नई दिल्ली, : शादी-पार्टीज़ में लोगों को सबसे पहला फोकस खूबसूरत और स्टाइलिश दिखना होता है। स्टाइलिश दिखने की होड़ में लोग हर अलग फंक्शन और इवेंट के लिए आउटफिट्स की शॉपिंग करते हैं और शादी-ब्याह में तो ये और भी ज्यादा देखने को मिल रहा है। वेडिंग लहंगे-शेरवानी के अलावा हल्दी, मेहंदी, संगीत मतलब जितने फंक्शन उतने कपड़े। लेकिन शादी-ब्याह के महंगे कपड़े लोग एक से दो बार ही पहनते हैं। उसके बाद वो वॉर्डरोब में पड़े-पड़े धूल फांकते रहते हैं। हर बार अलग लुक की चाहत में ये जो हम नए-नए आउटफिट खरीदते हैं और इसे एक से ज्यादा बार रिपीट नहीं करते, ये आदत पैसों की बर्बादी के साथ हमारे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहा है। आंकड़ों के मुताबिक किसी भी कचरे का 57% हिस्सा सिर्फ कपड़ों से भरा होता है। आपको ये जानकर हैरानी होगी की 3 साल में एक इंसान जितना पानी पीता है उतना पानी सिर्फ एक जींस बनाने में खर्च हो जाता है।
आप जब पुराने कपड़ों को पहनते नहीं और उन्हें फेंक देते हैं, तो ये कूड़े का हिस्सा बन जाते हैं। जिसे डीकम्पोज होने में कई साल लगते हैं। जो पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदेह होता है।
फास्ट फैशन कैसे पहुंचा रहा है पर्यावरण को नुकसान?
अगर आपको नहीं पता, तो बता दें कि ऑयल इंडस्ट्रीज से दुनिया भर में सबसे ज्यादा प्रदूषण होता है। दूसरे नंबर पर फैशन इंडस्ट्री है। फास्ट फैशन, जैसे कि नाम से ही जाहिर हो रहा है इसमें लोग कपड़ों को कम समय के लिए पहनते हैं। ये सस्ते में मिलते हैं और इनका प्रोडक्शन बहुत तेज़ी से होता है। ऐसे कपड़ों को बनाने में बहुत सारा वेस्ट निकलता है और यही वेस्ट पर्यावरण को दूषित करता है। इनमें से कई प्रोडक्ट्स तो ऐसे भी होते हैं जिनकी क्वॉलिटी सही नहीं होती लेकिन उसे बनाने में बहुत ज्यादा पैसे खर्च होते हैं। पहले जहां सीजन के मुताबिक, कपड़े डिजाइन किए जाते थे, वहीं कपड़े बनाने वाली कंपनियां अब हर हफ्ते नए कपड़े ला रही हैं। सस्ता और फैशनेबल होने के चलते लोग इन्हें खरीद तो लेते हैं, लेकिन जैसे ही ये आउट ऑफ ट्रेंड हो जाते हैं, इन्हें पहनना छोड़ देते हैं।
सोशल प्रेशर है फास्ट फैशन को बढ़ावा मिलने की बड़ी वजह
कपड़े रिपीट न करने के सोशल प्रेशर और पुराने ट्रेंड के कपड़ों के कम पहने जाने की वजह से जरूरत से ज्यादा वॉर्डरोब में कपड़ों की भरमार लगती जाती है और कुछ समय इन्हें हटा दिया जाता है।
फास्ट फैशन से पर्यावरण को हो रहा नुकसान
– पूरी दुनिया में शिपिंग और इंटरनेशनल एयर ट्रेवल से वायु जितनी दूषित होती है उससे कहीं ज्यादा वायु प्रदुषण सिर्फ टेक्सटाइल इंडस्ट्री से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीन्हाउस गैस से होता है। हर साल 5.30 करोड़ टन कपड़े के धागे का प्रोडक्शन होता है जिसमें से 70% सीधे-सीधे कचरे में जाता है।
– पॉलिएस्टर और ऐक्रेलिक जैसे सिन्थेटिक फाइबर्स प्लास्टिक पॉलीमर्स से बनते हैं। इन्हें डीकोम्पोज होने में 200 साल तक लग सकते हैं।
– सिन्थेटिक कपड़ों में सिर्फ ऐक्रेलिक को रीसाइकल किया जा सकता है, लेकिन ये प्रोसेस आसान नहीं होती है जिसके कारण रीसाइक्लिंग कम हो पाती है।
– सैटिन जैसे सिन्थेटिक कपड़े वाटर रीपेलिंग होते हैं। जिसका मतलब है की इन कपड़ों की सतह पर पानी टिक नहीं पाता। इस वजह से इन कपड़ों को धोने के लिए भी ज्यादा पानी की जरूरत होती है।
– कपड़ों को रंगने के लिए डाइइंग की जाती है। इसमें एक साल में करीब 20,000 टन पानी का इस्तेमाल होता है। डाइइंग के बाद केमिकल युक्त ये पानी सीधे नदी-नालों में जाकर प्रदूषण फैलता है।
क्या है सस्टेनेबल फैशन?
ये एक ऐसा फैशन है जो पर्यावरण के अनुकूल है। इससे न सिर्फ कपड़ा बनाने वाले को फायदा मिलता है, बल्कि ये आपकी स्किन के लिए भी काफी अच्छा रहता है। इससे वातावरण को कम नुकसान पहुंचाता है क्योंकि इसे बनाने के लिए कम कीटनाशक, केमिकल और पानी का इस्तेमाल होता है।
सस्टेनेबल फैशन में इस चीज़ पर ध्यान दिया जाता है कि कपड़े को ट्रेंड के हिसाब से बनाने और बदलने की बजाय सीजन के हिसाब से बदला जाए और आप एक ही कपड़े को अलग-अलग तरीकों से स्टाइल कर पाएं। इसमें कपड़े की क्वॉलिटी भी अच्छी होती है। सस्टेनेबल फैशन से आप पर्यावरण को बचाने में बहुत अहम योगदान दे सकते हैं।