नई दिल्ली, । दिल्ली हाईकोर्ट ने इंडियन मुजाहिद्दीन के एक कथित सदस्य मंजर इमाम की जमानत याचिका पर NIA से जवाब मांगा है। वह आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत दर्ज एक मामले में नौ साल से अधिक समय से जेल में है।
ट्रायल में देरी के आधार पर मांगी बेल
ट्रायल में देरी के साथ याचिका में मामले की योग्यता के आधार पर जमानत भी मांगी गई है। एनआईए ने अगस्त 2013 में इमाम के खिलाफ मामला दायर किया था जिसमें कहा गया था कि उसने और अन्य लोगों ने आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने की साजिश रची और देश में महत्वपूर्ण स्थानों को निशाना बनाने की योजना बनाई।
हालांकि मामले में आरोप तय किए जाने बाकी हैं। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने उनकी याचिका पर नोटिस जारी किया। पीठ ने मामले को मार्च में अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। पिछले साल अक्टूबर में एक जज ने अनुरोध किया कि उसकी जमानत अर्जी पर विशेष अदालत द्वारा 75 दिनों के भीतर सुनवाई और फैसला किया जाए।
10 जनवरी को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल ने इमाम की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। जस्टिस मृदुल ने कहा कि उस समय मैं सरकार का वरिष्ठ वकील था, इसलिए मैं इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकता।
ट्रायल में देरी को जमानत का नहीं बना सकते हैं आधार
इमाम के वकील ने कहा कि अभियुक्त नौ साल तक हिरासत में रहा था और उसके खिलाफ आरोप फिर से दायर किए गए थे। 28 नवंबर 2022 को एडीशनल सेशन जज शैलेंद्र मलिक ने फैसला सुनाया कि इस मामले में ट्रायल में देरी को जमानत देने के बचाव के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने इमाम के ज़मानत के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था।
हालांकि कोर्ट ने कहा था कि इस निष्कर्ष के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि उसका आरोप सही था, क्योंकि मुकदमे में इतना समय लग रहा था, इसलिए इमाम ने ज़मानत मांगी थी।