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Bihar : एनडीए या महागठबंधन, किसके साथ नीतीश की जोड़ी रही हिट?


पटना।  बिहार में जदयू की मौजूदगी का मतलब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के 18 वर्षां से मुख्यमंत्री के पद पर बने रहना है। वर्ष 2005 से वह लगातार बिहार के मुख्यमंत्री हैं। बीच में कुछ समय के लिए भले ही जीतनराम मांझी को उन्होंने अपनी इच्छा से मुख्यमंत्री बनाया था। कभी एनडीए तो कभी महागठबंधन की मदद से नीतीश लगातार मुख्यमंत्री हैं।

 

जदयू वन मैन शो के साथ बिहार में मौजूद

जदयू इस वन मैन शो के साथ बिहार में मौजूद है। पर लोकसभा चुनाव व विधानसभा चुनाव के आंकड़े के साथ बिहार में जदयू के दमखम पर बात करें तो यह दिखता रहा है कि एनडीए के साथ जब जदयू का गठबंधन रहा है तो उनके लिए नए रिकार्ड बने हैं।

बात 2019 के लाेकसभा चुनाव से शुरू करते हैं। उस चुनाव में जदयू की जुगलबंदी भाजपा के साथ थी। जदयू को 16 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी और भाजपा को 17 सीटों पर। जदयू के इस आंकड़े ने इसे लोकसभा में देश के सातवें सबसे बड़े दल के रूप में स्थापित किया।

2019 के ठीक पहले रहा ये हाल

अब बात 2019 के ठीक पहले वाले चुनाव की करें। उस वर्ष यानी 2014 में जदयू नेतृत्व को यह मंजूर नहीं हुआ कि वह भाजपा के साथ चुनाव मैदान में आए। जदयू ने भाजपा के साथ अपने 17 वर्षों के गठबंधन को तोड़ दिया। जदयू ने तब भाकपा के साथ मिलकर बिहार में चुनाव लड़ा और परिणाम यह रहा कि उसे केवल दो सीटें आयीं।

इनमें एक सीट ताे नीतीश कुमार (Niitsh Kumar) के गढ़ नालंदा की थी और दूसरी पूर्णिया की। वहीं भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 32 सीटें जीतीं। जदयू के इस बड़े झटके के बाद नीतीश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया था। वहीं 2009 में जदयू ने लोकसभा का चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था। उस चुनाव में एनडीए को 32 सीटें मिली थीं जदयू को 20 और भाजपा को 12 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।

एनडीए के साथ रहने पर जदयू की ताकत बिहार के विधानसभा चुनाव में भी दिखती रही है।जदयू ने 2005 में बिहार विधानसभा का चुनाव एनडीए यानी भाजपा के साथ मिलकर लड़ा। जदयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें 88 पर उसे जीत मिली। भाजपा ने 102 सीटों पर प्रत्याशी दिए और जीत 55 पर मिली। जदयू पूरी ताकत से बिहार में स्थापित हुआ।

राजद को 175 में मात्र 54 सीटों पर जीत हासिल हुई

उस चुनाव में राजद को 175 में मात्र 54 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। बिहार से तब राजद के 15 वर्षों के शासन काल की विदाई हो गयी थी। जदयू की ताकत 2010 के लोकसभा चुनाव में बिहार में और बढ़ गयी। जदयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 115 सीटों पर जीत मिली थी। उसके वोट में 27 प्रति्शत की बढ़ोतरी हुई थी। तब भाजपा को 102 में 91 सीटें ही मिली थीं। जदयू बिहार में बड़े भाई के रूप में स्थापित हो गया था।

महागठबंधन के साथ रहा ये हाल

वहीं 2015 में जब महागठबंधन में शामिल होकर जदयू ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा तो उसे 71 सीटें आयीं। वर्ष 2020 का विधानसभा चुनाव जदयू ने एनडीए के साथ लड़ा पर वोटकटवा अंदाज में दूसरे दल के खड़ा होने पर जदयू में 115 में केवल 44 सीटें ही मिल सकीं।

पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बने। बाद में नीतीश महागठबंधन में चले गए पर फिर उनकी एनडीए में वापसी हुई। अब इस साल का लाेकसभा चुनाव जदयू पुन: एनडीए के घटक के रूप में लड़ रहा।

जदयू की कहानी बहुत पुरानी नहीं है। वर्ष 1999 में कर्नाटक में जनता दल के तत्कालीन मुख्यमंत्री जेएच पटेल के नेतृत्व में एक गुट ने एनडीए को समर्थन दे दिया था। तब जनता दल के दो धड़े हो गए थे। एक धड़े का नेतृत्व शरद यादव कर रहे थे और दूसरा धड़ा एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में अस्तित्व में आया।

उसी वर्ष जनता दल के शरद यादव वाला गुट, रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति और समता पार्टी का विलय होकर जनता दल (युनाइटेड) का गठन हुआ।