सम्पादकीय

उइगरोंपर अमानवीय चीन


विष्णुगुप्त
चीनमें जनताकी सहभागिता होती ही नहीं है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती नहीं है। मानवाधिकार की बात करने वाले लोग मार दिये जाते है या फिर अनंतकालतक जेलोंमें डाल दिये जाते हैं। वहांकी जेलें घोर अमानवीय होती हैं। एक रिपोर्टमें कहा गया है कि चीन उईगर मुसलमानोंका जनसांख्यिकीय नरसंहार कर रहा है। जनसांख्यिकीय नरसंहारके लिए उईगर मुस्लिम महिलाओंपर हिंसा और अमानवीय ढंगसे गर्भपर पहरा बैठा दिया गया है। जैसे ही किसी उईगर मुस्लिम महिलाके गर्भवती होनेकी सूचना मिलती है वैसे ही उईगर मुस्लिम महिलाको यातना शिविरोंमें भर्ती करा दिया जाता है और बलपूर्वक उनका गर्भपात करवा दिया जाता है। उनके मजहबी अधिकारको कुचलनेके लिए पुलिस और सेनाका प्रयोग किया जाता है। सबसे पहले यह जानना होगा कि उईगर मुसलमान कौन हैं? दुनियाके नियामक चीनके इस बर्बर, खौफनाक और हिंसक नीतिके खिलाफ चुप्पी क्यों साधे रखे हैं। उईगर मुस्लिमोंपर हो रहे अत्याचारको देखते हुए चीनसे संयुक्त राष्ट्रसंघकी सुरक्षा परिषदके वीटोंके अधिकारको छिन लेना चाहिए। पाकिस्तान, मलयेशिया और तुर्कीके लिए उईगर मुसलमानोंके हित और उनका मानवाधिकार कोई अहमियत नहीं रखते हैं।
उईगर मुसलमान चीनकी शिजिंयांग प्रातके रहनेवाले अल्पसंख्यक समुदाय है। यह इस्लामके कट्टर समर्थक हैं। इनका पेशा कृषि और पशुपालन है। यह इस्लामिक जनजातीय समुदाय अपने आपको मध्य एशियाके निवासी बताते हैं। शिजिंयांग प्रांत कभी स्वतंत्र भूभाग था, चीनसे वह अलग था। १९४९ में माओत्से तुंगने अपने विस्तारवादी नीतिके कारण शिजियांग भूभागको चीनका हिस्सा बना लिया था। शिजियांग भूभागको अपना हिस्सा बनानेके लिए चीनने बड़े पैमानेपर लोगोंको मौतका घाट उतार दिया था। १९४९ से लेकर अबतक चीन अपने कब्जेमें रखनेके लिए हिंसा और प्रताडऩाका सहारा लेता है। फिर भी उईगर मुसलमान चीनकी अधीनता स्वीकार करनेके लिए राजी नहीं हैं। उईगर मुसलमानोंका कहना है कि उनका मजहब इस्लाम है, वे कट्टर मजहबी हैं, उन्हें मजहबसे बेदखल रखना स्वीकार नहीं हैं। उनकी मान्यता है कि चीन उनका देश नहीं है,चीन आक्रमणकारी हैं। चीनकी नीति आक्रमणकारियों जैसी ही है। उईगर मुसलमान कहते हैं कि शिजियांग १९४९ से पूर्व एक इस्लामी भू-भाग था। शिजियांगको इस्लामिक देश घोषित किया जाना चाहिए। चीन अपना अधिकार छोड़े। जिस तरहसे दुनियामें इस्लामिक देशकी मांगके लिए घृणा, अलगाव, विखंडन तथा हिंसा-आतंकवादका जिहाद चल रहा है उसी तरहकी घृणा, अलगाव, विखंडन, आतंकवादका जिहाद शिजियांगमें जारी है। चीनका आरोप है कि एक घोर और घृणित इस्लामिक राजके लिए शिजियांगमें जिहाद चल रहा है, उईगर मुसलमान चीनी पुलिसकर्मियों और अन्य धर्मविहीन आबादीको निशाना बनाते हैं, जिसके कारण निर्दोष लोगोंकी जानें जाती है। उईगर मुसलमान सिर्फ चीनमें ही नहीं है बल्कि इनकी आबादी इराक और तुर्कीमें भी है। उईगर मुस्लिम आबादीका प्रतिनिधित्व करनेवाले साहित्यकार, कवि, कलाकार पलायन कर गये है और अमेरिका, यूरोप और अन्य मुस्लिम देशोंमें शरणार्थी हैं।
