ओशो
मनुष्य एक अकेली प्रजाति है, जिसका आहार अनिश्चित है। अन्य सभी जानवरोंका आहार निश्चित है। उनकी बुनियादी शारीरिक जरूरतें और उनका स्वभाव फैसला करता है कि वह क्या खाते हैं और क्या नहीं। किंतु मनुष्यका व्यवहार बिलकुल अप्रत्याशित है, वह बिलकुल अनिश्चिततामें जीता है। न ही तो उसकी प्रकृति उसे बताती है कि उसे कब खाना चाहिए, न उसकी जागरूकता बताती है कि कितना खाना चाहिए। अब जब इनमेंसे कोई भी गुण निश्चित नहीं है तो मनुष्यका जीवन बड़ी अनिश्चित दिशामें चला गया है। लेकिन यदि मनुष्य थोड़ी-सी भी समझदारी दिखाये तो सही आहारका निर्णय लेना बिलकुल कठिन नहीं होगा। यह बहुत आसान है। सही आहारको समझनेके लिए हम इसे दो हिस्सोंमें बांट सकते हैं। मनुष्यका शरीर रासायनिक तत्वोंसे बना है। कोई मनुष्य कितना भी पुण्यात्मा क्यों न हो, यदि उसे जहर दिया जाय तो वह मर जायगा। कोई भी भोजन जो मनुष्यको किसी तरहकी बेहोशी, उत्तेजना, चरम अवस्था या किसी भी तरहकी अशांतिमें ले जाय, हानिकारक है और सबसे गहरी, परम हानि तब होती है जब यह चीजें नाभितक पहुंचने लगती हैं। शायद तुम नहीं जानते कि पूरी दुनियाकी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियोंमें शरीरको स्वस्थ करनेके लिए गीली मिट्टी, शाकाहारी भोजन, हल्के भोजन, गीली पट्टियों और बड़े टबमें स्नानका प्रयोग किया जाता है। लेकिन अबतक कोई प्राकृतिक चिकित्सक यह नहीं समझ पाया है कि गीली पट्टियों, गीली मिट्टी, टबमें स्नानका जो इतना लाभ मिलता है, वह इनके विशेष गुणोंके कारण नहीं, बल्कि नाभि केंद्रपर इनके प्रभावके कारण है। नाभि केंद्र पूरे शरीरपर प्रभाव डालता है। यह सारी चीजें जैसे मिट्टी, पानी, टब स्नान नाभि केंद्रकी निष्क्रिय ऊर्जापर प्रभाव डालती हैं और जब यह ऊर्जा सक्रिय होनी शुरू होती है तो मनुष्य स्वस्थ होने लगता है। लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा अभी यह बात नहीं जान पायी है। प्राकृतिक चिकित्सक सोचते हैं कि शायद यह स्वास्थ्य लाभ गीली मिट्टी, टबमें स्नान या गीली पट्टियोंको पेटपर रखनेके कारण हैं। इन सबसे भी लाभ होता है, परन्तु वास्तविक लाभ नाभि केंद्रकी निष्क्रिय ऊर्जाके सक्रिय होनेसे होता है। यदि नाभिके साथ गलत व्यवहार किया जाय, यदि गलत आहार, गलत भोजन किया जाय तो धीरे-धीरे नाभि केंद्र निष्क्रिय पड़ जाता है और इसकी ऊर्जा घटने लगती है। धीरे-धीरे नाभि केंद्र सुस्त पडऩे लगता है, आखिरमें यह लगभग सो जाता है। तब हम इसे एक केंद्रकी तरह देखना भी बंद कर देते हैं। तब हमें सिर्फ दो केंद्र दिखायी पड़ते हैं, एक मस्तिष्क जहां निरंतर विचार चलते रहते हैं और थोड़ा बहुत हृदय जहां भावोंका प्रवाह रहता है। इससे गहराईमें हमारा किसी चीजसे संपर्क नहीं बन पाता।