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Delhi : हाईकोर्ट ने कहा- दिल्ली न्यायिक सेवा के अधिकारियों को केंद्रीय ग्रुप में नहीं किया जा सकता शामिल


नई दिल्ली : संस्कृति स्कूल में सरकारी कोटे के तहत प्रवेश की मांग काे लेकर बेटी की तरफ से निचली अदालत के एक न्यायाधीश की याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि शिक्षण संस्थान में आरक्षण योजना के तहत दिल्ली न्यायिक सेवा के अधिकारियों को केंद्रीय अधिकारियों (ग्रुप ए) की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह की पीठ ने कहा कि अगर दिल्ली न्यायिक सेवा (डीजेएस) नियम-तीन (सी) के अनुसार व्याख्या की जाए तब भी प्रविधान के अनुसार सेंट्रल स्टाफिंग स्कीम के तहत दिल्ली न्यायपालिका के तहत सेवाओं को योग्य केंद्रीय सेवा अधिकारी (ग्रुप ए) की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता है।

अदालत ने यह भी नोट किया कि स्कूल में प्रवेश के संबंध में 21 जनवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों तहत स्कूल को अपनी आवश्यकताओं और शीर्ष अदालत के निर्देशों के अनुसार आरक्षण बनाए रखने की स्वतंत्रता है।पीठ ने उक्त टिप्पणी याचिकाकर्ता की उन दलीलों पर दिया। जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि दिल्ली न्यायिक नियम 1970 के नियम 3 (सी) के तहत एक न्यायिक अधिकारी है।ऐसे में डीजेएस नियमों के नियम 33 के अनुसार एक सिविल ग्रुप-ए राजपत्रित पद धारण करता है और इसे सरकार के समान माना जाना चाहिए।

संस्कृति स्कूल में 60 प्रतिशत सीटें सिविल सेवा, रक्षा संवर्ग और समूह-ए सिविल सेवा जैसी संबद्ध सेवाओं के अधिकारियों के बच्चों के लिए आरक्षित हैं।पीठ ने तर्क पर कहा कि दिल्ली न्यायिक सेवा निश्चित रूप से आरक्षण योजना में शामिल नहीं है और न ही इसे सिविल या रक्षा सेवाओं के व्यापक प्रतिनिधित्व में भी शामिल किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2016 में कहा था कि दिल्ली में प्रतिनियुक्ति या स्थानांतरण पर अखिल भारतीय सेवा, भारतीय विदेश सेवा और अन्य पात्र केंद्रीय सेवा अधिकारियों (ग्रुप ए) के अधिकारियों के बच्चे ही 60 प्रतिशत कोटे के तहत प्रवेश के पात्र होंगे।

याचिकाकर्ता के पिता दिल्ली न्यायिक सेवा में शामिल हो गए थे और परिवीक्षा अवधि पूरी होने के बाद स्थायी सदस्य बन गए थे।वर्ष 2018 में स्कूल ने याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी से इन्कार कर दिया था क्योंकि इसने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा भर्ती नहीं होने के आधार पर दिल्ली न्यायिक सेवा को सिविल सेवा के रूप में स्वीकार करने से इन्कार कर दिया था।

वहीं, स्कूल प्रशासन ने कहा कि दिल्ली न्यायिक सेवा एक सिविल सेवा नहीं है क्योंकि राज्य और पद धारण करने वाले व्यक्ति के बीच स्वामी और सेवक का कोई संबंध नहीं है। यह भी तर्क दिया गया कि स्कूल के खिलाफ याचिका सुनवाई योग्य नहीं थी क्योंकि एक निजी संस्थान होने के कारण यह हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी नहीं था।