पटना, । वैसे तो राजनीति में कब क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता। कब किस राजनीतिक दल पर मतदाता मेहरबान हो जाएं, कहा नहीं जा सकता, लेकिन आकलन वर्तमान और अतीत का ही होता है। बिहार में केवल तीन साल में शून्य से चार विधायकों तक पहुंचे मुकेश सहनी की स्थिति इस समय न घर की बची है और न घाट की। भाजपा के सहारे बनी हैसियत उनके तीन विधायक तोड़ भाजपा ने ही छीन ली और जिस बोचहां सीट को लेकर वह टकराए थे, वह प्रत्याशी ही उन्हें छोड़ राजद के झंडे तले मैदान में उतर गया।
अब मंत्री पद जाना बचा है, जो भाजपा छोड़ने वाली नहीं, पर अगर थोड़ी मेहरबानी भी की तो जुलाई में विधान परिषद की सदस्यता जाने के बाद दोबारा कोई उन्हें भेजने वाला भी नहीं। मुकेश को झटका देकर उसके तीन विधायक तोड़ने वाली भाजपा इस संख्या के सहारे सदन में सबसे बड़े दल का रूप ले चुकी है और बहुमत के लिए जदयू व उसकी संख्या ही काफी है। हम, वीआइपी या किसी निर्दलीय की इन्हें जरूरत नहीं है। अब सहनी की नजर बोचहां सीट पर लगी है, जो उनकी भावी राजनीति तय करेगी।