मामले के अनुसार भोपालगढ़ निवासी महेश द्वारा 29 सितंबर, 2009 को अहमदाबाद से जोधपुर यात्रा के लिये स्वयं, माता व बहिन के आरक्षण टिकट के लिए फार्म भरकर दिया किन्तु बुकिंग कर्मचारी द्वारा टिकट में माता व बहिन के साथ उसे भी फिमेल अंकित कर दिया। इस त्रुटि के बाबत बताने के बावजूद भी सुधार नहीं किया गया। नियत दिवस को यात्रा की समाप्ति पर जब वह ट्रेन से उतरा तो जोधपुर रेलवे स्टेशन पर उड़नदस्ता ने उसकी टिकट को नहीं माना व उसे बेटिकट यात्री बतलाकर पुलिस कार्रवाई की धमकी देते हुए जबरन 330 रुपए जुर्माना वसूल कर लिया।
मालूम हो कि डी आर एम. रेलवे जोधपुर की ओर से ज़बाब पेश कर अनेक कानूनी आपत्तियां की गई व इसके लिए खुद परिवादी को जिम्मेदार ठहराया गया। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद आयोग के अध्यक्ष डॉ श्याम सुन्दर लाटा, सदस्य डॉ अनुराधा व्यास, आनंद सिंह सोलंकी ने अपने निर्णय में कहा कि टिकट चैकिंग दल द्वारा परिवादी का पक्ष सुनने व टिकट बाबत जांच पड़ताल किए बिना ही उससे नाजायज रूप से जुर्माना वसूल किया गया है। परिवादी रेलवे का सम्मानित यात्री होने के बावजूद कर्मचारियों की बार-बार ग़लती से उसे रेलवे स्टेशन पर परिवारजनों व अन्य यात्रियों के समक्ष अपमानजनक स्थिति से गुजरना पड़ा है ।
आयोग ने इसे रेलवे की सेवा में भारी कमी व अनुचित व्यापार-व्यवहार मानते हुए जुर्माना राशि 330 रुपए वापस लौटाने तथा परिवादी को शारीरिक व मानसिक वेदना की क्षतिपूर्ति के निमित्त पचास हजार रुपए हर्जाना की राशि रेलवे द्वारा भुगतान किए जाने का आदेश दिया है।