नई दिल्ली, अपहरण के मामले में महिला आरोपितों को बरी करने के निचली अदालत के निर्णय की आलोचना करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि बिना किसी ठोस या वैध आधार के महिला आरोपित के पक्ष में लिंग आधारित धारणाएं हमारी न्याय प्रणाली के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध हैं।
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि हमारी कानूनी प्रणाली लिंग तटस्थता के सिद्धांत पर आधारित है और प्रत्येक व्यक्ति को कानून के अनुसार जिम्मेदार ठहराया जाता है। लिंग पर आधारित धारणाओं का इस ढांचे में कोई स्थान नहीं है।
चार महिला आरोपितों को बरी करने के फैसले पर की टिप्पणी
अदालत ने उक्त टिप्पणियां अपहरण के एक मामले में चार महिला आरोपितों को बरी करने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
अदालत ने कहा कि आपराधिक कृत्य में प्रत्येक व्यक्ति की संलिप्तता का स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
अदालत ने रजिस्ट्रार जनरल को इस आदेश की प्रति को दिल्ली के सभी जिला और सत्र न्यायाधीशों और दिल्ली न्यायिक अकादमी के निदेशक को भेजने का निर्देश दिया, ताकि इसका प्रसार सुनिश्चित किया जा सके।