Latest News अन्तर्राष्ट्रीय

NATO की सदस्‍यता के नाम पर यूक्रेन को 14 वर्षों से झांसा दे रहा है अमेरिका


नई दिल्‍ली । रूस और यूक्रेन की लड़ाई के कुछ सबसे बड़े कारणों में से एक उसका नाटो की तरफ झुकाव है। ये झुकाव न तो रातों-रात बना था और न ही इसका सदस्‍य बनने को लेकर यूक्रेन कुछ दिनों या महीनों से कोशिश कर रहा था। आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि यूक्रेन की ये कोशिश अप्रेल 2008 से शुरू हुई थी। अब उसके इस ख्‍वाब को चौदह वर्ष हो चुके हैं। लेकिन, आज भी वो इससे दूर है। यदि ये कहा जाए कि अब उसका ये ख्‍वाब पूरी तरह से टूट चुका है तो ये गलत नहीं होगा। ऐसा कहने की भी यहां कुछ खास वजह है। दरअसल, यूक्रेन के राष्‍ट्रपति इस जंग के बाद तीन बार नाटो को लेकर बड़ा बयान दे चुके हैं।

यूक्रेन के राष्‍ट्रपति जेलेंस्‍की का नाटो को लेकर बयान 

एक बयान में उन्‍होंने कहा था कि नाटो के ग्रीन सिग्‍नल के बाद ही रूस ने यूक्रेन के शहरों को निशाना बनाया था। इसके बाद उन्‍होंने कहा था कि यूक्रेन नाटो का सदस्‍य नहीं बन सकता है। उन्‍होंने कहा था कि जब वो राष्‍ट्रपति बने थे तभी उन्‍होंने इस मुद्दे को ठंडे बस्‍ते में डाल दिया था। इसकी वजह थी अमेरिका और नाटो व्‍यवहार। बाद उन्‍होंने कहा कि नाटो को साफतौर पर ये बताना चाहिए कि वो यूक्रेन को सदस्‍यता देगा कि नहीं। उन्‍होंने ये भी कहा था कि वो यूक्रेन को इसलिए सदस्‍यता देने से बच रहा है क्‍योंकि नाटो रूस से डरता है। उनके इन बयानों में कहीं न कहीं नाटो के प्रति उनके विश्‍वास को टूटते हुए महसूस किया जा सकता है।

नाटो के विस्‍तार का विरोध करता रहा है रूस 

यूक्रेन को नाटो की सदस्‍यता की बात करें तो आज इसके सदस्‍यों की संख्‍या 30 तक पहुंच चुकी है। वर्ष 2000 के बाद भी नाटो ने अपने विस्‍तार की प्रक्रिया को लगातार जारी रखा है। वहीं यदि रूस की बात करें तो राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन मेशा से ही नाटो की विस्‍तारवादी नीतियों का विरोधी रहा है। यूक्रेन, चूंकि रूस की सीमा से लगा हुआ है इसलिए वो नहीं चाहता है कि यूक्रेन नाटो का सदस्‍य बने और नाटो की फौज और उसके घातक हथियार उसकी सीमा पर तैनात कर दिए जाएं। यही वजह है कि रूस किसी भी सूरत से अपने पड़ोसी देशों में ऐसा नहीं होने देना चाहता है। बता दें कि नाटो में अमेरिका का वर्चस्‍व है और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि रूस और अमेरिका के बीच आज भी शीतयुद्ध जैसे हालात ही हैं। इन दोनों में ही खुद को विश्‍व के महाशक्ति के रूप में बनाए रखने की लालसा खत्‍म नहीं हुई है।