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उत्तर भारतमें बढ़ते भूकम्पके झटके


योगेश कुमार गोयल
पि छले छह महीनोंमें ही उत्तर भारतमें कई हल्के भूकम्प आये हैं, जो हिमालय क्षेत्रमें किसी बड़े भूकम्पकी आशंकाको बढ़ा रहे हैं। दरअसल वैज्ञानिकोंका मानना है कि ऐसे कई छोटे भूकम्प बड़ी तबाहीका संकेत होते हैं। यही कारण है कि अप्रैलके बादसे दिल्ली-एनसीआरमें भूकम्पके बार-बार लग रहे झटके चिंताका सबब बने हैं। इस अंतरालमें इस क्षेत्रमें भूकम्पके करीब डेढ़ दर्जन झटके लग चुके हैं। पिछले कुछ दशकोंमें दिल्ली-एनसीआरकी आबादी काफी बढ़ी है और ऐसेमें छह तीव्रताका भूकम्प भी यहां भारी तबाही मचा सकता है। कुछ समय पहले भी वैज्ञानिक हिमालयमें बड़े भूकम्पकी आशंका जताते हुए कह चुके हैं कि हिमालय पर्वत श्रृंखलामें सिलसिलेवार भूकम्पोंके साथ कभी भी बड़ा भूकम्प आ सकता है, जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमानेपर आठ या उससे भी अधिक हो सकती है। इससे हिमालयके आसपास घनी आबादीवाले क्षेत्रोंमें भारी तबाही मच सकती है और दिल्ली भी इसकी जदमें होगी। दिल्लीसे करीब दो सौ किलोमीटर दूर हिमालय क्षेत्रमें यदि सात या इससे अधिक तीव्रताका भूकम्प आता है तो यह बड़ा खतरा है। दरअसल भूकम्पके पूर्वानुमानका न तो कोई उपकरण है और न ही कोई मैकेनिज्म। राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के वैज्ञानिकोंके मुताबिक दिल्ली-एनसीआरमें आ रहे भूकम्पोंको लेकर अध्ययन चल रहा है। उनका कहना है कि इसके कारणोंमें भू-जलका गिरता स्तर भी एक प्रमुख वजह सामने आ रही है, इसके अलावा अन्य कारण भी तलाशे जा रहे हैं। ऐसेमें सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या दिल्लीकी ऊंची-ऊंची आलीशान इमारतें और अपार्टमेंट किसी बड़े भूकम्पको झेलनेकी स्थितिमें हैं।
विशेषज्ञोंके अनुसार बार-बार आ रहे भूकम्पके झटकोंसे पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआरके फॉल्ट इस समय सक्रिय हैं और इन फॉल्टमें बड़े भूकम्पकी तीव्रता ६.५ तक रह सकती है। दिल्ली और आसपासके क्षेत्रोंमें निरन्तर लग रहे झटकोंको देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट भी कड़ा रुख अपना चुका है। हाईकोर्टने कुछ माह पूर्व दिल्ली सरकार, डीडीए, एमसीडी, दिल्ली छावनी परिषद, नयी दिल्ली नगरपालिका परिषदको नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि तेज भूकम्प आनेपर लोगोंकी सुरक्षा सुनिश्चित करनेके लिए क्या कदम उठाये गये हैं। अदालत द्वारा चिंता जताते हुए कहा गया था कि सरकार और अन्य निकाय हमेशाकी भांति भूकम्पके झटकोंको हल्केमें ले रहे हैं जबकि उन्हें इस दिशामें गंभीरता दिखानेकी जरूरत है। अदालतका कहना था कि भूकम्प जैसी विपदासे निबटनेके लिए ठोस योजना बनानेकी जरूरत है क्योंकि भूकम्पसे लाखों लोगोंकी जान जा सकती है।