चीनकी ही नहीं, बल्कि दुनियामें जहां-जहां कम्युनिस्ट तानाशाही रही थी वहां मजहब और धर्मकी बुनियादको तहस-नहस करना और नष्ट करना उनकी नीति थी। सोवियत संघसे लेकर चेकोस्लोवाकियातक इसका उदाहरण है। सोवियत संघ और चैकोस्लोवाकिया खुद ही दफन हो गये। कार्ल माक्र्सने मजहबको अफीम कहा था। यूरोपमें ईसाईयत और यूरोपके पड़ोसमें इस्लामके हिंसक और घृणाके साथ ही सत्ताको नियंत्रित करनेके भीषण दुष्परिणाम हुए और कार्ल माक्र्सने दुष्परिणामोंके मूल्यांकनके बाद मजहबको अफीम कहा था। कार्ल माक्र्सकी थ्योरीपर ही कम्युनिस्ट तानाशाही मजहबको मिटानेके लिए अपना प्रथम एजेंडा बना लिया। चीन कभी बौद्ध धर्मवाला देश था। वहां महात्मा बुद्धका बहुत ही गहरा प्रभाव था। महान सम्राट अशोकने बौद्ध धर्मको चीनमें विस्तार दिया था। जैसे ही चीनमें माओत्से तुंगका उदय हुआ वैसे ही बौद्ध धर्मको मिटानेकी कोशिश हुई, बौद्ध मंदिरोंको या तो तोड़ दिया गया या फिर बौद्ध मंदिरोंमें जानेवाले लोगोंको गोलियोंसे उड़ा दिया गया या उन्हें जेलोंमें डाल दिया गया। चीनमें बौद्ध धर्मको पूरी तरहसे नष्ट करनेमें इन्हें कामयाबी मिली। परन्तु बौद्ध धर्मकी तरह इस्लामको मिटानेमें कम्युनिस्ट तानाशाहीको पूरी तरहसे सफलता नहीं मिली। इस्लामके माननेवालोंने अपनी कट्टरतासे चीनको मजहबहीन बनानेकी नीति सफल नहीं होने दिया।
उईगर मुसलमानोंको नियंत्रित रखनेके लिए चीनने जिस तरहके हथकंडे अपनाये गये हैं उसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जायेंगे। दुनियामें चर्चित है कि उईगर मुसलमानोंको मजहबहीन बनानेके लिए चीनकी कम्युनिस्ट तानाशाही अति हिंसक नीति अपना रखी है। एक करोड़से अधिक उईगर मुसलमानोंको यातना शिविरमें रखा गया है जहांपर मजहबसे विलग करनेके लिए हिंसक नीति अपनायी जाती है। उईगर मुसलमानोंको सुअरका मांस खानेतकके लिए बाध्य किया जाता है। जैसे ही कोई मजहबी सामग्री पकड़ी जाती है उसे गिरफ्तार कर यातना शिविरोंमें डाल दिया जाता है। चीनसे कई ऐसी तस्वीरें आयी है जिसमें मस्जिदोंको टॉयलेट घरमें तब्दील किया गया है। इतना तो सच है कि चीनने मस्जिदोंपर ताले लगा ही रखे हैं, मस्जिदोंका ध्वंस करना भी जारी है। इसके अलावा उईगर मुसलमानोंको अल्पसंख्यक बनानेकी नीति जारी है। चीनी मूलके लोगोंको शिजियांग प्रदेशमें बसाया जा रहा है। चीनी मूलके लोगोंको काफी रियायतें मिली हुई है। चीनका मानना है कि शिजियांग प्रदेशके उईगर मुसलमानोंके जिहादकी समस्याका समाधान आबादी संतुलन बना कर किया जा सकता है। चीनी आबादी संतुलनका अर्थ सिर्फ उईगर मुसलमनोंकी आबादी कम करना है। सबसे ज्यादा चिंताजनक खामोशी मुस्लिम दुनियाको लेकर है। कुछ समय पहले ही फ्रांसके खिलाफ मुस्लिम दुनियाने किस प्रकार हिंसक अभियान चलाया था। जबकि फ्रांसमें ऐसा कुछ भी नहीं था। चीनके सामने मुस्लिम दुनिया झुकी रहती है। यदि मुस्लिम दुनिया उईगर मुसलमानोंके लिए चिंतित होती तो चीन सोचनेके लिए जरूर बाध्य होता। चीनके खिलाफ दुनियामें सिर्फ अमेरिका ही है जो उईगर मुसलमानोंकी जनसाख्यिकीय नरसंहारके खिलाफ प्रतिबंधोंको लागू किया है। उईगर मुसलमानोंका जनसांख्यिकीय नरसंहर रोका जाना चाहिए।