पाई है।
क्या है भेड़िया की कहानी?
अरुणाचल प्रदेश में सड़क बनाने का कांट्रेक्ट मिलने के बाद दिल्ली से भास्कर (वरूण धवन) अपने चचेरे भाई जनार्दन (अभिषेक बनर्जी) के साथ जाता है। वहां पर जोमिन (पालिन कबाक) और पांडा (दीपक डोबरियाल) भास्कर की मदद करते हैं। हालांकि, सड़क बनाने की राहें आसान नहीं होतीं।
आदिवासी समुदाय अपनी जमीन को छोड़ने और जंगल काटने को तैयार नहीं है। भास्कर को लगता है कि पैसों से सब कुछ खरीदा जा सकता है। वह कोशिश में लगा रहता है। इसी दौरान जंगल में भास्कर पर एक भेडि़या हमला करता है। उसे इलाज के लिए जानवरों की डॉक्टर अनिका (कृति सेनन) के पास ले जाते हैं, ताकि स्थानीय लोगों को इस हमले के बारे में पता नहीं चले।
इस हमले के बाद भास्कर के सूंघने और सुनने की क्षमता बढ़ जाती है। उसमें कई बदलाव होते हैं। अमावस की रात में वह भेड़िया बन जाता है। (जैसे महेश भट्ट की फिल्म जुनून में राहुल राय का किरदार जानवर बनता है)। वह लोगों को अपना शिकार बनाता है। उसके बदलाव का कारण क्या है? क्या वह वापस आम इंसान बन पाएगा या नहीं, आगे की कहानी इस संबंध में है।
इस साल अनुभव सिन्हा निर्देशित फिल्म अनेक के जरिए पूर्वोत्तर राज्य के लोगों की समस्याओं को दर्शाने की कोशिश की गयी थी। अब भेड़िया में प्रकृति के बचाव और अरुणाचल प्रदेश के लोगों के साथ भेदभाव, उन्हें चीनी समझना उनका मजाक उड़ाना समेत कई मुद्दों को उठाने की कोशिश की गई है। स्त्री और बाला के निर्देशक अमर कौशिक निर्देशित इस फिल्म में जमीन और जंगल की लड़ाई को लेकर कई ट्विस्ट और टर्न्स हैं। फिल्म का खास आकर्षण है, इसके विजुअल इफेक्ट्क्स।
तकनीकी तौर पर उन्नत फिल्म
भेड़िया का ट्रांसफॉर्मेशन स्क्रीन पर देखना अच्छा लगता है। हालांकि, सबसे कमजोर कड़ी इसकी कहानी है। जंगल और जमीन की इस लड़ाई में लेखक और निर्देशक किरदारों को समुचित तरीके से स्थापित नहीं कर पाए हैं। भास्कर गुस्से में कई बार शरीर में घुस आए प्रेत की भांति व्यवहार करता है। वह लोगों को उठा लेता है, कभी वह भेड़िया की तरह चलने लगता है। हॉरर कामेडी के जरिए उठाए गए संजीदा विषय में बीच-बीच में हास्य के पुट हैं। जंगल में विषाणु को लेकर स्थानीय लोगों के भय को भी कहानी में समुचित तरीके से नहीं दर्शाया गया है।
अभिषेक-दीपक न डाली जान
कलाकारों में वरूण धवन अपने चिर-परिचित अंदाज में हैं। कृति सेनन के किरदार को लेकर कई सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं। अभिषेक बनर्जी और दीपक डोबरियाल की कॉमेडी ही फिल्म की जान है। अभिनेता पालिन कबाक का काम उल्लेखनीय है। उनकी मासूमियत लुभाती है।
फिल्म में स्थानीय कलाकारों को भी मौका दिया गया है। हालांकि, किरदार आधे-अधूरे रह गए हैं। जिष्णु भट्टाचार्जी की सिनेमेटोग्राफी नयनाभिरामी है। उन्होंने अरुणाचल प्रदेश की खूबसूरती को कैमरे में उम्दा अंदाज में कैद किया है। जंगल की कहानी में मंगल करने के लिए डाला गया गाना जंगल में कांड हो गया और गुलजार का गाना चड्ढी पहनाकर फूल खिला फिल्म की गति बाधित करते हैं।
यह क्रीचर हॉरर कॉमेडी डराती नहीं, पर हंसाती जरूर है। निर्माता दिनेश विजन अपनी हॉरर कामेडी फिल्म स्त्री, रूही और भेड़िया के किरदारों को मिलाकर एक यूनिवर्स बनाने की तैयारी में हैं, जिसका इशारा फिल्म के एंड क्रेडिट रोल में किया गया है।
प्रमुख कलाकार: वरूण धवन, कृति सैनन, अभिषेक बनर्जी, दीपक डोबरियाल, पालिन कबाक आदि।
निर्देशक: अमर कौशिक
अवधि: 156 मिनट
स्टार: ढाई