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Delhi: सिक्कों में दिखा प्राचीन भारत का समृद्ध और गौरवमयी इतिहास


नई दिल्ली, : नई दिल्ली स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब आफ इंडिया में दिल्ली मुद्रा उत्सव में भले ही बेशुमार प्राचीन सिक्‍कों की जमकर सौदेबाजी हो रही हो, लेकिन 21 महाजनपदों एवं जनपदों की यह मुद्राएं समृद्ध भारत की अनमोल विरासत और गौरवमयी इतिहास की पूरी झलक दिखला जाते हैं।

महाराष्ट्र के विदर्भ से आए अविनाश रामटेके बहुत गर्व और उत्‍साह से इन सिक्‍कों की बारीकियों के बारे में बताते हैं। उनका दावा है कि 16 महाजनपदों के इन विविध सिक्कों को पहली बार आम-जनता के लिए सार्वजनिक तौर पर पेश किया गया है। उन्होंने कहा कि बाजार के लिहाज से इन सिक्‍कों की कीमत भले ही कम हो, लेकिन यह हमारी अनमोल धरोहर है।

सिक्‍कों की कैसे होती है पहचान

अन्‍य युगों से विपरीत छठी शताब्‍दी के सिक्‍कों की खासियत यह है कि इन मुद्राओं का आकार करीब-करीब एक जैसा है। इन सिक्‍कों का संग्रह करने वाले रामटेके का कहना है कि महाजनपदों के अधिकतर सिक्‍के कापर या चांदी के हुआ करते थे। चूंकि, उस वक्‍त इन मुद्राओं में राजाओं के नाम अंकित नहीं होते थे न ही मुद्रा पर टकसाल का नाम होता था। इसलिए सिक्‍कों पर अंकित लिपि और संकेतों के आधार पर ही इनकी पहचान की जाती है। दूसरे जिन स्थानों पर ये सिक्‍के पाए जाते हैं उससे महाजनपद का निर्धारण किया जाता है। इसकी मदर सोसाइटी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में है। वहां के शोधकर्ताओं ने इस पर काफी मेहनत की है। इन सिक्कों की अधिकता के कारण इसकी बाजार में कीमत कम होती है। हालांकि, कुछ महाजनपदों के सिक्‍के काफी महंगे बिकते हैं।

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वत्‍स, कलिंग और कुंतल जनपदों के सिक्‍के दुर्लभ

रामटेके का कहना है कि महाजनपदों एवं जनपदों के सिक्‍के आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन वत्स, कलिंग और कुंतल जनपद के सिक्‍के काफी दुर्लभ हैं। इसलिए यह काफी महंगे होते हैं। कई वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद इन सिक्‍कों का संग्रह हुआ है। उन्‍होंने कहा कि मगध और मौर्यन के सिक्के आसानी से मिल जाते हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि इनके शासन का कार्यकाल काफी लंबे समय तक रहा है। इसके चलते इनके सिक्कें आसानी से सुलभ है। रामटेके ने कहा कि इन सिक्‍कों में आम लोगों की दिलचस्‍पी कम होती है, क्यों कि मुगल या ब्रिटिश शासकों की तरह इस पर राजा का नाम वर्ष नहीं अंकित है।

कापर और सिल्वर के सिक्के

छठी शताब्‍दी में कापर और सिल्‍वर की मुद्राएं पायी जाती थीं। अंग जनपद के सिक्‍के कापर के थे। बाकी अन्‍य जनपदों के सिक्‍के सिल्‍वर के हैं। हालांकि, मौर्यकालीन शासन के बाद विदर्भ में भद्र और मित्र के शासन काल में स्‍थानीय शासकों ने सिक्‍कों में अपना नाम अंकित कराया था। उस दौर के सिक्‍कों में राजा का नाम अंकित है। यह मुद्रा सिल्‍वर में है। यह ब्राहमी लिपि में है।

छठी शताब्दी में 16 महाजनपदों का शासन

ऐतिहासिक दस्‍तावेजों के अनुसार भारत में छठी शताब्दी (लगभग 700 से 600 ईसा पूर्व) महाजनपदों की स्‍थापना और विकास का कार्यकाल है। इन राजवंश के शासकों द्वारा छोटे-छोटे कस्‍बों एवं शहरों को मिलाकर महाजनपदों की स्‍थापना हुई। 16 महाजनपदों में प्रमुख रूप से कुरु राजवंश, कोशल राजवंश, पांचाल राजवंश, विदेह राजवंश मत्‍स्‍य राजवंश, चेदि राजवंश मगध और गांधार राजवंश की काफी ख्‍याति थी। यह 16 महाजनपद विख्यात शिल्प, कला एवं व्यापार के प्रमुख आकर्षण का केंद्र हुआ करते थे।

प्राचीन नाम : आधुनिक नाम

1- काशी : बनारस

2- वज्जि : बिहार

3- कोशल : पूर्वी उत्तर प्रदेश

4- मगध : गया और पटना

5- मल्ल : देवरिया यूपी

6- चेदि : बुन्देलखंड

7- कुरु : मेरठ और दक्षिण पूर्व हरियाणा

8- वत्स : प्रयागराज

9- पांचाल : पश्चिमी उत्तर प्रदेश

10- सूरसेन या शूरसेन : मथुरा

11- अश्मक या अस्सक : गोदावरी नदी का किनारा

12- अवन्ति : मालवा और मध्य प्रदेश

13- गांधार: रावल पिंडी

14- मत्स्य : जयपुर (राजस्थान)

15- कम्बोज : राजौरी

16- अंग : मुंगेर और भागलपुर