मुंबई। महाराष्ट्र में उद्धव सरकार द्वारा जाते-जाते जल्दबाजी में किए गए औरंगाबाद व उस्मानाबाद का नाम बदलने के निर्णय पर एकनाथ शिंदे सरकार ने अपनी मुहर लगा दी है। हालांकि नई सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए शिवसेना उद्धव गुट के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि सिर्फ दो मंत्रियों वाले मंत्रिमंडल के फैसले की संवैधानिक वैधता नहीं होती। पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने मंत्रिमंडल की अंतिम बैठक में महाराष्ट्र के दो शहरों के नाम बदलने का प्रस्ताव पारित किया था। इस बैठक में औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजी नगर व उस्मानाबाद का नाम धाराशिव कर दिया गया था। इसके अलावा पनवेल में बन रहे नए विमानतल का नाम स्थानीय लोगों की मांग पर लोकनेता डीबी पाटिल विमानतल करने का फैसला किया गया था।
केंद्र सरकार के पास भेजेंगे प्रस्ताव
शनिवार को सप्ताह में दूसरी बार बुलाई गई मंत्रिमंडल की बैठक में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे व उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उद्धव सरकार के उस फैसले पर मुहर लगा दी। बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा कि 29 जून को तत्कालीन सरकार ने अल्पमत में रहते हुए यह फैसला जल्दबाजी में किया था। भविष्य में इस निर्णय को लेकर कोई दिक्कत खड़ी नहीं हो, इसलिए हमारी पूर्ण बहुमतवाली सरकार ने इस फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि अब सरकार महाराष्ट्र विधानमंडल में इन सभी नामांतरणों का प्रस्ताव पास करवाकर केंद्र सरकार के पास भेजेगी। वहां से अनुमति मिलने के बाद नाम बदलने की की प्रक्रिया पूर्ण होगी।
संजय राउत ने किया ट्वीट, इसकी संवैधानिक वैधता नहीं
शिंदे मंत्रिमंडल ने भले ही उद्धव मंत्रिमंडल के ही फैसले पर मुहर लगाई हो, लेकिन शिवसेना उद्धव गुट के प्रवक्ता संजय राउत को यह फैसला भा नहीं रहा है। उन्होंने ट्वीट किया- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164,1ए के अनुसार राज्य मंत्रिमंडल में कम से कम 12 मंत्री होने चाहिए। इससे कम होने पर संविधान कैबिनेट को मंजूरी नहीं देता। पिछले दो सप्ताह से महाराष्ट्र में दो मंत्रियों का मंत्रिमंडल फैसले ले रहे है। इसकी कोई संवैधानिक वैधता नहीं है। राज्यपाल, यह क्या हो रहा है?
इन शहरों को बदले नामों से पुकारते थे बाला साहब ठाकरे
औरंगाबाद व उस्मानाबाद शहरों के नाम क्रमश: छत्रपति संभाजी नगर व धाराशिव करने की मांग शिवसेना द्वारा काफी पहले से की जाती रही है। शिवसेना संस्थापक बाला साहब ठाकरे जीवनभर इन नगरों को अब बदले जा रहे नामों से ही पुकारा करते थे। चूंकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे बाला साहब के विचारों को आगे ले जाने का दावा करते हैं, इसलिए उन्होंने उद्धव सरकार के इस फैसले पर मुहर लगाकर संदेश देने की कोशिश की है कि उनकी सरकार बाला साहब के विचारों वाली सरकार है।
कांग्रेस, राकांपा और एआइएमआइएम ने किया विरोध
मुगल शासक औरंगजेब के नाम से जाने जानेवाले औरंगाबाद शहर का नाम बदला जाना कांग्रेस, राकांपा और एआइएमआइएम जैसी पार्टियों को रास नहीं आ रहा है। शिंदे सरकार द्वारा इस फैसले पर मुहर लगाए जाने के बाद औरंगाबाद से ही एआइएमआइएम के सांसद इम्तियाज जलील ने यह कहकर इस फैसले की आलोचना की है कि शिंदे सरकार महापुरुषों के नाम को लेकर राजनीति कर रही है। एआइएमआइएम इस नामांतर को लेकर औरंगाबाद में विरोध प्रदर्शन भी कर चुकी है। कांग्रेस भी सैद्धांतिक रूप से इस नामांतर की विरोधी रही है। जिस दिन उद्धव ठाकरे ने अपनी कैबिनेट की बैठक में यह फैसला किया था, उस दिन कांग्रेस के दो मंत्री असलम शेख एवं वर्षा गायकवाड बैठक का बहिष्कार कर बाहर आ गए थे। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने फैसले के पक्ष में बोलते हुए कहा था कि इस इतिहास को बदला नहीं जा सकता कि औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज की बर्बरतापूर्वक हत्या की थी।