कुछ दिनों बाद मुख्य न्यायमूर्ति डी.एन. पटेल तथा न्यायमूर्ति प्रतीक जालानकी पीठने भी दिल्लीमें भूकम्पके झटकोंसे इमारतोंको सुरक्षित रखनेके संबंधमें बनायी गयी योजनाको लागू करनेमें असफल होनेपर दिल्ली सरकारको लताड़ लगायी थी। दिल्ली सरकार तथा एमसीडी द्वारा दाखिल किये गये जवाबपर सख्त टिप्पणी करते हुए अदालतने कहा था कि भूकम्पसे शहरको सुरक्षित रखनेको लेकर उठाये गये कदम या प्रस्ताव केवल कागजी शेर हैं और ऐसा नहीं दिख रहा कि एजेंसियोंने भूकम्पके संबंधमें अदालत द्वारा पूर्वमें दिय गये आदेशका अनुपालन किया हो। अदालतको ऐसी टिप्पणियां करनेको इसलिए विवश होना पड़ रहा है क्योंकि दिल्ली-एनसीआर भूकम्पके लिहाजसे काफी संवेदनशील है, जो दूसरे नंबरके सबसे खतरनाक सिस्मिक जोन-४ में आता है। इसीलिए अदालतको कहना पड़ा है कि केवल कागजी काररवाईसे काम नहीं चलेगा, बल्कि सरकार द्वारा जमीनी स्तरपर ठोस काम करनेकी जरूरत है। दरअसल वास्तविकता यही है कि पिछले कई वर्षोंमें भूकम्पसे निबटनेकी तैयारियोंके नामपर केवल खानापूर्ति ही हुई है।
उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ताने वर्ष २०१५ में मुख्य याचिका दायर करते हुए कहा था कि भूकम्पके लिहाजसे दिल्लीकी इमारतें ठीक नहीं हैं और तीव्र गतिवाला भूकम्प आनेपर दिल्लीमें बड़ी संख्यामें लोगोंकी जान जा सकती है। हाईकोर्टमें यह याचिका अभीतक लंबित है और अदालत समय-समयपर दिल्ली सरकार और नगर निकायोंको कार्ययोजना तैयार करनेके निर्देश देती रही है। याचिकाकर्ताका कहना है कि कागजोंपर निश्चित तौरपर बेहतर दिशा-निर्देश और अधिसूचना बनायी गयी है लेकिन जमीनपर यह लागू होती दिखाई नहीं देती। हाईकोर्टकी पीठने प्राधिकारियोंको निर्देश दिया है कि यदि दिल्ली सरकार तथा नगर निगमकी कोई कार्ययोजना है तो वह इसके संबंधमें आम जनमानसको बतायें, ताकि वे इस गंभीर समस्याके लिए खुदको तैयार कर सकें।
दिल्ली-एनसीआरमें पिछले कुछ महीनोंमें आये भूकम्पके झटके भले ही रिक्टर पैमानेपर कम तीव्रतावाले रहे हों किन्तु भूकम्पपर शोध करनेवाले इन झटकोंको बड़े खतरेकी आहट मान रहे हैं। विशेषज्ञोंके मुताबिक संभव है कि दिल्ली एनसीआरमें आ रहे हल्के भूकम्प किसी दूरस्थ इलाकेमें आनेवाले बड़े भूकम्पका संकेत दे रहे हों। राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान केन्द्रके निदेशक (ऑपरेशन) जे. एल. गौतमके अनुसार दिल्ली-एनसीआरमें जमीनके नीचे दिल्ली-मुरादाबाद फाल्ट लाइन, मथुरा फाल्ट लाइन तथा सोहना फाल्ट लाइन मौजूद है और जहां फाल्ट लाइन होती है, भूकम्पका अधिकेन्द्र वहींपर बनता है। उनका कहना है कि बड़े भूकम्प फाल्ट लाइनके किनारे ही आते हैं और केवल दिल्ली ही नहीं, पूरी हिमालयन बेल्टको भूकम्पसे ज्यादा खतरा है। अधिकांश भूकम्प विशेषज्ञोंका कहना है कि दिल्ली एनसीआरकी इमारतोंको भूकम्पके लिए तैयार करना शुरू कर देना चाहिए, ताकि बड़े भूकम्पके नुकसानको कम किया जा सके। एक अध्ययनके मुताबिक दिल्लीमें करीब नब्बे फीसदी मकान क्रंकीट और सरियेसे बने हैं, जिनमेंसे ९० फीसदी इमारतें रिक्टर स्केलपर छह तीव्रतासे तेज भूकम्पको झेलनेमें समर्थ नहीं हैं। एनसीएसके अध्ययनके अनुसार दिल्लीका करीब तीस फीसदी हिस्सा जोन-५ में आता है, जो भूकम्पकी दृष्टिसे सर्वाधिक संवेदनशील है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालयकी एक रिपोर्टमें भी कहा गया है कि दिल्लीमें बनी नयी इमारतें ६ से ६.६ तीव्रताके भूकम्पको झेल सकती हैं जबकि पुरानी इमारतें ५ से ५.५ तीव्रताका भूकम्प ही सह सकती हैं। विशेषज्ञ बड़ा भूकम्प आनेपर दिल्लीमें जान-मालका ज्यादा नुकसान होनेका अनुमान इसलिए भी लगा रहे हैं क्योंकि करीब १.९ करोड़ आबादीवाली दिल्लीमें प्रतिवर्ग किलोमीटर दस हजार लोग रहते हैं। कोई बड़ा भूकम्प ३००-४०० किलोमीटरकी रेंजतक असर दिखाता है।